एसओई इन फिगर्स 2022: कृषि प्रधान देश में कर्ज के बोझ तले दबे हैं 50 फीसदी कृषक परिवार

भारत में औसतन हर कृषक परिवार पर 74,000 रुपए से ज्यादा का कर्ज है। विडम्बना देखिए कृषि प्रधान इस देश में हर दिन औसतन 29 किसान और खेतिहर मजदूर आत्महत्या करते हैं

By Lalit Maurya

On: Thursday 02 June 2022
 

भारत में 50 फीसदी कृषक परिवार कर्ज के बोझ तले दबे हैं। औसतन हर कृषक परिवार पर 74,000 रुपये से अधिक का कर्ज है। विडम्बना देखिए कृषि प्रधान इस देश में हर दिन औसतन 29 किसान और खेतिहर मजदूर आत्महत्या करते हैं। यह जानकारी आज सीएसई और डाउन टू अर्थ जारी नई रिपोर्ट “स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमेंट 2022: इन फिगर्स” में सामने आई है।

गौरतलब है कि विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) के मौके पर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ हर साल जून में अपनी ई-बुक प्रकाशित करती है, जो पर्यावरण से जुड़े आंकड़ों का एक अनूठा संग्रह है। इन आंकड़ों को सीएसई और पत्रिका से जुड़े विशेषज्ञों द्वारा विश्लेषित किया जाता है।

इस नई रिपोर्ट को जारी करते हुए डाउन टू अर्थ संपादक सुनीता नारायण ने कहा,  ‘आंकड़ें, माप का आधार हैं, जितना बेहतर हम इन्हें मापते हैं उतना बेहतर ही हम इनके प्रबंधन से प्राप्त करते हैं। यही वजह है कि हम हर साल इन डेटासेट को एक साथ रखते हैं। यह डेटासेट हमें दुनिया में दर्ज होने वाले परिवर्तनों को समझने में मदद करते हैं। इतना ही नहीं यह हमें यह भी समझने में मदद करते हैं कि क्या करने की आवश्यकता है।‘

यदि कृषि से जुड़े विश्लेषण को देखें तो रिपोर्ट के अनुसार जहां 2012-13 से 2018-19 के बीच कृषि लागत में करीब 35 फीसदी की वृद्धि हुई है वहीं दूसरी तरफ एक औसत किसान परिवार की खेती से होने वाली आय 2012-13 में 48 फीसदी से घटकर 2018-19 में 37 फीसदी रह गई है।

इसी तरह यदि ठोस कचरे की बात करें तो 2019-20 में, भारत ने कुल 35 लाख टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न किया था, जिसमें से 12 फीसदी ही रीसायकल हो सका था, जबकि 20 फीसदी को जला दिया गया। वहीं शेष 68 फीसदी का कोई लेखा-जोखा नहीं है।

मतलब वो पर्यावरण में ऐसे ही खुला छोड़ दिया गया है, जिसे जमीन या पानी में डंप कर दिया है। वहीं हानिकारक अपशिष्ट को देखें तो 2019-20 से 2020-21 के बीच इसमें 5 फीसदी की वृद्धि हुई है। वहीं 2018-19 से 2019-20 के बीच इलेक्ट्रॉनिक वेस्ट उत्पादन में करीब 32 फीसदी का इजाफा दर्ज किया गया है।

वायु प्रदूषण की स्थिति तो देश में ऐसी है कि यदि विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों को पूरा कर लें तो भारत में एक औसत व्यक्ति की जीवन प्रत्याशा 5.9 वर्ष बढ़ जाएगी। वहीं वैश्विक औसत में 2.2 वर्ष का इजाफा आ सकता है।

हर साल खान पान से जुड़ी बीमारियों की भेंट चढ़ जाते हैं 17 लाख भारतीय

जलवायु परिवर्तन के मामले में देखें तो हर ढलते दिन के साथ स्थिति और बदतर होती जा रही है। गौरतलब है कि जहां देश ने इस वर्ष अपने इतिहास के सबसे गर्म मार्च को अनुभव किया था। वहीं 11 मार्च से 18 मई के बीच देश के 16 राज्यों में हीटवेव दिनों की कुल संख्या 280 दर्ज की गई थी, जोकि पिछले 10 वर्षों में सबसे ज्यादा हैं।

देखा जाए तो 2012 की तुलना में लू वाले दिनों की संख्या लगभग दोगुनी है , 2012 पिछले दशक में दूसरा ऐसा वर्ष था जब सबसे ज्यादा दिनों तक लू की घटनाएं रिकॉर्ड की गई थी। जलवायु परिवर्तन के कारण अपना घर छोड़ने वाले लोगों के मामले में भारत, चीन, फिलीपींस और बांग्लादेश के बाद चौथा सबसे ज्यादा प्रभावित देश है।

इसी तरह यदि खान-पान से जुड़े आंकड़ों को देखें तो हर साल करीब 17 लाख भारतीय ऐसी बीमारियों की भेंट चढ़ जाते हैं जो खराब खानपान की वजह से होती हैं। देखा जाए तो एक भारतीय के आहार में औसतन फल, सब्जी, फलियां, मेवा और साबुत अनाज की कमी होती है।

रिपोर्ट के बारे में डाउन टू अर्थ के प्रबंध संपादक रिचर्ड महापात्रा का कहना है कि “इस रिपोर्ट में जो जानकारी है वो आधिकारिक सरकारी आंकड़ों पर आधारित है जो पब्लिक डोमेन में उपलब्ध है। हम बस इनका विश्लेषण करते हैं और इन्हें शोधकर्ता की दृढ़ता और पत्रकार की अंतर्दृष्टि के साथ प्रस्तुत करते हैं।“

महापात्रा के अनुसार यह आंकड़े एक बार फिर उन मुद्दों को उजागर करते हैं जिनपर चर्चा की जानी जरुरी है। यह रिपोर्ट आंकड़ों के माध्यम से देश में पर्यावरण की स्थिति को समझते हैं। देखा जाए तो यह वर्ष देश और दुनिया दोनों के लिए मील का पत्थर है। भारत अपनी आजादी के 75वें वर्ष का जश्न मना रहा है। हमारे पास विकास के निर्धारित लक्ष्यों के साथ 'नए भारत' का वादा है।

वहीं इस वर्ष स्टॉकहोम सम्मेलन की 50वीं वर्षगांठ भी है, जो पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र की पहली बैठक है। यह रिपोर्ट दोनों के साथ न्याय करने की कोशिश करती है, जहां भारत में यह इस बात का आंकलन करती है कि क्या नए भारत का वादा सच साबित होगा। वहीं इस धरती के लिए पिछले 50 वर्ष कैसे रहे हैं और पर्यावरण पर क्या असर पड़ा है यह उसकी जानकारी भी विश्लेषण के साथ साझा करती है।

स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमेंट 2022: इन फिगर्स की प्रति बुक कराने के लिए क्लिक करें 

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