पनीर ने बदली गांव की तस्वीर

उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों से पलायन की बढ़ती समस्या के बीच एक गांव ऐसा भी है, जहां से न केवल न के बराबर पलायन होता है, बल्कि आज यह गांव आत्मनिर्भरता की मिसाल भी बन गया है| पहाड़ों की रानी मसूरी से लगभग 20 किलोमीटर दूर बसे इस गांव को पनीर वाले गांव के नाम से जाना जाता है| आइये जानते हैं इस गांव की सफलता की कहानी:

On: Tuesday 12 January 2021
 

टिहरी गढ़वाल जिले के धनौल्टी तहसील में बसे इस गांव का नाम रौतू की बेली है| इस गांव में लगभग 250 परिवार रहते हैं जोकि ज्यादातर पनीर बना कर बेचने का काम करते हैं| आज ये परिवार लगभग 15 से 30 हजार रुपए प्रति माह कमा रहे हैं| देहरादून-उत्तरकाशी बाईपास मार्ग पर बसे इस गांव में पनीर खरीदने वालों की सुबह से लाइन लग जाती है और दोपहर होते-होते हर घर का पनीर बिक चुका होता है|

उत्तराखंड के ज्यादातर पहाड़ी गांव छोटे-छोटे हैं और जो बड़े भी हैं, उनमें रौनक कम ही देखने को मिलती है, लेकिन रौतू की बेली की रौनक और सम्पन्नता दूर से ही दिख जाती है| आज गांव के लोगों ने अपने घर पर या आसपास दुकान बना ली है, जहां पनीर बेचना शान का काम समझा जाता है| गांव की महिलाएं इस काम में पुरुषों से आगे हैं| शुचिता रावत भी इन महिलाओं में से एक हैं| उन्होंने बताया कि आज पनीर की वजह से यह गांव जाना जाता है| अब दूसरे गांव के लोग भी यहां पनीर बनाकर बेकने लाते हैं, ताकि उनका पनीर आसानी से बिक जाए|

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