अतिवृष्टि से खराब हुई बाजरे की फसल, न्यूनतम समर्थन मूल्य से आधी मिल रही है कीमत

सितंबर-अक्टूबर में हुई बेमौसमी भारी बारिश के कारण बाजरे की फसल को खासा नुकसान पहुंचा, जिसका फायदा प्राइवेट व्यापारी उठा रहे हैं

By Shuchita Jha

On: Saturday 01 January 2022
 
File Photo: Amit Shankar

मध्य प्रदेश के मोरेना जिले के देवरी गांव के श्याम मोहन, जिनकी बाजरे फसल बिकने को तैयार है, वे अभी इसी असमंजस में हैं कि फसल अभी बेचें या रुक जाएं। उनकी दुविधा का कारण है बाजरे की सही कीमत न मिलना 

श्याम कहते हैं, "सरकार ने बाजरे की खरीद तो शुरू कर दी, लेकिन इससे किसानों को कोई लाभ नहीं हो रहा है। मेहनत, मजदूरी, बीज, कीटनाशक, निराई -गुड़ाई, सब मिला कर 17 एकड़ (लगभग 8 हेक्टेयर) बोई बाजरे की फसल की लागत लगभग 8,000 रुपए प्रति एकड़ आई थी। ट्रांसपोर्ट की कीमत जोड़ के और लागत बढ़ जाती है। इतना ही नहीं, मैंने फसल की बुआई के लिए किसान क्रेडिट कार्ड से लगभग 60 हजार रुपए निकाले थे, लेकिन अचानक हुई बेमौसमी भारी बारिश के कारण बाजरे का रंग काला पड़ गया, तो मंडी में उसे रिजेक्ट कर रहे हैं, या किसान व्यापारियो को सस्ते दाम पर बेचने के लिए मजबूर कर रहे हैं।" 

श्याम आस लगाए बैठे हैं कि कोई जन प्रतिनिधि सरकार का ध्यान इस ओर खींचे तो कोई समाधान निकले। उनके 17 एकड़ में लगाई हुई बाजरे की फसल से 350 -375 क्विंटल बाजरा निकला है, लेकिन यदि सही दाम नहीं मिला, तो उन्हें काफी नुकसान होगा ।

मोरेना के ही किसान अमर सिंह जादोन, जिन्होंने 1800 रुपए प्रति क्विंटल की दर से प्राइवेट व्यापारी को बाजरा बेचा, कहते हैं कि उनके कई किसान साथियों को सरकारी मंडी में अनाज बेचने के 35 दिन बाद भी पैसे नहीं मिले, जिस के चलते उन्होंने प्राइवेट बेचना ही मुनासिब समझा। 

जादोन कहते हैं, "इस बार बारिश का कारण सरकारी मंडी में बाजरे के सैंपल को निरस्त कर रहे है, जिस के बाद प्राइवेट ही बेचना पड़ रहा है।  सरकारी मंडी में जाने के लिए भी 1200/- रुपए प्रति दिन ट्रेक्टर को देना पड़ता है, फिर नंबर लगा के इंतज़ार करना पड़ता है।  अगर अगले दिन नंबर आये तो ट्रेक्टर का भाड़ा दोगुना हो जाता है और उस पर भी रिजेक्ट हो जाये तो प्राइवेट व्यापारी को ही बेचना पड़ता है। जिन किसानों ने सरकारी मंडी में एमएसपी पर बेचा था , उन्हें 30 -35  दिनों  के बाद भी पैसे नहीं मिले हैं। इस सब के चलते मैंने 20 क्विंटल बाजरा गांव में आये एक प्राइवेट व्यापारी को बेचना ही सही समझा।"   

जादौन बताते हैं कि मोरेना के राम प्रसाद ने सहकारी समिति  में 2,150 रुपए की दर से बाजरा बेचा था, पर समिति से गोदाम में बाजरा नहीं पहुंचने के कारण उन को पैसे नहीं मिले।  जब उन्होंने इस बात को उठाया तो सहकारी समिति ने उनका बाजरा वापस कर दिए और उन्हें मजबूरन 1300  रुपए प्रति क्विंटल में फिर प्राइवेट व्यापारी को ही बेचना पड़ा।  

