सुनारों की नहीं, किसानों की है अक्षय तृतीया

अक्षय तृतीया सिर्फ सोना खरीदने का दिन नहीं है यह किसानों के लिए कृषि के नए चक्र की शुरुआत का भी दिन है।

By Richard Mahapatra, Vivek Mishra

On: Tuesday 07 May 2019
 
Photo: Agnimirh Basu

क्या आपने इस बार भी अक्षय तृतीया पर छूट का सोना खरीदने के लिए सुनारों (स्वर्णकार) के गलियों की खाक छान ली है। यदि हां, तो कोई बात नहीं, अब हम आपको इस अक्षय तृतीया में एक ऐसे गलियारे में लिए चलते हैं जहां असली सोना बिना किसी मोल के बर्बाद हो रहा है और उसका स्वर्णकार भुखमरी की कगार पर बैठा है।

कहते हैं कि असली सोना तो अनाज है और इसे किसान जैसा स्वर्णकार अपनी देशी सूझ-बूझ, मेहनत, विनम्रता और धीरज से पैदा करता है। वह धरती, आकाश, जल, वायु और अग्नि से खूब आग्रह करता है तब उसे अनाज के रूप में सोना मिलता है। यही सोना तो हममे से ज्यादा लोग पूरे वर्ष और हर रोज खरीदते और खाते हैं। इन्हीं से पकवान की सुगंध भी है और हमारी थालियों में छप्पन भोग की सजावट भी। देश के चारों हिस्सों में किसानों के लिए अक्षय तृतीया सजावट का सोना खरीदने या बेचने का दिन नहीं है। गांवों में रहने वाली हमारे पुरानी पीढ़ियों के लिए भी बिल्कुल नहीं था।

शायद इसीलिए पौराणिक गाथाओं में भी अक्षय तृतीया का महत्व अन्न से ही जोड़कर रखा गया। अक्षय का अर्थ है जिसका कभी क्षय न हो। महाभारत में एक किस्सा है कि पांडवों के लिए अनाज की कोई कमी न हो इसलिए कृष्ण ने द्रौपदी को एक अक्षय पात्र दिया था। इस पात्र की खासियत थी कि इसका अन्न कभी खत्म नहीं होता था। यह धरती भी एक ऐसा ही अक्षय पात्र है जो अनवरत हमें अन्न देती आई है। दुर्भाग्यवश हमने अपनी छोटाई से इस धरती यानी अक्षय पात्र का भी क्षय कर दिया है। अक्षय तृतीया मौसम, अन्न, किसान से ही जुड़ा हुआ दिन है। 

कृषि के नए चक्र की शुरुआत

मूल रूप से अक्षय तृतीया भारतीय कृषि के नए चक्र की शुरुआत का दिन है। यह भी प्रचलित है कि बैशाख माह की तृतीया यानी अक्षय तृतीया से ऋतु परिवर्तन हो जाता है।  वसंत ऋतु की समाप्ति और ग्रीष्म ऋतु की शुरुआत का दिन भी इसे माना जाता है। ग्रीष्म ऋतु में खरीफ सीजन की फसल बोई और काटी जाती है। बोआई की तैयारी अक्षय तृतीया के बाद यानी मई महीने से शुरु हो जाती है। अक्षय तृतीया से किसानों के लिए कृषि योग्य दिनों की गिनती और मौसम की भविष्यवाणियों का बही-खाता भी शुरु होता है। पंचांग से आप बखूबी परिचित होंगे। पंचांग ही हमें जानकारी देता है कि हिंदी माह की शुरुआत चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होती है। इस दिन को महाराष्ट्र में गुड़ी-पड़वा और आंध्र प्रदेश व कर्नाटक में उगादि पर्व के तौर पर मनाया जाता है। पंचांग का काम इतने पर ही नहीं खत्म होता।  

पंचांग में लिखी मौसम की तिथियां

पंचाग की तिथियां सिर्फ हमें लगन, दिशाशूल, शुभ-अशुभ ही नहीं बताती हैं बल्कि वे स्थानीय मौसम में बदलावों की तिथियां और वर्षा का पूर्वानुमान भी बताती हैं। मोटी बात यह है कि अक्षय तृतीया के दिन से किसानों के लिए नई फसल का वार्षिक कैलेंडर शुरु हो जाता है। आज इस दिन पर नई पीढ़ी को सोना खरीदने की नई परिभाषा भले ही सिखा और पढ़ा दी गई है हमारी पुरानी पीढ़ी बिना किताबी बोझ के मुंहजबानी ज्ञान पर चलती थी। मौसम का अनुमान लगाना और खेती-किसान के लिए तिथियों की लिखा-पढ़ी बेहद अहमियत वाला काम रहा है। पंचांग का इस्तेमाल बादलों के रूप और आकार को देखकर वर्षा का अनुमान लगाने के लिए बीते हजारों वर्षों से हो रहा है। पंचांग के जरिए पूरे वर्ष होने वाली वर्षा के प्रकार का भी अनुमान लगाया जाता है।

