बाजरा और जूट पर संकट : बुआई के लिए पर्याप्त बीज ही नहीं

देश में राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा प्रमुख मिलेट उत्पादक राज्य हैं।

By Vivek Mishra

On: Monday 27 June 2022
 

पोषण को ध्यान में रखते हुए मोटे अनाज को प्रोत्साहित करने के लिए भारत सरकार अगले साल यानी 2023 में इंटरनेशनल मिलेट ईयर मनाएगी। भारत इसकी अगुवाई कैसे करेगा जब इस वर्ष बुआई के लिए पर्याप्त सर्टिफाइड बीज ही नहीं है।  

केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अधीन क्रॉप फोरकास्ट कोऑर्डिनेशन सेंटर ने ने 17 जून, 2022 को एक बैठक में कहा कि खरीफ सीजन-2022 में कुल 160.45 लाख कुंतल की जरूरत के विरुद्ध कुल 177.97 लाख कुंतल बीज की उपलब्धता बनी हुई है हालांकि जूट और मिलेट के लिए सर्टिफाइड यानी गुणवत्ता युक्त पर्याप्त बीज उपलब्ध नहीं है। 

इतना ही नहीं सेंटर ने कहा कि कुछ राज्यों में कुछ कमोडिटीज भी ऐसे हैं जिनके पर्याप्त बीज उपलब्ध नहीं हैं।  

ज्वार, बाजरा, रागी, मड़ुवा, सावां, कोदों, कुटकी, कंगनी, चीना आदि मोटे अनाज के महत्त्व को पहचान कर भारत सरकार ने 2018 में यह प्रस्ताव दिया था कि 2023 को इंटरनेशनल मिलेट ईयर के रूप में मनाया जाएगा। भारत में हरित क्रांतेि के बाद से मोटे अनाज का न सिर्फ रकबा घटा बल्कि उत्पादन में भी बड़ी कमी आई। मसलन 1950-55 से 2015-20 तक मोटे अनाज का 56 फीसदी रकबा घट गया। 

देश में राजस्थान, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, हरियाणा प्रमुख मिलेट उत्पादक राज्य हैं। चारा संकट लेकर पोषक आहार की उपलब्धता का संकट पहले से ही जारी है। ऐसे में पर्याप्त बीजों की अनुपलब्धता स्थिति को और खराब बना सकती है। 

इसके अलावा जूट संकट के कारण जहां जूट बैग बनाने वाली मिल्स बंद हो रही हैं वहीं जूट उतपादन से भी किसानों का मोहभंग हो रहा है।  क्रॉप फोरकास्ट कोऑर्डिनेशन सेंटर ने अपनी बैठक में जूट के सर्टिफाइड बीजों की भी कमी का जिक्र किया है। ऐसे में जूट संकट आगे बना रह सकता है। 

खरीफ सीजन में भले ही अन्य कमोडिटीज के लिए पर्याप्त बीजों का हवाला दिया जा रहा है सच्चाई यह है कि मानसून की देरी और वर्षा के असमान वितरण ने धान की बुआई में भी देरी पैदा कर दी है। 

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