यह सिर्फ पंजाब-हरियाणा का नहीं पूरे देश का समग्र किसान आंदोलन : साक्षात्कार में बोले राकेश टिकेैत

यह आंदोलन सिर्फ एमएसपी और तीन कृषि कानूनों तक नहीं सिमटा है बल्कि अब वक्त आ गया है कि किसान मोर्चा ले, यह एक क्रांति बन चुका है। 

By Vivek Mishra, Anil Ashwani Sharma

On: Wednesday 08 September 2021
 
Photo : दिल्ली गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों को संबोधित करते हुए, द्वारा : विवेक मिश्रा

सुप्रीम कोर्ट के जरिए फिलहाल स्थगित केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों  को वापस लेने और फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी देने के लिए देश में बीते 9 महीने से किसान आंदोलन जारी है। इस बीच किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे किसान नेता राकेश टिकैत ने अपने गृह जनपद मुजफ्फरनगर में एक विशाल महापंचायत की है, जिसके बाद एक बार फिर किसान आंदोलन ने गति पकड़ ली है। कृषि संकट और कृषि कानूनों को लेकर किसान नेता राकेश टिकैत से विवेक मिश्रा और अनिल अश्वनी शर्मा ने विस्तृत बातचीत की ....

 

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में संपन्न हुई महापंचायत बीती पंचायतों से कितनी अलग और खास है? 

राकेश टिकैत : पहले भी महापंचायत गांवों में हुईं, उनके भी मुद्दे रहते थे, लेकिन इस बार खास और अहम बात यह थी कि यह महापंचायत शहर के बीचो-बीच की गई, जिसमें देश के अलग-अलग हिस्सों से किसान पहुंचे। इस आंदोलन में न सिर्फ गांव बल्कि पूरे शहर का समर्थन रहा। महापंचायत में शामिल होने वाले तमाम लोगों ने श्रमदान किया। बाहर से आने वाले लोगों के लिए शहर के लोगों ने भी दरवाजे खोले। यह महापंचायत तीन काले कृषि कानून को वापस लेने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी देने की मांग को पुरजोर उठाने के लिए थी। हर वह संस्था जो सार्वजनिक उपक्रम है और जनता की सहभागिता से चलती हैं, उसे बचाने के लिए यह महापंचायत थी। आगे के लिए रणनीति बनाई गई कि आगे भी देश के अलग-अलग हिस्सों में यह लड़ाई जारी रहेगी। 

जैसा पहले राजनीतिक पार्टियां आरोप लगा रही थीं, क्या यह अब भी पंजाब-हरियाणा का ही आंदोलन है? 

राकेश टिकैत : बिल्कुल नहीं। यह आंदोलन पूरे देश का है। यह एक या दो राज्य का आंदोलन नहीं है। सरकार के नए कृषि कानूनों से पूरा देश प्रभावित होगा। हो सकता है कि कोई राज्य छह महीने पहले प्रभावित हो और कोई छह महीने बाद। कृषि लागत और महंगाई बढ़ रही है। नए कृषि कानूनों से समस्या और बढ़ जाएगी। मिसाल के तौर पर उत्पादन के लिए किसान कृषि ऋणों पर आश्रित हैं, ऐसे में आने वाले समय में किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) से मिलने वाले ऋणों की जरूरत और बढ़ जाएगी। जिसे आज दो लाख रुपए ऋण लेना पड़ रहा है और 4 लाख लेना होगा और जिसे आज 4 लाख की जरुरत है वह 10 लाख की मांग करेगा। देश के अलग-अलग हिस्सों में महंगाई और खेती में ऊंची लागत से त्रस्त किसान यह समझ रहे हैं और वह इस किसान आंदोलन के साथ हैं। 

आपको लगता है कि अब इस महापंचायत के बाद अब आपकी बात सरकार सुन लेगी?

राकेश टिकैत :  पहले सरकारें पब्लिक की होती थी, लेकिन आज वह पब्लिक से कोई टच नहीं रखना चाहतीं। ग्राउंड रिपोर्ट नहीं रखना चाहतीं। आज बड़ी-बड़ी कंपनियां सत्ता की हिस्सेदारी कर रही हैं। इस वक्त जनता की नहीं सुनी जा रही। आंदोलन के जरिए यह आवाज जरूर उनके कानों में पहुंची है। सरकार को जरूर ही सुनना होगा, और हम तब तक नहीं रुकेंगे जब तक वह मान न जाए।  

सरकार तो योजनाओं के लिए भू-स्वामियों को किसान मानती है, आपकी नजर में इस देश में किसान कौन है ?