पंचांग में दर्ज कुल 9 तरीके के बादलों में नीलम और वरुणम ऐसे ही दो तरीके के बादल हैं, जिनसे भारी वर्षा का अनुमान लगता है। इसी तरह से कालम व पुष्करम नाम के बादल का अर्थ है कि हल्की बौछारें होंगी। इन पूर्वानुमानों को आधुनिक कसौटी पर भी जांचा और परखा गया है।  2012 में श्री वेंकटेश्वरा यूनिवर्सिटी और तिरुपति में राष्ट्रीय संस्कृत विद्यापीठ का शोध पत्र इंडियन जर्नल ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी में छपा था। इस शोध पत्र में 1992 से 2004 के बीच पंचाग की भविष्यवाणियों और रीयल टाइम की स्थितियों के बीच तुलनात्मक अध्ययन किया गया था। इस शोध का सार यह था कि पंचांगों में वर्षा की तिथियों का पूर्वानुमान 63.3 फीसदी सही निकला।

 

नया चलन, नई मार 

जैसे-जैसे यह नई सदी परवान चढ़ रही है। अक्षय तृतीया पर स्वर्ण खरीदने का नया-नया चलन भी तेजी से बढ़ रहा है। इसके उलट, असल स्वर्णकार यानी किसानों की आत्महत्या में भी बढ़ोत्तरी हो रही है और उनकी जेबें बिल्कुल खाली हैं। प्रत्येक वर्ष देश के अलग-अलग हिस्सों में करीब पांच हजार किसान आत्महत्या करते हैं। प्रत्येक किसान परिवार पर कम से कम 47 हजार रुपये का कर्ज है। वहीं, 200 रुपये से भी कम प्रतिमाह की आय अर्जित करने वाला किसान आकंठ कर्ज में डूबा है। यदि उसके खेतों में सूखा नहीं पड़ा तो बाढ़ जरूर आ जाएगी। हो सकता है कि भारी वर्षा ही उसके फसल को तबाह कर दे। यदि यह सब कुछ भी नहीं हुआ और फसल की बंपर पैदावार हो गई तो सरकार बाजार में आयतित अनाज की बाढ़ ले आएगी। इससे किसानों की फसलों का कोई मोल नहीं रह जाएगा। वे अपनी फसलों को बेचने से पहले सड़कों पर उसे डंप करने के लिए बेबस हो जाएंगे। यह सबकुछ हो रहा है और हम इस बीच शहरों में समृद्धि की देवी को खुश करने के लिए सोने की खरीद के लिए छूट का इंतजार कर रहे हैं।

 

मौसम का अनोखा पूर्वानुमान

खेती की तिथियों और अनुकूल मौसम की खोज का सफर बेहद पुराना और अनोखा रहा है। भील जनजाति दीवाली से ठीक एक दिन बाद गाय गौरी का उत्सव मनाती है। यह उत्सव भी मौसम के पूर्वानुमान से ही जुड़ा हुआ है। रंगी-बिरंगी गायों को एक दौड़ में शामिल किया जाता है। यह गाएं मंदिर की तरफ दौड़ती हैं। यदि सफेद रंग की गाय मंदिर के दरवाजे पर पहले पहुंच जाती है तो यह मान लिया जाता है कि अगले वर्ष मानसून बेहतर होगा। यदि भूरे रंग की गाय पहुंचती है तो औसत वर्षा होगी। वहीं, काले रंग की गाय यदि मंदिर में पहले पहुंचती है तो सूखा पड़ेगा। ऐसी अलग-अलग विधियां पूरे देश में मौसम का अनुमान लगाने के लिए ईजाद की गईं। 

गुजरात कृषि विश्वविद्यालय ने सौराष्ट्र क्षेत्र में 200 किसानों पर किए एक शोध में यह पाया कि 1990 से 2003 के बीच इन किसानों ने पारंपरिक ज्ञान के आधार पर वर्षा की जिस प्रवृत्ति का आकलन किया वह बहुत हद तक सही रहा। मौसम पूर्वानुमान में किसानों ने जिन सूचकों का इस्तेमाल किया उनमें इंद्रधनुष, सूर्य और चंद्र का बिंब, ओस आदि शामिल था। किसानों ने अक्तूबर से अप्रैल के बीच 195 दिनों का आकलन किया था। मिसाल के तौर पर मार्च में होली का पर्व मनाया जाता है। इस वक्त किसानों का आकलन होली से पहले और बाद में हवा की दिशा बदलावों पर आधारित था। उनका विश्वास था कि यदि हवा दक्षिण-पश्चिम क्षेत्र में बहती है तो सूखा आएगा। यदि हवा पश्चिम से आती है तो अच्छी वर्षा होगी। ऐसे ही मौसम को लेकर कई सूचक और अनुभव सही पाए गए।

 

अक्षय तृतीया मतलब धान का धन

उत्तर-प्रदेश के अवध क्षेत्र में घाघ और भड्डरी की अनुभवजनित मौसम भविष्यवाणियां भी खेती-किसानी का बड़ा हिस्सा हैं। अक्षय तृतीया पर कृषि के महत्व को लेकर ऐसी ही एक कहावत भड्डरी की प्रचलित है –

आखै तीज रोहिणी न होई। पौष अमावस मूल न जोई। महि माहीं खल बलहिं प्रकासै। कहत भड्डरी सालि बिनासै।

इस कहावत का संक्षिप्त मतलब है कि अक्षय तृतीया को यदि रोहिणी नक्षत्र न पड़े तो उस वर्ष धान की पैदावार नहीं होगी। बहरहाल, अंत में यह कि इस बार यानी 2019 की अक्षय तृतीया रोहिणी नक्षत्र में ही है। सोना खरीदना कितना शुभ होगा या अशुभ नहीं मालूम लेकिन शायद भड्डरी का कहा सच हो जाए और किसानों की डेहरी धान के धन से भर जाए। 

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