क्या 4200 साल पहले तापमान में आए बदलाव ने किया धान का विकास और प्रसार

4200 साल पहले ऐसा क्या हुआ था जिससे चीन में उगने वाली एक फसल एशिया के अन्य हिस्सों में भी फैल गयी| आइये समझते हैं धान का इतिहास और उसके विस्तार की कहानी

By Lalit Maurya

On: Tuesday 19 May 2020
 

आज से करीब 4200 साल पहले वैश्विक तापमान में गिरावट आ गयी थी| जिसके वजह से धान की नयी किस्में विकसित हुई और यही किस्में उत्तर और दक्षिण एशिया में भी पहुंच गयी थी| यह अध्ययन न्यू यॉर्क यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर जीनोमिक्स एंड सिस्टम्स बायोलॉजी के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है| जोकि जर्नल नेचर प्लांट्स में प्रकाशित हुआ है| जिसमें शोधकर्ताओं ने धान के इतिहास को समझने का प्रयास किया है| साथ ही यह जानने की कोशिश की है कि आखिर चीन में उगाये जाने वाली यह फसल पूरे एशिया में कैसे फैल गयी|

धान एक प्रमुख खाद्यान्न फसल है| जोकि दुनिया की आधी आबादी का पेट भरने में अहम भूमिका निभाती है| यदि इसके इतिहास पर गौर करें तो इसकी खेती आज से करीब 9,000 साल पहले चीन की यांग्त्ज़ी घाटी में शुरू की गई थी| फिर वहां से यह पूर्व, दक्षिणपूर्व और दक्षिण एशिया में फैल गई| जिसके बाद इसकी खेती मध्य पूर्व के देशों, फिर अफ्रीका, यूरोप और अमेरिका में भी की जाने लगी। यही वजह है कि धान आज दुनिया भर में अलग-अलग परिस्थितियों में उगाया जाता है और उसने उस वातावरण को अपना भी लिया है|

लेकिन वो किस समय और किन रास्तों से उन अलग-अलग क्षेत्रों में फैला, साथ ही उसके पीछे क्या प्राकृतिक कारण जिम्मेदार थे, उसके बारे में बहुत ही कम जानकारी उपलब्ध है| इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने एशिया में धान की 1400 अलग-अलग प्रजातियों का अध्ययन किया है| जिन्हें मूल रूप से एशिया की दो उप प्रजातियों में बांटा जा सकता है| जिसमें पहली जपोनिका और दूसरी इंडिका की किस्में शामिल हैं| जिन्हें उनके क्षेत्र, जलवायु और विकास के आधार पर अलग-अलग बांटा गया है|

4200 साल पहले तापमान में आयी थी रिकॉर्ड गिरावट

अपने शुरुवाती 4000 वर्षों में धान की खेती मूल रूप से चीन तक ही सीमित थी| उस समय जपोनिका नामक उप-प्रजाति की खेती की जाती थी| फिर करीब 4200 साल पहले दुनिया भर के तापमान में रिकॉर्ड गिरावट आ गयी थी, जिसे 4.2के घटना के रूप में जाना जाता है| इसी घटना के चलते मेसोपोटामिया से लेकर चीन तक की सभ्यताओं का विनाश हो गया था| साथ ही इसी घटना में जपोनिका प्रजाति, समशीतोष्ण और उष्णकटिबंधीय दो अलग-अलग किस्मों में बंट गई। जिसमें से नई विकसित समशीतोष्ण किस्में उत्तरी चीन, कोरिया और जापान में फैल गई, जबकि उष्णकटिबंधीय प्रजातियों का प्रसार दक्षिण पूर्व एशिया में हो गया था|

