दक्षिण भारत में प्रोटीन स्रोत के लिए प्रमुख आहार है फील्ड बीन

कन्नड़ भाषा में इसे हिटिकिडा अवेरेकालु नाम कहा जाता है और इसकी स्वादिष्ट करी  पूरी या चपाती के साथ खाई जाती है।  

On: Thursday 30 September 2021
 
Photo By : Wikimedia Commons

-अनीता रेड्डी 

सर्दियां आते ही हमारे देश के दक्षिणी हिस्से फील्ड बीन फीवर की चपेट में आ जाते हैं। यह वह चीज है जो नाश्ते से लेकर दोपहर और रात के खाने तक में अपनी जगह बना लेती है। डॉलिकस लैब, जिसे फील्ड बीन के अलावा  ऑस्ट्रेलिया में पुअर मैन  बीन, कैरिबियन में बटर बीन जैसे नामों से जाना जाता है, मनुष्य को ज्ञात सबसे पुरानी फलीदार फसल है। यह हमारे देश के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में उगता है।

यह प्रोटीन, खनिज और विटामिन में समृद्ध है, और दक्षिण भारतीय आहार के लिए प्रोटीन का एक प्रमुख स्रोत है। यह दुधारू पशुओं के लिए पौष्टिक, हरे चारे के रूप में भी प्रयोग किया जाता है । इसमें सूखे मौसम को सहन करने की क्षमता के साथ - साथ अपने आप को विभिन्न परिस्थितियों के लिए अनुकूलित करने की भी क्षमता है । 

फील्ड बीन को अन्य फसलों के साथ संयोजन में उगाया जाता है। 'अक्काड़ी ' नामक मिश्रित फसल प्रणाली कर्नाटक के दक्षिणी क्षेत्र में व्यापक रूप से प्रचलित है। इस प्रणाली में  मुख्य फसल के रूप में रागी होती है और  , तिलहन, दलहन, अनाज और फील्ड बीन एक महत्वपूर्ण संयोजन है । किसानों ने  स्वदेशी ज्ञान की मदद से फील्ड बीन को फसल चक्रण में समायोजित किया है । यह भूमि की उर्वरता बढ़ाने के साथ साथ कवर क्रॉप  के रूप में भी काम करती है क्योंकि इस फसल में बाहरी इनपुट और श्रम की आवश्यकता न के बराबर होती है । खर -पतवार और रोग चक्र को तोड़ने के अलावा गिरी  हुई पत्तियां मिट्टी के लिए खाद का काम भी करती हैं और यह पूरी प्रक्रिया सस्ती एवं पर्यावरण अनुकूल होती है । यह वायुमंडलीय नाइट्रोजन को फिक्स करके और मिट्टी में जैविक कार्बन जोड़कर मिट्टी की उर्वरता में सुधार करता है और अगली फसल को नाइट्रोजन भी उपलब्ध कराता है । 

फिंगर मिलेट और बाजरे की अन्य किस्में  मुख्य फसल के रूप में उगाई जाती हैं और फील्ड बीन  की फलियां मिट्टी की उर्वरता और संरचना में सुधार करती हैं।  फील्ड बीन्स की खेती के लिए मुख्य रूप से महिलायें  जिम्मेदार होती  हैं और वे इस अनाज की  स्थानीय किस्म का उपयोग खाने और पशुओं के चारे के स्रोत के रूप में करती हैं।

किस्मों की विविधता - यह अपेक्षाकृत ठंडा मौसम पसंद करती है, इसलिए बीन को जुलाई-अगस्त के दौरान बोया जाता है और दिसंबर के महीने  में काटा जाता है । मार्च तक इसकी ताजी फलियों का आनंद लिया जाता है। बीन पॉड्स - मीठी, मक्खन जैसी  बारहमासी झाड़ीदार, लताएं हैं जो जमीन पर फैलती हैं और कुछ ट्विनिंग-पोल बगीचे की किस्में हैं। फील्ड बीन की कई किस्में पाई जाती हैं और हरी एवं भूरी किस्में सर्वाधिक मिलती हैं । इनके फूल मुख्यतः सफेद  होते हैं लेकिन कुछ किस्मों के फूल बैंगनी या नीले भी हो सकते हैं । कुछ फलियाँ  लंबी और कुछ छोटी होती हैं, कुछ में पतले बीज होते हैं और कुछ मोटे और हल्के हरे रंग के होते हैं जो एक नाजुक चमक के साथ चमकते हैं। कुछ आकर्षक रंगों वाले या फिर  धब्बेदार होते हैं।

