सियासत में पिसता गन्ना-5: चीनी उद्योग के राजनीतिकरण से किसानों की बदहाली बढ़ी

संदीप सुखतंकर, वर्जीनिया विश्वविद्यालय (यूएसए) के अर्थशास्त्र विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। उनके शोधपत्र “स्वीटेनिंग द डील? पॉलिटिकल कनेक्शंस एंड शुगर मिल्स इन इंडिया” की काफी प्रशंसा हुई है। उन्होंने डाउन टू अर्थ से बातचीत की

By DTE Staff

On: Friday 26 July 2019
 

महाराष्ट्र में सहकारी और निजी मिलों का अनुपात अब 50:50 तक पहुंच गया है। इसके निहितार्थ क्या हैं?

जब मैंने 15 साल पहले अपने पेपर के लिए शोध शुरू किया था, तो 90 प्रतिशत से अधिक मिलें सहकारी थीं। सहकारी मीलों के निजीकरण के पीछे दो कारण हो सकते हैं: पहला, मिल की वित्तीय हालत बुरी है और एक निजी निवेशक उसे यह समझकर खरीदता है कि वह बेहतर ढंग से चला लेगा या दूसरा, किसी राजनेता को यह लगता है कि वह मिल को सहकारी मॉडल के अंतर्गत न चलाकर स्वयं चलाए और अधिक मुनाफा ले। यदि बाद का कारण सही है, जिसका मुझे डर है, तो इसका मतलब यह है कि इस क्षेत्र का राजनीतिकरण जारी रहेगा।

उत्तर प्रदेश अब देश का सबसे बड़ा गन्ना और चीनी उत्पादक बन गया है और निजी चीनी मिलों का योगदान राज्य के कुल चीनी उत्पादन का 90 प्रतिशत से अधिक है। राज्य की राजनीति में इन निजी मिलों की राजनीतिक गतिशीलता को आप कैसे देखते हैं?

यदि निजी निवेशकों द्वारा शुद्ध लाभ के उद्देश्य से मिलें चलाई जाती हैं, तब मुख्य चिंता यह है कि क्या गन्ने के प्रसंस्करण में निहित एकाधिकार शक्ति का अर्थ यह होगा कि किसान खतरे में पड़ेंगे। यदि ये मिलें राजनेताओं द्वारा चलाई जा रही हैं, तो डर यह है कि किसान और भी बदतर हालत में हो सकते हैं, और साथ ही साथ करदाता भी क्योंकि राजनेता किसानों से किराया तो लेते ही हैं, (राजनीतिक मदद के एवज में कम कीमत) साथ ही सरकारी पैसा भी अपनी मिलों में लगाते हैं।

विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के युग में, निर्यात सब्सिडी पर प्रतिबंध है जो विश्व व्यापार को विनियमित करते हैं। आप घरेलू विकास पर इसके प्रभाव का आकलन कैसे करते हैं?

मैंने अपने पिछले ऑप-एड लेखों (और कई अन्य ने भी ) में बताया है कि गन्ने और चीनी दोनों क्षेत्रों में दोहरे हस्तक्षेप से इस सेक्टर में उछाल और गिरावट दोनों हो सकती है। इस क्षेत्र में सब्सिडी, लेवी, आयात नियंत्रण मूल्य विनियमन का एक बड़ा पेचीदा जाल है। कुछ नियमों को (डब्ल्यूटीओ के कारण, ऐसा मान भी लें तो) हटाकर अन्य को कायम रहने देने से इस समस्या का समाधान नहीं हो सकता है, खासकर लंबे समय में।

चीनी राजनीति पर अपने लंबे शोध के दौरान, किस पहलू ने आपको सबसे अधिक प्रभावित किया है?

यही कि कैसे लगातार हस्तक्षेप की वजह से इस क्षेत्र में लगातार उलझनभरी नीतियां बन रही हैं।

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