Health

दवा के रूप में गांजा

विश्व के 18 से ज्यादा देश चिकित्सीय प्रयोग के लिए गांजे को कानूनी वैद्यता प्रदान कर चुके हैं। भारत भी इस सूची में शामिल हो सकता है। 

 
By Angarika Gogoi
Published: Thursday 15 March 2018
इलाहाबाद में पिछले कुंभ मेले के दौरान गांजा पीता एक साधु (मीता अहलावत / सीएसई)

भारत में गांजे का चिकित्सा में प्रयोग मान्य हो सकता है। दो घटनाक्रम इसे बल प्रदान कर रहे हैं। पहला, गांजे को दवा के रूप में मान्यता प्रदान करने के लिए पिछले साल लोकसभा सांसद धर्मवीर गांधी ने लोकसभा में निजी विधेयक पेश किया। दूसरा, महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने मंत्रियों के समूह की बैठक में सुझाव दिया कि गांजे को कानूनी मान्यता दी जाए। मंत्रियों का यह समूह नेशनल ड्रग डिमांड रिडक्शन पॉलिसी के कैबिनेट नोट के प्रारूप की जांच कर रहा है। वर्तमान में गांजा रखना, इसका व्यापार, इसे लाना ले जाना और उपभोग नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंसेज एक्ट 1985 के तहत प्रतिबंधित है और ये गतिविधियां गैर कानूनी हैं।

दवा के रूप में गांजा

हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने गांजे के इस्तेमाल से कई बीमारियों को जोड़ा है, मसलन दिमागी क्षमता को क्षति, ब्रोनकाइटिस, फेफड़ों में जलन आदि। डब्ल्यूएचओ यह भी कहता है कि कुछ अध्ययन बताते हैं कि कैंसर, एड्स, अस्थमा और ग्लूकोमा जैसी बीमारियों के इलाज के लिए गांजा मददगार है। लेकिन उसका यह भी मानना है कि गांजे के चिकित्सीय इस्तेमाल को स्थापित करने के लिए और अध्ययन की जरूरत है।

पिछले कई सालों में कई अध्ययनों में यह स्थापित करने की कोशिश की गई है कि गांजे में औषधीय गुण हैं। अध्ययन में बताया गया है कि गांजे में पाए जाने वाले कैनाबाइडियॉल (सीबीडी) से क्रोनिक पेन का सफलतापूर्वक इलाज किया जा सकता है और इसके विशेष दुष्परिणाम भी नहीं हैं। इंडियन जर्नल ऑफ पैलिएटिव केयर के संपादक और मुंबई स्थित टाटा मेमोरियल सेंटर में असोसिएट प्रोफेसर नवीन सेलिंस का कहना है कि सीबीडी सकारात्मक नतीजे देता है।

कुष्ठरोग के मरीजों पर भी सीबीडी थेरेपी प्रयोग की जाती है। एपीलेप्सी एंड विहेवियर में 2017 में प्रकाशित अध्ययन कहता है कि इसके उपचार के सकारात्मक नतीजे निकले हैं, खासकर उन बच्चों पर जिन्हें मिर्गी के दौरे पड़ते हैं। नेचुरल प्रॉडक्ट्स एंड कैंसर ड्रग डिस्कवरी में जुलाई 2017 में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, सीबीडी में क्षमता है कि वह कैंसर रोधी दवा बन सके। कीमोथैरेपी के बाद यह न केवल दर्द से राहत देता है बल्कि क्लीनिकल प्रयोग बताते हैं कि यह कैंसर की कोशिकाओं को विकसित होने से भी रोकता है।


इंटरनेशनल जर्नल ऑफ आयुर्वेद एंड फार्माक्यूटिकल केमिस्ट्री में प्रकाशित एक पत्र के अनुसार, चिकित्सा में गांजे के शुरुआती प्रयोग की जानकारी 1500 ईसवीं पूर्व अथर्ववेद में मिलती है। इस प्राचीन ग्रंथ में भांग का उल्लेख है जो गांजे का ही एक रूप है। इसे पांच प्रमुख पौधों में से एक माना जाता है। होली के पर्व पर भी आज भी भांग के खाने की परंपरा है। प्राचीन चिकित्सीय ग्रंथ सुश्रुत संहिता में गांजे के चिकित्सीय प्रयोग की जानकारी मिलती है। सुस्ती, नजला और डायरिया में इसके इस्तेमाल का उल्लेख मिलता है।

