Agriculture

15 राज्यों ने राष्ट्रीय कृषि विकास योजना का फंड इस्तेमाल ही नहीं किया

आरकेवीवाई-आरएएफटीएएआर योजना के लिए तीन तिमाहियों में जारी 1,950 करोड़ रुपए का इस्तेमाल ही नहीं हुआ 

 
By Kiran Pandey, Rajit Sengupta
Published: Tuesday 26 February 2019
Credit: Agnimirh Basu

केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी कृषि योजना राज्यों की शिथिलता का शिकार हो रही है। केंद्र द्वारा राष्ट्रीय कृषि विकास योजना- कृषि और संबंधित क्षेत्र पुनरोद्धार लाभकारी दृष्टिकोण (आरकेवीवाई-आरएएफटीएएआर) के लिए तीन तिमाहियों में जारी 1,950 करोड़ रुपए का इस्तेमाल ही नहीं हुआ। इस योजना का मकसद बुवाई से पहले और बाद के लिए बेहतर बुनियादी ढांचे का निर्माण करना है।

बिहार और पंजाब समेत 15 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अब तक योजना के तहत 2018-19 में आवंटित धनराशि का इस्तेमाल ही नहीं किया है। उत्तरी पूर्वी राज्यों नागालैंड और त्रिपुरा ने ही 25 जनवरी 2019 तक 60 प्रतिशत से अधिक धनराशि का इस्तेमाल किया है।

आरकेवीवाई-आरएएफटीएएआर केंद्र द्वारा प्रायोजित ऐसी योजना है जिसमें राज्य कृषि और संबद्ध क्षेत्र की विकास गतिविधियों का चयन करते हैं। यह योजना नई खोजों और कृषि उद्यमिता को भी प्रोत्साहित करती है।

मकसद से भटकाव

पंजाब को भारत का फूट बास्केट कहा जाता है। पंजाब ने इस योजना के तहत 44.59 करोड़ जारी किए गए हैं जो आवंटित धनराशि 90 करोड़ से करीब आधा है। हैरानी की बात यह है कि जारी धनराशि का भी इस्तेमाल नहीं हुआ। पंजाब, तेलंगाना और झारखंड में भी ऐसा ही हुआ।

तमिलनाडु के मुख्यमंत्री पलानीसामी ने हाल ही में गजा चक्रवात से पेड़ों और फसलों को हुए नुकसान का हवाला देकर अतिरिक्त 625 करोड़ की मांग की थी। हालांकि यह राज्य भी वित्त वर्ष में जारी 170 करोड़ रुपए का महज 35 प्रतिशत ही इस्तेमाल कर पाया है।

योजना के प्रदर्शन को देखते हुए एक वास्तविक तस्वीर यह उभरती है कि केवल कृषि बजट को बढ़ाकर खस्ताहाल कृषि क्षेत्र को नहीं उबारा जा सकता।  

केंद्र सरकार ने अपने हालिया अंतरिम बजट में कृषि बजट में 144 प्रतिशत की अभूतपूर्व बढ़ोतरी की है। साल 2018-19 में बजट 57,000 करोड़ रुपए था जिसे 2019-20 में बढ़ाकर 1,40,764 करोड़ रुपए कर दिया गया है। बढ़ी धनराशि के बेहतर नतीजे हासिल करने के लिए जरूरी है कि प्रमुख योजनाओं का बेहतर क्रियान्वयन हो। योजना का मुख्य मकसद आधारभूत संरचनाओं में सुधार करना है जो इस वक्त देश में मौजूद ही नहीं है।

एसोसिएटेड चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की 2017 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में हर साल 50,473 करोड़ के कृषि उत्पाद भंडारण के बुनियादी ढांचे के अभाव में नष्ट हो जाते हैं।

रिपोर्ट कहती है कि भारत की कोल्ड स्टोरेज क्षमता विश्व में सर्वाधिक है, लेकिन इसका वितरण अनियमित है। अधिकांश कोल्ड स्टोरेज यूनिट उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात, पंजाब और आंध्र प्रदेश में ही केंद्रित हैं। इसके अलावा अधिकांश कोल्ड स्टोरेज यूनिट एक दशक से ज्यादा पुरानी हैं और ये केवल आलू के भंडारण के लिए बनाई गई हैं। नतीजतन, कोल्ड स्टोरेज क्षमता का 25 प्रतिशत अप्रयुक्त रहता है।

केंद्र और राज्य सरकारें कोल्ड स्टोरेज पर निवेश और क्षमता बढ़ाने पर विचार कर रही हैं। सरकारों को इस पर विचार करने के साथ यह भी देखना होगा कि पहले से मौजूद क्षमता का उपयोग हो।

Subscribe to Daily Newsletter :

India Environment Portal Resources :

Comments are moderated and will be published only after the site moderator’s approval. Please use a genuine email ID and provide your name. Selected comments may also be used in the ‘Letters’ section of the Down To Earth print edition.