कर्नाटक में फील्ड बीन के स्थानीय नाम 'अवारे', 'चिनुगुलु' 'डब्बे आवरे', आवेकालू, 'पापड़ी' लता किस्म हैं जो राजस्थान और गुजरात में उगाई जाती हैं, जो एक ही परिवार से संबंधित हैं। तमिल में अवाराई या अवाराईकाय, मराठी में पावता ,  गुजराती में सुरती लिल्वा और तेलुगु में अनापकायलु । बीन कुछ स्थानों पर बैंगनी रंग की होती है, लेकिन भारतीय  किस्म आमतौर पर हरी होती है। यह पौधा  अफ्रीका और भारत में मूल रूप से पाया जाता है। 

अवारे का स्वाद - फलियों को छिलके के साथ ताजा बेचा जाता है - फलियों को हल्का दबाकर और निचोड़कर उनका पतला पारभासी आवरण हटा दिया जाता है।

इसी वजह से  कन्नड़ भाषा में इसे हिटिकिडा अवेरेकालु नाम कहा जाता है और इसकी स्वादिष्ट करी  पूरी या चपाती के साथ खाई जाती है। अवारेकाई उसली या पोरियाल के लिए पकी बीन को  ताजे नारियल के साथ तलकर  रसम और चावल के साथ एक त्वरित और स्वादिष्ट दोपहर के खाने के रूप में प्रयोग किया जाता है । 

फील्ड बीन एक ऐसी सामग्री है जो सर्दियों में हर व्यंजन में इस्तेमाल में आती है  - आलू की सब्जी से लेकर चावल , कीमा , वेज करी से लेकर इडली, डोसा, उपमा, रोटी, यहां तक कि मिठाई तक में भी । वास्तव में, अधिकांश पारंपरिक घरों में सर्दियों के महीनों में यह एक प्रमुख गतिविधि है । निश्चित रूप से भोजन एक ऐसी चीज है जो सबको एक स्तर पर लाती  है, और अवारेकाई इसका एक आदर्श उदाहरण है।

इसे भी तेल में डीप फ्राई करके, भुने हुए नारियल के स्लाइस और नट्स के साथ मिलाकर एक स्वादिष्ट स्नैक बनाया जाता है। इसका स्थानीय व्यंजनों में भी भरपूर प्रयोग होता है और बंगलोरवासी इसे चाव से खाते हैं । 

'बैंगलोर बीन्स' कही जाने वाली फलियों का इस शहर के  साथ एक ऐतिहासिक जुड़ाव है, क्योंकि कहानी यह है कि कई सदियों पहले एक  होयसला राजा शिकार के लिए निकल था और रास्ता भटक गया था । वह एक बूढ़ी औरत की झोपड़ी पर आया, जिसने उसे पकी हुई फलियाँ  (बेंदा कालू) खाने को दीं । उसकी उदारता से प्रसन्न होकर, उन्होंने इस क्षेत्र का नाम बेंडेकलुरु रखा - उबली हुई फलियों का शहर - जो समय के साथ बेंगलुरु बन गया। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि बैंगलोर के लोग आवरेकाई को उत्सव की तरह मनाते हैं । 

फसल का त्योहार - चूंकि यह संक्रांति त्योहार के दौरान नई उगाई गई फसलों के उत्सव से संबंधित है, इसलिए किसान ताजी कटी हुई फसलों और फील्ड बीन  के ढेर की भव्य तरीके से पूजा करते हैं।  यह अच्छी फसल के लिए देवताओं को चढ़ाया जाता है। फील्ड बीन  और मूंगफली संक्रांति त्योहार में साथ इस्तेमाल होते हैं 

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