उत्तराखंड में कैंपा फंड से सहेजी जाएंगी ऑर्किड की प्रजातियां

राज्य के समृद्ध जैव विविधता वाले क्षेत्र में ऑर्किड की कुल 236 प्रजातियां चिन्हित की गई हैं। अलग-अलग अध्ययन में यह भी पाया गया है कि राज्य में ऑर्किड फूलों के लिए अच्छा पर्यावरणीय माहौल है।

By Varsha Singh

On: Wednesday 11 December 2019
 
Photo : Varsha Singh

फूलों की दुनिया में ऑर्किड की अलग अहमियत है। ज्यादातर हिमालयी राज्यों में पाए जाने वाले ऑर्किड फूल अपने रंग, खास बनावट  और जटिल पुष्प संचरना के चलते बेहद दिलकश माने जाते हैं। अगर आप प्रकृति प्रेमी हैं और फूलों में दिलचस्पी रखते हैं तो उत्तराखंड का प्रोजेक्ट ऑर्किड आपको आकर्षित करेगा। उत्तराखंड वन विभाग ने कैंपा योजना (कॉम्पनसेटरी एफॉरेस्टेशन फंड मैनेजमेंट एंड प्लानिंग अथॉरिटी) के तहत ऑर्किड की अलग-अलग प्रजातियों को सहेजने के लिए प्रोजेक्ट ऑर्किड शुरू किया है।

उत्तराखंड वन विभाग के वन संरक्षक (अनुसंधान) संजीव चतुर्वेदी बताते हैं कि वर्ष 2018-19 से 2022-23 तक के इस प्रोजेक्ट का उद्देश्य पर्यावरण के लिहाज से अहम ऑर्किड की प्रजातियों को उनके प्राकृतिक वास में सहेजना है। उन्होंने बताया कि पिथौरागढ़ के गोरी घाटी क्षेत्र के लुमती वन पंचायत में ऑर्किड के फूल लगने शुरू हो गए हैं। यहां 4.25 हेक्टेअर क्षेत्र में ऑर्किड की 36 प्रजातियां सहेजी गई हैं। गोरी घाटी क्षेत्र के अंदर और आसपास के इलाकों में शोधकर्ताओं ने वर्ष 2019 तक ऑर्किड की 127 प्रजातियां चिन्हित की हैं।

ऑर्किड धरती के साथ पत्थर, पेड़ या झाड़ियों पर भी पनप जाता है। राज्य के समृद्ध जैव विविधता वाले क्षेत्र में ऑर्किड की कुल 236 प्रजातियां चिन्हित की गई हैं। अलग-अलग अध्ययन में यह भी पाया गया है कि राज्य में ऑर्किड फूलों के लिए अच्छा पर्यावरणीय माहौल है। गोरी घाटी क्षेत्र को हम इनका पसंदीदा घर भी कह सकते हैं।

लुमती के अलावा चमोली के मंडल गांव और नैनीताल में भी ऑर्किड को संरक्षित करने का कार्य किया जा रहा है। चमोली के गोपेश्वर में मंडल से तुंगनाथ के बीच ऑर्किड की 67 प्रजातियां सहेजी गई हैं। यहां का कुंड-कालीमठ क्षेत्र ऑर्किड का हॉट स्पॉट माना जाता है। 67 में से 17 प्रजातियां अपने औषधीय गुणों के लिहाज से स्थानीय लोगों के बीच बेहद अहम मानी चाती हैं। साज-सज्जा के साथ इसके औषधीय गुणों के चलते स्थानीय लोग भोजन से लेकर दवाओं तक इसका इस्तेमाल करते हैं।

इसी वर्ष जुलाई में बॉटेनिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने ऑर्किड फूलों को लेकर अपनी पहली सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी की। जिसमें बताया गया कि देश में 1,256 ऑर्किड की प्रजातियां हैं। जिनमें से 388 प्रजातियां खत्म होने की ओर बढ़ रही हैं। ऑर्किड फूलों के लिए सबसे ज्यादा समृद्ध अरुणाचल प्रदेश हैं, जहां इसकी 612 किस्मों के फूलों मिलेंगे। इसके बाद सिक्किम 560 अलग-अलग किस्म के साथ दूसरे नंबर पर हैं। पश्चिम बंगाल के दार्जलिंग में ऑर्किड की 479 प्रजातियां पायी गईं।

समूचे ऑर्किड परिवार को कनवेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन एनडेंजर्ड स्पिसीज़ ऑफ वाइल्ड फॉना एंड फ्लॉरा के तहत अपेंडिक्स-2 में शामिल किया गया है। यानी इन पर फिलहाल कोई पर्यावरणीय खतरा नहीं है लेकिन इसकी आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। इसलिए उनके व्यापार पर वैश्विक प्रतिबंध लागू है।

ऑर्किड के बारे में कुछ दिलचस्प बातें

सभी फूलों को दो बराबर के हिस्सों में बांटा जा सकता है।

ऑर्किड की जड़ें आम पौधों की तरह नहीं होतीं। इनकी जड़ें बाहर की ओर भी होती हैं।

ऑर्किड पत्थर पर भी पनप सकता है।

ऑर्किड की दुनिया बनी रहे, इसके लिए जरूरी है कि इनके आसपास कीटों की दुनिया बनी रहे। तभी इनका परागण संभव होता है।

ऑर्किड लाखों की संख्या में छोटे-छोटे बीज पैदा करता है लेकिन इनमें से कुछ ही पौधों के रूप में बड़े हो पाते हैं।

ऑर्किड फूल कुछ घंटों से लेकर 6 महीने तक जीवित रह सकते हैं।

जीवाश्म साक्ष्यों के मुताबिक ऑर्किड धरती के पुराने पौधों में से एक हैं और करीब 10 करोड़ वर्ष से अपनी मौजूदगी दर्ज करा रहे हैं।

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