आहार संस्कृति: कैंसर जैसी बीमारी में कारगर है कुतरूम

जूट का विकल्प होने के साथ-साथ कुतरुम कैंसर के इलाज में भी कारगर है। इससे बने व्यंजन पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं, ऐसे बनाएं कुतरुम की चटनी 

By Chaitanya Chandan

On: Monday 28 October 2019
 
कुतरुम की चटनी। औषधीय गुणों से लैस कुतरुम का दुनियाभर में अपना साहित्यिक और सांस्कृतिक महत्व भी है (विकास चौधरी)

पिछले दिनों जब मैं सब्जी खरीदने निकला, तो एक ठेले के पास आकर ठिठक गया। कुछ जानी-पहचानी सी चीज दिखी। नजदीक जाकर देखा तो वह कुतरुम था। मैंने झट से एक पाव कुतरुम खरीद लिया, क्योंकि दिल्ली में यह मुझे पहली बार दिखा था। बचपन में जब भी ठंड की शुरुआत में मां के साथ सब्जी लेने जाता था, तो वह हमेशा इसे चटनी बनाने के लिए खरीद लिया करती थीं।

कुतरुम को हिंदी में लाल अंबाड़ी और अंग्रेजी में रोसेले के नाम से जाना जाता है। बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर में यह कुतरुम के नाम से जाना जाता है। वैसे इसका वैज्ञानिक नाम हिबिस्कस सबदारिफा है। कुतरुम के पौधे झाड़ीनुमा और चार से सात फुट ऊंचे होते हैं। भारत में इसकी मुख्यत: दो प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से एक का तना हरे रंग का और दूसरे का गहरे लाल रंग का होता है। इसके फूल पीले और पत्ते गहरे हरे रंग के होते हैं। कुतरुम का फल लाल रंग का होता है जो फली के चारों ओर एक आवरण की तरह चिपका रहता है। चटनी या अन्य व्यंजन अमूमन इसी बाह्यदलपुंज का बनता है।

जूलिया मोर्टन की किताब फ्रूट्स ऑफ वॉर्म क्लाईमेट्स के अनुसार कुतरुम की उत्पत्ति भारत और मलेशिया में हुई थी, जिसका बाद में अफ्रीका के देशों तक विस्तार हुआ। हालांकि यूनिवर्सिटी ऑफ नॉर्थ करोलिना के एनसी मैकलिंटोक मानते हैं कि कुतरुम की उत्पत्ति 6,000 वर्ष पहले सूडान में हुई थी और बाद में इसे एशिया लाया गया था। एक अन्य मान्यता के अनुसार, 16वीं शताब्दी के मध्य में अफ्रीकी बंधुआ मजदूरों ने पूरी दुनिया का कुतरुम से परिचय करवाया।

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के अनुसार कुतरुम के सबसे बड़े उत्पादक देश चीन और थाईलैंड हैं। भारत में भी इसकी काफी पैदावार होती है। जर्मनी के लिए भारत कुतरुम का चौथा और अमेरिका के लिए पांचवां सबसे बड़ा निर्यातक है। भारत में कुतरुम का उत्पादन बढ़ने का एक कारण इसके ताने का रेशेदार होना भी है। कुतरुम के तने का उपयोग जूट के विकल्प के रूप में भी किया जाता है। इस तरह यह बहुउपयोगी पौधा है।

कुतरुम को आमतौर पर कई फसलों के साथ उपाया जाता है। इंडियन जर्नल ऑफ ट्रेडिशनल नॉलेज में वर्ष 2006 में प्रकाशित एक शोध के अनुसार कुतरुम को बाजरा, धान और आढ़र के साथ उगाया जाता है। कुतरुम की जड़ें मिट्टी को बांधे रखती हैं। इस खूबी के कारण अधिक बारिश में भी उपजाऊ मिट्टी बहने से बच जाती है।

भारत के अलावा माली और सोमालिया में भी कुतरुम काे सहयोगी फसल के तौर पर उपाया जाता है। दक्षिणी माली में किसान अपने खेतों के चारों ओर कुतरुम लगा देते हैं। दरअसल, इसके जरिये किसान एक तीर से दो निशाने साध लेते हैं। पहला यह कि उनके खेतों की सीमाएं सुरक्षित हो जाती है और दूसरा, किसानों के घर की महिलाएं कुतरुम के फल के व्यंजन बनाकर बाजार में बेचती हैं और परिवार की आय में सहयोग कर सकती हैं।