राकेश टिकैत:  सच्चाई यह है कि सरकार किसान को किसान ही नहीं मानती है। वह किसानों को छोटा-बड़ा और पता नहीं क्या-क्या बताती है। हमारी परिभाषा में पशु पालने वाला, सप्ताहिक बाजार में रेहड़ी-पठरी पर अनाज बिक्री करने वाले, खेत में कारने वाले, नमक के लिए काम करने वाले मजदूर भी किसान हैं। जो किसान है उसे दर्जा मिलकर रहेगा। यह मजदूर आंदोलन है। गांव का आंदोलन है। हम ऐसे सभी लोगों के लिए यह आंदोलन कर रहे हैं।  

आपकी नजर में 2021 में  किसानों की क्या दशा है?

राकेश टिकैत : किसानों को 24 घंटे बिजली और खेती की अन्य सुविधाओं को हासिल करने के लिए मोर्चा लड़ना होगा। फिलहाल हम अभी इस बात पर जोर दे रहे हैं कि भारत में कम से कम किसानों को उनकी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) तो मिलना ही चाहिए। सोचिए कि किसानों को एमएसपी की गारंटी लागू कराने के लिए 9 महीने से आंदोलन करना पड़ रहा है। सरकार किसान हितों के लिए काम नहीं कर रही है। यहां तक कि घोषणा पत्र में किसान हितों के लिए जो वादे किए गए थे, उन पर भी काम नहीं किया गया। जिस तरह से बाजार बढ़ा है उस तरह किसानों की आय और आमदनी नहीं बढ़ी है। किसानों का तो कत्लेआम हो रहा है। बाबा महेंद्र सही कहते थे तब गेहूं बेचकर किसान सोना खरीद लेता था। ऐसे में आज गेहूं की कीमतें किसानों को प्रति कुंतल 15 हजार रुपए मिलनी चाहिए लेकिन आज तो गेहूं की कीमतों से लागत नहीं निकल रही। 

किसानों को खुले बाजार में 6 रुपए किलो तक धान बेचना पड़ा है, इसका स्थगित कृषि कानूनों से क्या संबंध है?

राकेश टिकैत :  यही तो है एमएसपी गारंटी कानून खत्म करने के पीछे की कहानी। सरकार मंडियों को खत्म करके किसानों को बर्बाद करना चाहती है।  हम यही कह रहे हैं कि जब खरीदार और बिक्री करने वाले दोनों कॉर्पोरेट के लोग होंगे तो वही सबकुछ तय करेंगे, क्योंकि होल्डिंग की शक्ति उनके पास हैं।  किसान से सस्ते भाव में फसल खरीदकर होल्ड करेंगे और वर्ष भर सस्ता-महंगा जैसा होगा बेचेते रहेंगे। यह किसानों की कमर तोड़ देगा। अभी फसलों की एमएसपी की दरें तय करने की जो प्रक्रिया है वह भी ठीक नहीं है। जो दरें फसलों पर थीं, वह उचित नहीं थी। हालांकि पहले सरकार यह गारंटी दे फिर इन सवालों का भी हल निकाले।  

आवारा पशुओं की समस्या से कृषि उत्पादक राज्य हलकान हैं, कौन जिम्मेदार है ?

राकेश टिकैत : सरकार ही इसके लिए पूरी जिम्मेदार है। पशुपालन काफी महंगा हो गया है। किसान पशुओं को संभाल नहीं पा रहा। जीएम कॉटन का बिनौला (पशु आहार) जबसे आया तो तबसे पशुओं में बहुत बीमारियां आ गईं। पशु बांझपन के शिकार हो गए। किसान मजबूर होकर उन्हें बाहर छोड़ता है। सरकार को चाहिए कि वह गौशलाए बनाए। 

क्या यह एक समग्र आंदोलन है और इससे कृषि संकट का रास्ता निकलेगा ?

राकेश टिकैत : यह आंदोलन तीन कृषि कानूनों को लेकर ही शुरु हुआ है।  मेरा मानना है कि फसलों के जब सही रेट किसानों को मिलेंगे तभी देश के हालत सुधरेंगे। इस समय जिस तरह के हालात पैदा हुए हैं और एक-एक करके संसाधनों को बेचा जा रहा है उसके खिलाफ आवाज बुलंद की जा रही है। इसका एक दिन इन्हें (सरकार को) पता जरूर चलेगा। जब सरकार बातचीत के लिए एक कमेटी बनाएगी तो कृषि संकट के प्रमुख मुद्दों को भी उनके समक्ष रखा जाएगा। यह आंदोलन पूरी तरह अराजनैतिक था, है और रहेगा। इसका चुनावों से कोई लेना-देना नहीं है। सरकारों को अपने गलत निर्णयों और नीतियों को वापस करना ही होगा। अब यह क्रांति बन चुका है, जो रुकेगा नहीं। 

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