कैनाबिस: इवेल्युएशन एंड एथनोबोटेनी पुस्तक में लेखक ने पाया है कि गांजे के इस्तेमाल की जड़ में प्राचीन साहित्य और हिंदू धर्मग्रंथ हैं। इसमें कहा गया है कि पूरी 19वीं शताब्दी में मध्य भारत में खंडवा व ग्वालियर और पूर्व में पश्चिम बंगाल भारतीय उपमहाद्वीप में गांजे के सबसे बड़े उत्पादक और निर्यातक रहे हैं।

गांजे से संबंधित उपचार मिर्गी रोग से ग्रस्त बच्चों के लिए मददगार हो सकता है

यह सर्वविदित है कि अवैध होने के बावजूद देश के कई हिस्सों में इसे उगाया जाता है, खासकर हिमाचल प्रदेश के गांवों में। इसका उत्पादन बंद करना लगभग असंभव क्योंकि यह सहजता से उग जाता है। भारतीय हिमालय के जंगली क्षेत्रों में काफी उगता है। इस पौधे से चरस तैयार होता है जो पहाड़ी इलाकों के किसानों के रोजगार का जरिया है।

प्राचीन परंपरागत चीनी दवाइयों में भी गांजे का प्रयोग होता आया है। अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के नेशनल सेंटर फॉर बायोटेक्नालजी इन्फॉर्मेशन द्वारा प्रकाशित पत्र के मुताबिक, गांजे का इस्तेमाल रेचक औषधि में नमी लाने के लिए किया जाता है। यह चाइनीज फार्माकोपिया का भी हिस्सा है। फार्माकोपिया मेडिकल औषधियों को सूचीबद्ध करने वाला आधिकारिक प्रकाशन है। इसमें कहा गया है कि एक चीनी सर्जन ने सबसे पहले चेतनाशून्य करने के लिए गांजे का इस्तेमाल किया था।

बॉम्बे हैंप कंपनी में वैज्ञानिक सलाहकार और गांजा विशेषज्ञ अर्नो हेजकैंप का कहना है कि दुनियाभर में गांजे को अवैध माना गया है इसलिए गांजे से जुड़े क्लीनिकल ट्रायल बेहद मुश्किल हैं। वह कहते हैं कि क्लीनिकल ट्रायल की कमी से यह साबित नहीं होता कि गांजा काम नहीं करता बल्कि इससे साबित होता है कि ऐसे ट्रायल करना कितना मुश्किल काम है।  

नियमों का जाल

डबलिन स्थित खाद्य पदार्थ नियामक प्राधिकरण का कैनाबिस फॉर मेडिकल यूज-ए साइंटिफिक रिव्यू इन 2017 एक व्यापक स्तर पर किया गया सर्वेक्षण है। यह 48 देशों में किया गया और इसमें गांजे के इस्तेमाल के आधार पर उनका वर्गीकरण है। इसमें पाया गया है कि कुछ देशों में सख्त नियम हैं और इसके इस्तेमाल का नियंत्रित किया गया है। डेनमार्क, एस्टोनिया, जर्मनी, नॉर्वे और पोलैंड उन देशों में शामिल हैं जो चिकित्सा में  गांजे के इस्तेमाल के लिए कानूनी ढांचा बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं। चेक रिपब्लिक, इटली, ऑस्ट्रेलिया, इजराइल, नीदरलैंड, कनाडा और अमेरिका के कुछ राज्यों ने गांजे के चिकित्सीय कार्यक्रमों को पहले ही स्थापित कर दिया है।  

वाशिंगटन स्थित थिंक टैंक कैटो इंस्टीट्यूट के अध्ययन में पाया गया है कि नशीली दवा को प्रतिबंधित करने से यह खत्म नहीं होती बल्कि उसकी कालाबाजारी होती है। प्रतिबंधित करने से बाजार में खराब गुणवत्ता की दवाएं आ जाती हैं जिनसे ओवरडोज और प्वाइजनिंग का खतरा रहता है।

संयुक्त राष्ट्र के पूर्व जनरल सेक्रेटरी कोफी अन्नान कहते हैं कि शुरुआती रुझान बताते हैं “जहां गांजे को वैद्यता प्रदान की गई है, वहां ड्रग और इससे संबंधित अपराधों में बढ़ोतरी नहीं हुई है। हमें यह सावधानी से तय करना पड़ेगा कि किसे प्रतिबंधित किया जाए और किसे नहीं। ज्यादातर गांजे का प्रयोग विशेष अवसरों पर होता है और यह किसी समस्या से भी नहीं जुड़ा है। फिर भी इससे होने वाले संभावित जोखिमों के कारण इसे विनियमित करने की जरूरत है।”

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