सही कीमत नहीं मिलने पर राजस्थान के लहसुन किसान आंदोलनरत

राज्य सरकार ने इस बार 2957 रुपए प्रति क्विंटल तय किया जबकि बीते सालों में 3257 रुपए था, किसान पांच हजार रुपए प्रति क्विंटल की मांग कर रहे हैं

By Anil Ashwani Sharma

On: Friday 24 June 2022
 
फोटो: सीएसई

राजस्थान के कोटा संभाग के चार जिलों में इस बार लहसुन की बंपर फसल होने के कारण किसानों को लागत मूल्य भी नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में वह कम कीमत पर बेचने पर मजबूर हो रहे हैं। लेकिन अब इन जिलों के लगभग 1,200 किसानों ने 22 जून से कोटा में खरीद की अच्छी कीमत पाने के लिए आंदोलन शुरू कर दिया है।

किसानों ने राज्य सरकार को चेतावनी दी है कि उनके द्वारा प्रस्तावित कीमत 2,957 रुपए प्रति क्विंटल बहुत कम है और साथ ही किसानों का कहना है कि जब 2018 में राज्य सरकार ने 3,257 रुपए प्रति क्विंटल से खरीद की थी तो इस बार कैसे कम पैसे का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया? किसानों का कहना है कि केंद्र सरकार से दो जून को खरीद की मंजूरी मिलने के बाद भी अब तक राज्य सरकार ने लहसुन की खरीद शुरू नहीं की।

किसानो का कहना है कि राज्य सरकार ने हमसे बिना किसी विचार-विमर्श के ही चार साल पहले तय कीमत से भी कम कीमत का प्रस्तताव गुपचुप तरीके से केंद्र को भेज दिया। जिसे केंद्र सरकार ने बिना किसी हिचक के दो जून 2022 को स्वीकृती दे दी। किसानों का कहना है कि जब तक लहसुन की कीमत प्रति क्विंटल 5,000 रुपए नहीं होगी तब तक वे आंदोलन करते रहेंगे।

भारतीय किसान संघ का कहना है कि राज्य सरकार ने हमें लगातार अंधेरे में रखा है। हम उनसे जनवरी, 2022 से मांग कर रहे हैं कि बाजार हस्ताक्षेप योजना के तहत खरीद का मूल्य पिछले साल के मुकाबले अधिक होना चाहिए लेकिन राज्य सरकार ने तो हद ही कर दी और पिछले साल के मुकाबले कम कीमत पर ही खरीद का मूल्य तय कर दिया। यह सरासर हमारे साथ अन्याय है।

भारतीय किसान संघ के प्रवक्ता आशिष मेहता ने डाउन टू अर्थ को बताया कि लहसुन की कीमत पिछले साल से कम होने लगी थी, ऐसे में किसानों ने अपनी लहसून को रोक लिया था लेकिन यह भी सभी जानते हैं कि लहसुन जैसी चीज को अधिक दिनों तक स्टोर नहीं किया जा सकता है। उस समय लहसुन दो से तीन रुपए किलो बिक रहा था।

ऐसे हालात में हमने जनवरी में ही राज्य सरकार को चेताना शुरू कर दिया था अभी किसानों को पुराने लहसून की सही कीमत नहीं मिल पा रही है और अब नया लहसून आने वाला है, ऐसे में राज्य सरकार को नए लहसून की खरीद की प्रक्रिया शुरू कर देनी चाहिए।

ध्यान रहे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी तो कुछ ही फसलों पर किसानों को सरकारें देती हैं। लहसुन  चूंकि मसालों में आता है तो राज्य सरकार ने मसालों के लिए यह व्यवस्था कर रखी है कि इस प्रकार की फसलों को “बाजार हस्ताक्षेप योजना” के तहत खरीद की जाती है। इस योजना के तहत राज्य सरकार अपनी ओर से एक प्रस्ताव तैयार कर भेजती है और उस प्रस्ताव को केंद्र सरकार हरी झंडी दिखाता है।

खरीदी के तहत आधा पैसा केंद्र और आधा राज्य सरकार देती है। इसकी मंजूरी केंद्र सरकार ही देती है।

किसानों का कहना है कि हमारे द्वारा मांग किए जाने के बावजूद राज्य सरकार ने प्रस्ताव भेजने में देरी की और इसके कारण नई फसल आ भी गई। लेकिन खरीदी की कहीं कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण किसानों को दो से पांच रुपए किलो बेचने पर मजबूर हो गए। इतना ही नहीं इस पैसे से तो लहसुन की पैदावार की लागत तो दूर इसकी कटाई के पैसे भी नहीं निकल पा रहे थे। ऐसे में बड़ी संख्या में किसानों ने खेतों ही लहसुन को पड़े रहने दिया।

दो जून को राज्य सरकार को केंद्र की तरफ से खरीदी की अनुमति मिल गई थी लेकिन राज्य सरकार ने शुरू नहीं की। हां अब आंदोलन के कारण खरीदी शुरू की है लेकिन सरकारी अफसरों ने खरीद के लिए दूर-दूर कांटे लगाए हैं। इससे किसानों को वहां तक लाने की लागत अधिक हो गई है। ऐसे में किसानों ने मांग की कि कांटे कम कम दूरी पर लगाएं जाएं लेकिन अब तक पास-पास कांटे नहीं लगाए गए हैं।

यहीं नहीं सरकार ने इस बार कहा है कि वह केवल 43 मीट्रिक टन ही लहसुन की खरीद करेगी। इस पर भी किसानों का विरोध है। और किसानों का कहना है कि राज्य सरकार खरीदी की केवल औपचारिता निभा रही है।

ध्यान रहे कि बाजार हस्तक्षेप योजना में पूर्व में घाटा हुआ था। केंद्र और राज्य सरकार ने बाजार हस्तक्षेप योजना के तहत राजफैड ने 2018 में लहसुन की खरीद की थी। इस पर करीब 258 करोड़ रुपए का खर्च आया था। लहसुन को दिल्ली में बेचने पर 9 करोड़ 43 लाख और कोटा में 57 करोड़ 22 लाख रुपए सरकार की आय हुई थी। इन्हें मिलाकर करीब 67 करोड़ रुपए सरकार को मिले थे। इस लहसुन खरीद में 191.45 करोड़ का खर्च सरकार का हुआ था जिसे राज्य और केंद्र सरकार दोनों ने वहन किया था।

राजस्थान के हाड़ौती इलाके में में इस साल एक लाख 15 हेक्टेयर में लहसुन की बुआई हुई थी बुआई के बाद जमीन में लगातार नमी रहने के कारण उत्पादन भी कम हुआ। किसान रबी सीजन में लहसुन की जब बुआई की तैयारी कर रहे थे तब लहसुन का दाम 70 से 100 रुपए किलो था। किसानों ने अच्छे दामों की उम्मीद में इस बार लहसुन की जबरदस्त बुआई की थी। अब फसल आते ही दाम औंधे मुंह गिर गए हैं। मंडियों में औसत भाव 25 से 35 रुपए किलो का है। पिछले साल कोटा संभाग में 95 हजार हेक्टेयर में बुआई हुई थी जबकि इस साल 1.15 लाख हेक्टेयर में बोया गया था।

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