औषधीय गुण

कुतरुम के पत्तों को कैंसर के उपचार में कारगर माना गया है। ब्रजीलियन जर्नल ऑफ बायोलोजी में वर्ष 2015 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, कुतरुम के पत्तों और बाह्यदलपुंज में कैंसररोधी तत्व पाए गए हैं। वर्ष 2012 में एक्सक्ली जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार कुतरुम मधुमेह के कारण हुए धातुक्षय को दूर करता है। फूड केमिस्ट्री नामक जर्नल में वर्ष 2014 में प्रकाशित एक शोध के अनुसार कुतरुम में उच्च रक्तचाप, मधुमेह, तनाव और कोलेस्ट्रोल को नियंत्रित करने वाले गुण पाए जाते हैं।

साहित्यिक महत्व

कुतरुम के फल का वर्णन लोक साहित्य में भी काफी देखने को मिलता है। मैथिली, अंगिका, भोजपुरी आदि भाषाओं की कहानी-कविताओं में कुतरुम का काफी जिक्र होता है। मैथिली कवि बबुआजी झा ‘अज्ञात’ ने अपनी कविता रुक्मिणी परिणय में एक किशोरी के शृंगार के वर्णन में कुतरुम के फूल को अन्य फूलों के साथ स्थान दिया है। वे लिखते हैं:
कुतरुम कुसुम ललाटक टिकुलो भेंटक उरमे हार कान ललित बंधूक गुलाबक सुमन सज्ज कचभार। आमकिशोरिक रूप निरखि मन ह्वै अछि उदित विचार अपन विभवसं शरद अलंकृत होथि जेना साकार।

इसका अर्थ है, कुदरुम का फूल ललाट पर टिकुली (बिन्दी) और गले में भेंट के फूल की माला, कानों में सुन्दर बंधूक के कर्णफूल और और गुलाब के फूल से सज्जित उरोज। किशोरी के इस रूप को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है मानों अपनी सुषमा से शरद ऋतु अलंकृत होकर साक्षात् उपस्थित हो गया है।
अंगिका के कवि अमरेन्द्र लिखते हैं:
बारी से बैगन के तोड़ी लै आन्हो कुतरुम के थोड़ो पटैनें भी अइयो हाथो मे हमरो परद छै यै वास्तें उसनी दौ धान, तबे सम्मेलन में जइयो

अर्थात्, अपने बगीचे से बैंगन तोड़कर ले आना, कुतरुम को भी जरा पानी दे आना, मेरे हाथों में बैल हैं इसलिए पहले धान को उबाल दो फिर सम्मेलन में जाना। कवि ने इन पंक्तियों से यह बताने की कोशिश की है की लोग अपने बगीचे में भी कुदरुम को स्थान देते हैं।

कुतरुम की चटनी

सामग्री:
  • कुतरुम : 250 ग्राम
  • चीनी : 5 चम्मच
  • अदरख : 1 इंच (कद्दूकस किया हुआ)
  • प्याज : 1 मध्यम आकार का (बारीक कटा हुआ)
  • लाल मिर्च पाउडर : 1 चम्मच
  • सेब का सिरका : 2 चम्मच
  • पानी : डेढ़ कप
  • नामक : 1 चुटकी

विधि: कुतरुम के लाल भागों को निकालें और बीज वाले हिस्सों को फेंक दें। अब इसे धोकर एक पैन में डालें और पानी, कटा हुआ प्याज, कसा हुआ अदरक, चीनी और नमक डालकर पकाएं। जब पैन में पानी कम होने लगे तो उसमें लाल मिर्च पाउडर डालें। अब चटनी को धीरे धीरे हिलाते हुए गाढ़ा होने तक पकाएं। स्टोव से उतारते समय सेब का सिरका मिलाएं। ठंडा होने पर चटनी को शीशे के मर्तबान में रख लें।

कुतरुम का शरबत
सामग्री:

  • कुतरुम : 4 कप, बारीक कटा हुआ
  • पानी : 4 कप
  • चीनी : 4 कप

विधि: एक बड़े पैन में चीनी और पानी डालकर गरम करें। जब चीनी पानी में पूरी तरह घुल जाए तो इसमें बारीक कटे हुए कुतरुम डालकर उबालें। अब आंच को धीमी करके मिश्रण को तब तक पकाएं जब तक कि यह घटकर एक तिहाई न बच जाए। ठंडा करके कांच की बोतल में रख लें। दूध, शरबत, आइसक्रीम के साथ परोसें।

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