कामारेड्डी मास्टर प्लान का विरोध : एक किसान ने की आत्महत्या, सड़कों पर उतरे सैकड़ों किसान

राज्य सरकार द्वारा कामारेड्डी जिले के मास्टर प्लान के लिए अधिग्रहित की जाने वाली जमीन संबंधी अधिसूचना निकाले जाने पर ग्रामीणों के बीच अपने खेतों के छिन जाने का डर पैदा हो गया है।

By DTE Staff

On: Friday 27 January 2023
 

तेलांगना के कामारेड्डी जिले के 36 वर्षीय एक किसान की आत्महत्या ने जिला मुख्यालय के लिए प्रस्तावित मास्टर प्लान के खिलाफ हजारों किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन किया जा रहा है। यह विरोध प्रदर्शन धीरे-धीरे पूरे राज्य में फैलते जा रहा है। आत्महत्या की घटना के बाद राज्यभर के किसान आंदोलित हो चुके हैं। गत तीन और चार जनवरी की रात को कामारेड्डी जिले के सदाशिवनगर मंडल के अदलूर येल्लारेड्डी गांव के एक सीमांत किसान पय्यावुला रामुलु ने फांसी लगाकर अपनी इहलीला समाप्त कर ली। बताया जाता है कि उन्होंने इस डर से यह भयानक कदम उठाया जब अधिकारियों द्वारा जिला मुख्यालय शहर के लिए बनाए जाने वाले मास्टर प्लान के लिए अधिसूचना जारी की। मृतक किसान को इस बात का डर था कि विकास के नाम पर उनका उपजाऊ खेत उनसे छीन लिया जाएगा।

ध्यान रहे कि रामुलू और उनके भाई नरेंद्र के पास केवल दो एकड़ जमीन थी, लेकिन जिला मुख्यालय के नजदीक होने के कारण जमीन की कीमत ज्यादा थी। भाइयों ने एक ही भूखंड पर एक-दूसरे के बगल में मामूली आरसीसी का मकान बनवाया हुआ था। रामुलु के परिवार में पत्नी शारदा और दो बेटे अभिनंद (16) और निशांत (12) हैं। देखने वाली बात यह है कि दो एकड़ जमीन आज भी उनकी मां नरसाव्वा के नाम ही है, जिनकी उम्र करीब 60 वर्ष है। द हिंदु में प्रकाशित खबर के अनुसार रामुलु के एक पड़ोसी आर. भूपति ने बताया कि यहां आमतौर पर मां के नाम पर जमीन होने से उन्हें बुढ़ापे में एक तरह की सुरक्षा मिली रहती है। ग्रामीण क्षेत्रों में आमतौर पर बच्चों के बीच जमीन का बंटवारा तभी किया जाता है जब माता-पिता बहुत अधिक बूढ़े हो जाते हैं। इसी गांव की कुमारी राजैया की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, जिसके पास इल्चीपुर गांव के बाहरी इलाके में पांच एकड़ के खेत हैं। अगर मास्टर प्लान लागू किया गया तो वे भी अपनी सारी जमीन खो देंगी। कई किसानों की स्थिति ऐसी ही बनी हुई है। रामेश्वरपल्ली के एक अन्य किसान मरीपल्ली बालकृष्ण ने भी अपने खेतों के छिन जाने के डर से गत 17 जनवरी को कीटनाशक खाकर आत्महत्या करने का असफल प्रयास किया था।

मिली जानकारी के अनुसार प्रस्तावित मास्टर प्लान को देखते हुए इस क्षेत्र के किसान अपनी भूमि के भविष्य को लेकर चिंतित हैं। इस महीने के पहले सप्ताह में जब बड़ी संख्या में किसानों ने प्रस्तावित मास्टर प्लान के खिलाफ आंदोलन शुरू किया तो राज्यभर के किसान ने इसका समर्थन किया। जिला प्रशासन, पुलिस और यहां तक कि राजनेताओं ने भी कल्पना नहीं की थी  कि इतने अधिक किसान एक जुट हो जाएंगे। विरोध कर रहे किसान इस मास्टर प्लान के प्रस्ताव वापस लेने के अलावा कुछ नहीं चाहते और उन्होंने अपना आंदोलन और तेज करने का फैसला किया है। अपना विरोध दर्ज कराने के लिए किसानों ने अनोखा तरीका अख्तियार किया है। इसके लिए किसानों ने फसल काटने के प्रमुख त्योहार मकर संक्रांति का इस्तेमाल किया। इस अनोखे विरोध का संदेश अधिकारियों तक पहुंचाने के लिए महिलाओं और बच्चों ने रंगोली कला का इस्तेमाल किया। हर घर के सामने बनने वाली रंगोली में “मास्टर प्लान रद्द करो”, “किसान नहीं-खाना नहीं”, “किसान को जीतना है-खेती जारी रखनी है”, और “हमारे खेतों में उद्योग लगाकर आप अपने घरों में मौज-मस्ती करेंगे” जैसे संदेशों से अटी पड़ी थीं रंगोली। यही नहीं यह भी संदेश रंगोली में लिखा गया कि  सरकार, विधायक और नगर निगम के अधिकारी-क्या यह उचित है? हालांकि अभी किसानों को इतना ही आश्वासन मिला है जिसमें कलेक्टर जितेश वी. पाटिल ने कहा कि दो फसलों वाली भूमि को मास्टर प्लान में शामिल नहीं किया जाएगा।

किसानों ने तेलंगाना उच्च न्यायालय में भी इससे संबंधित एक स्थगन याचिका दायर की थी लेकिन इस महीने के दूसरे सप्ताह में किसानों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने योजना पर रोक लगाने के लिए अंतरिम आदेश पारित करने से इनकार कर दिया था। सरकार की ओर से हाईकोर्ट को सूचित किया है कि सरकार मास्टर प्लान को अंतिम रूप देने से पहले किसानों द्वारा दायर आपत्तियों पर अवश्य गंभीर रूप से विचार करेगी।

ध्यान रहे कि मास्टर प्लान में सरकार द्वारा ली गई भूमि के लिए किसी मुआवजे का उल्लेख नहीं किया गया है क्योंकि यह विकास के उद्देश्य से ली जाने वाली जमीन है, जिससे जनता को लाभ होगा। राज्य सरकार के अधिकारी ने कहा कि  “मेरी जानकारी के अनुसार मास्टर प्लान के तहत शहर के विकास के लिए ली जाने वाली भूमि के लिए कोई मुआवजा नहीं दिया जाएगा। यहां तक कि सड़कें बनाने के लिए भी कोई मुआवजा नहीं दिया जाएगा। किसानों के आंदोलन का परिणाम जो भी हो लेकिन इस आंदोलन ने राजनीतिक दलों को परेशान अवश्य कर दिया है। 

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