Climate Change

628 महीनों में कोई महीना ठंडा नहीं रहा

इस साल का सितंबर महीना पिछली एक शताब्दी में सर्वाधिक गर्म था। पिछले 50 वर्षों में हर महीना औद्योगिक काल से पहले के महीनों के मुकाबले अधिक गर्म रहा है 

 
By Bhagirath Srivas
Published: Monday 29 October 2018
धरती का तापमान नाटकीय ढंग से बढ़ रहा है, खासकर 1990 के दशक के बाद

विश्व की 80 प्रतिशत आबादी पिछले 50 सालों के दौरान पैदा हुई है। इस कालखंड में पैदा हुए लोग ऐसे पर्यावरण में पले-बढ़े हैं जिसे मनुष्यों ने बुरी तरह प्रदूषित कर दिया है। अप्रैल 2017 में जलवायु परिवर्तन का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों और रिपोर्ट करने वाले पत्रकारों के अंतरराष्ट्रीय संघ क्लाइमेट सेंट्रल ने एक हैरान करने देने वाला चार्ट तैयार किया था। इस चार्ट में 1880 के बाद के हर महीने के तापमान को दर्शाया गया था। चार्ट के अनुसार, 628 महीनों में कोई भी महीना पहले के मुकाबले ठंडा नहीं था।

इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए क्लाइमेट सेंट्रल ने नेशनल ऐरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (नासा) और नेशनल ऑसियानिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के आंकड़ों का विस्तृत अध्ययन किया था और एक चार्ट के माध्यम से इसे प्रदर्शित किया था। इसमें लाल रंग के माध्यम से बताया गया था कि 1881 से 1910 के बीच बेसलाइन वैश्विक औसत तापमान अधिक था। नीला रंग ठंडे महीनों को इंगित कर रहा था। पूरा चार्ट लाल रंग के धब्बों से भरा हुआ था जो बढ़े हुए तापमान को प्रदर्शित कर रहे थे।  

पिछले 50 वर्षों में हर महीना औद्योगिक काल के पहले के महीनों के मुकाबले अधिक गर्म रहा है। क्लाइमेट सेंट्रल से जुड़े ब्रायन कान के मुताबिक, ठंडे नीले बिंदु गायब हो रहे हैं और उनकी जगह लगातार बढ़ने वाली गर्मी ने ले ली है। आगे भी तापमान के बढ़ने पर से गर्मी बढ़ने की संभावना है।

क्लाइमेट सेंट्रल के चार्ट से सात महीने पहले ब्रिटेन के यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग ने 167 मानचित्रों का संकलन तैयार किया था जिसमें 1850 से 2016 तक साल दर साल के तापमान का विवरण था। इसमें भी यही निष्कर्ष निकाला गया था कि साल दर साल धरती का तापमान बढ़ रहा है। इसमें चौकाने वाली बात यह सामने आई थी कि धरती का तापमान नाटकीय ढंग से बढ़ रहा है, खासकर 1990 के दशक के बाद।

भारतीय और दूसरे देशों के लोग इससे बहुत अधिक हैरान नहीं हुए थे। दरअसल, इस अवधि में गर्म सालों की संख्या में काफी इजाफा हुआ। भारत में 1992 तक लू के कारण 22,562 लोगों की मौत हुई थी। पिछले 23 सालों में भारत में हर साल कम से कम 393 लोग मारे जा रहे हैं। 1992 से 2004 के बीच लू से मरने वालों का आंकड़ा दो बार 1,000 से पार जा चुका है। 1995 और 1998 में ऐसा हुआ था। तब से सात लू से 1,000 से ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं। 2015 इस मामले में सबसे बुरा साबित हुआ क्योंकि इस साल 2,422 लोग मारे गए। तब तक सदी का सबसे गर्म साल 1998 था।  

जुलाई 2016 में वैश्विक भूमि और सागर की सतह का तापमान बीसवीं शताब्दी के औसत 60.4 डिग्री फारेनहाइट से 1.57 डिग्री फारेनहाइट अधिक था। ऐसे समय में जब हर महीने मौसम के रिकॉर्ड तोड़ता प्रतीत हो रहा है, जुलाई के तापमान में यह वृद्धि 1860-2016 के दौरान सर्वाधिक थी। इसने 2015 में बने 0.11 डिग्री फारेनहाइट के रिकॉर्ड को तोड़ दिया। 2016 का जुलाई महीना लगातार 40वां ऐसा महीना था जो बीसवीं सदी के जुलाई के औसत तापमान से अधिक गर्म था। जुलाई 1976 ऐसा वक्त था जब वैश्विक सतह और समुद्री तापमान औसत से कम था। ये तथ्य बताते हैं कि धरती करीब 100 सालों के दौरान सर्वाधिक गर्म हुई है।  

(सीएसई द्वारा प्रकाशित क्लाइमेट चेंज नाऊ पुस्तक से साभार)

Subscribe to Daily Newsletter :

Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.