जैविक खेती का सच-6: बीज, बाजार और ठोस नीतियों से बंधेगी उम्मीद
जैविक खेती के तमाम पहलुओं की गहन पड़ताल करती एक रिपोर्ट-
On: Monday 07 December 2020
पर्यावरण और स्वास्थ्य पर रासायनिक खेती के गंभीर दुष्प्रभाव को देखते हुए धीरे-धीरे ही सही लेकिन जैविक व प्राकृतिक खेती की तरफ लोगों का झुकाव बढ़ रहा है। यह खेती अपार संभावना ओं का दरवाजा खोलती है। हालांकि भारत में यह खेती अब भी सीमित क्षेत्रफल में ही हो रही है। सरकारों द्वारा अभी काफी कुछ करना बाकी है। अमित खुराना व विनीत कुमार ने जैविक खेती के तमाम पहलुओं की गहन पड़ताल की। पहली कड़ी में आपने पढ़ा, खेती बचाने का एकमात्र रास्ता, लेकिन... । दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा, सरकार चला रही है कौन से कार्यक्रम। इसके बाद आपने पढ़ा, खामियों से भरे हैं सरकारी कार्यक्रम । अगली कड़ी में आपने पढ़ा, राज्य सरकारें नहीं ले रही हैं दिलचस्पी- । अगली कड़ी में हमने बताया कि कई सकारात्मक प्रयासों से उम्मीद बंधी हुई है। पढ़ें, अंतिम कड़ी-
हमें खेती के ऐसे मॉडल की तरफ बढ़ना होगा जो किसानों की आय बढ़ाने, रसायनों का उपयोग घटाने, स्वस्थ और पौष्टिक खाद्य उत्पादन और प्राकृतिक संसाधनों को संरक्षित करने में मदद करे। साथ ही यह जलवायु अनुकूल होना चाहिए जो आर्थिक, पर्यावरणीय समस्याओं के चिरस्थायी समाधान और जलवायु आपातकाल की चुनौतियों से लड़ने में सक्षम हो। नीति आयोग आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार कहते हैं, “नीति आयोग, रसायन मुक्त खेती को बढ़ावा देने के लिए कृत संकल्प है। इसके लिए देश में हर संभव प्रयास होने चाहिए।”
सीएसई की रिपोर्ट के अनुसार, रसायन मुक्त खेती को बढ़ावा देने के लिए बड़े स्तर पर सुनियोजित, महत्वाकांक्षी, बड़े बजट वाले देशव्यापी कार्यक्रम की सख्त जरूरत है, जिससे विभिन्न विभाग, मंत्रालय, केंद्र और राज्य सरकारें एकजुट होकर समन्वित प्रयास कर सकें। सरकार द्वारा किसानों के लिए एक अच्छे जैविक बाजार का उपलब्ध कराना अति आवश्यक है। उच्च गुणवत्ता के देसी बीज, जैविक और बायो फर्टिलाइजर, जैविक खाद आदि की उपलब्धता सस्ते मूल्य पर सुनिश्चित करानी होगी। रासायनिक खाद की सब्सिडी को जैविक की तरफ मोड़ना चाहिए, जिससे किसानों को जैविक का विकल्प मिल सके।
जैविक और प्राकृतिक खेती से होने वाले अनेक फायदे जैसे- पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण, जैव विविधता, जलवायु परिवर्तन अनुकूलता, मिट्टी का स्वास्थ्य, मनुष्यों और पशुओं के स्वास्थ्य पर होने वाले सकारात्मक परिणाम आदि पर वास्तविक वैज्ञानिक डाटा विकसित करना चाहिए, जिससे नीतिगत फैसले लेते समय इन कारकों को भी ध्यान में रखा जाए। जैविक या प्राकृतिक खेती की तरफ मुड़ने वाले किसानों को भी न केवल रासायनिक खेती की तरह बराबर का सहयोग मिलना चाहिए बल्कि उनकी समस्याओं को समझकर उनका समुचित मार्गदर्शन करना चाहिए। अनुभवी किसानों के रसायन मुक्त खेती के ज्ञान का प्रचार करना चाहिए।
इसी तरह स्थानीय स्तर पर कृषि विस्तार सेवाओं को इस बड़े बदलाव को लाने के लिए सक्षम बनाए जाने की सख्त जरूरत है। जैविक सर्टिफिकेशन व्यवस्था में सुधार कर इसे किसानों की आवश्यकता के अनुरूप ढालना होगा। पीजीएस सर्टिफिकेशन द्वारा पैदा किए उत्पाद को फूड प्रोक्योरमेंट प्रोग्राम और मिड डे मील जैसी योजनाओं से जोड़ने की जरूरत है, जिससे किसानों का जैविक उत्पाद खरीदा जा सके। कृषि राज्य का विषय है, अंत: खासतौर पर राज्य सरकारों को विभिन्न दिशाओं में समुचित और समन्वित प्रयास करने होंगे, जैसे- जैविक बीज और खाद, किसानों का प्रशिक्षण, मार्केट लिंकेज, ऑर्गेनिक वैल्यू चैन डेवलपमेंट और किसानों के लिए जैविक उत्पादों का लाभकारी मूल्य मिलना सुनिश्चित करना होगा। ये सभी प्रयास प्राकृतिक और जैविक खेती का मार्ग प्रशस्त करने में मदद करेंगे।
जैविक और प्राकृतिक खेती के रास्ते की बाधाएंजैविक खेती की राह में बाधाएं तीनों स्तरों पर हैं। सरकार, किसान और उपभोक्ता की कम दिलचस्पी के कारण यह खेती रफ्तार नहीं पकड़ पा रही हैकेंद्र और राज्य सरकारें जैविक और प्राकृतिक कृषि को बढ़ावा क्यों नहीं दे रही
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