इस शोध के प्रमुख और न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी से सम्बन्ध रखने वाले शोधकर्ता रफाल एम गुटेकर ने बताया कि “जलवायु में आये इस बदलाव ने फसलों को एक अलग वातावरण में उगने और अनुकूलन करने के काबिल बना दिया| जीनोमिक डेटा और प्राचीन जलवायु सम्बन्धी मॉडलिंग से पता चला है कि यह घटना उसी समय हुई थी जब शीतोष्ण जपोनिका प्रजाति का विकास हो रहा था| यह प्रजाति ठन्डे क्षेत्रों में उग सकने के काबिल थी|

तापमान में गिरावट की इस घटना के चलते धान के किसानों ने दक्षिण-पूर्व एशिया की और प्रवास किया था, जिनके साथ धान की यह किस्म भी वहां पहुंच गयी| माइकल डी पुरुगना जोकि न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में बायोलॉजी के प्रोफेसर है और उन्होंने इस अध्ययन का नेतृत्व भी किया है, ने बताया कि "एशिया में खुदाई से धान के बारे में जो जानकारी मिली है उससे भी इस बात की पुष्टि होती है| साथ ही यह भी पता चला है कि 4.2के घटना के बाद उष्णकटिबंधीय धान की प्रजातियों का विस्तार दक्षिण में हो गया जबकि कुछ समशीतोष्ण किस्में उत्तरी अक्षांशों के वातावरण के अनुकूल हो गई थी|

वैश्विक तापमान में गिरावट के बाद भी उष्णकटिबंधीय जपोनिका धान में विविधता जारी रही। जिसकी किस्में लगभग 2,500 साल पहले दक्षिण पूर्व एशिया के द्वीपों तक पहुंच गई| उनके अनुसार इसके पीछे की मुख्य वजह व्यापक रूप से व्यापार के लिए लोगों और सामान की आवाजाही थी। जिसके विषय में प्राचीन साक्ष्य भी उपलब्ध हैं|

सबसे बाद में हुआ इंडिका धान का प्रसार सबसे ज्यादा जटिल है| लगभग 4000 साल पहले इसके गंगा की निचली घाटियों में उगाये जाने के सबूत मिले हैं| शोधकर्ताओं को पता चला है कि धान की यह प्रजाति लगभग 2,000 साल पहले भारत से चीन पहुंची थी।

धान में विविधता के लिए तापमान था बड़ी वजह

शोधकर्ताओं की मान्यता थी कि धान में आने वाली की विविधता के लिए वर्षा और पानी मुख्य रूप से जिम्मेदार होते हैं| पर इस अध्ययन से पता चला है कि इनकी जगह तापमान में आया बदलाव मुख्य रूप से इसकी विविधता के लिए जिम्मेदार था| विश्लेषणों से पता चला है कि उष्णकटिबंधीय और समशीतोष्ण जपोनिका धान की किस्मों के बीच जीनोमिक अंतर है उसके लिए गर्मी और तापमान में आया बदलाव मुख्य रूप से जिम्मेदार था|

शोधकर्ताओं के अनुसार एक साथ अलग-अलग पहलुओं का अध्ययन बड़ा महत्वपूर्ण था| जिससे यह पता चल सका कि किस तरह और किस कारण से धान कि किन-किन प्रजातियों का कहां-कहां विकास हुआ था| साथ ही वातावरण और जलवायु के अध्ययन से यह पता चल पाया है कि इनका विकास किन परिस्थितियों में हुआ था| डी पुरुगन ने बताया कि इन सभी के एक साथ अध्ययन से हमें यह समझने का मौका मिला कि किस तरह से धान पूरे एशिया में फैल गया।"

यह अध्ययन इसलिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकिं धान के प्रसार और उससे जुड़े पर्यावरणीय कारको को समझने से वैज्ञानिकों को नई किस्मों को विकसित करने में मदद मिलेगी| जो भविष्य में पर्यावरण में आ रहे बदलावों को झेलने में सक्षम होंगी| इसकी मदद से ऐसे फैसले उगाई जा सकेंगी जो जलवायु परिवर्तन और सूखा के असर को झेलने में सक्षम होंगी| यह किस्में खाद्य सुरक्षा के दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण होंगी।

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