मोरेना जिले में  39,102 किसानों के पंजीकृत होने के बावजूद सरकार ने केवल 283 किसानों से 2109.876  क्विंटल बाजरा ही खरीदा है। बाकी सारे किसान प्राइवेट बेचने पर मजबूर हो रहे हैं। इस वर्ष खरीफ फसलों की खरीदी नवंबर अंत से आरम्भ हो कर 31 दिसंबर तक चलेगी।

मध्य प्रदेश के ग्वालियर, मुरैना, शिवपुरी और शेओपुर में भरी बाढ़ और अतिवृष्टि से बाजरे की फसल प्रबवीत हुई, जिस के कारण फसल गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ रहा है जहाँ सरकार ने बाजरे का समर्थन मूल्य 2250 रुपए प्रति  क्विंटल  रखा था, वहीँ इस वर्ष कसान अपनी फसल 1300- 1800  रुपए प्रति  क्विंटल पर बेचने पर मजबूर हो रहे हैं

सरकार ने खरीफ फसल वर्ष 2021-22 के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 2250  रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया है। सरकार के मुताबिक इस वर्ष बाजरे  का लागत मूल्य 1213 प्रति क्विंटल है। पिछले साल सरकार ने बाजरे  का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2150 निर्धारित किया था।

जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर के प्रधान वैज्ञानिक मेवा लाल केवट ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में कहा कि इस वर्ष मानसून अनियमित रहा और बारिश रुक-रुक कर होने से बीच में जो सूखा पड़ा है उस से फसलें ज़्यादा प्रभावित हुई हैं। 

"इस बार अनियमित बरीश के कारण फसल को सही समय पर पानी नहीं मिला, फिर बाढ़ की वजह से पानी की बहुतायत हो गई। मध्य प्रदेश के चम्बल क्षेत्र के जिलों में बाजरा उपजता है. इस की बुआई जून-जुलाई में होती है और इसे अक्टूबर -नवंबर तक काट लिए जाता है।  बाजरे के देसी बीज को 130 से 140 दिन का समय लगता है पकने में पर हाइब्रिड बीज लगभग 100 दिन में ही कटाई के लिए तैयार हो जयते हैं।  हमारे यहां किसान देसी बीज लगाते हैं, जिस के कारण भी उन की फसल ज्यादा प्रभावित हुई है।  

केवट का कहना है कि अनियमित बारिश के कारण बाजरे में ग्रेन-फिलिंग नहीं हो पाई जिस के कारण पैदावार पर काफी बुरा असर पड़ा है। इसी कारण बाजरे के दाने का आकर भी छोटा हो गया है।  

भारत के दुसरे राज्यों में भी बाजरे पर न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलने पर किसान हताश हैं।  राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में बाजरे की फसल अक्टूबर -नवंबर में ही बिक चुकी है।  लेकिन यहाँ भी अनियमित बारिश के कारन फसल को नुकसान पंहुचा और किसानों को समर्थन मूल्य नहीं मिला।

उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के लाल जी ने बताया कि बारिश के कारण उनकी फसल प्रभावित हुई जिस से उनको काफी नुकसान हुआ। नवंबर के अंत में अपनी फसल कम दाम में बेच कर उन्होंने थोड़ा ही मुनाफा कमाया।  

"अनियमित वर्षा के कारण फसल में दाने नहीं आये।  मैंने एकड़ में बाजरा लगाया था  जिस से 24 क्विंटल  की उपज हुई।  वैसे हर वर्ष इसी क्षेत्रफल में कम से कम 32 से 35 क्विंटल की उपज होती है पर इस बार फसल में बीमारी भी लगी और दाने भी कम आये। मैंने प्राइवेट में 1600 रुपए प्रति क्विंटल की दर से बाजरा बेचा। मुझे प्रति एकड़ में लगभाग 3000 रुपए की लागत लगी, जिस के बाद मुश्किल से ही कुछ मुनाफा हुआ।" लाल जी ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में कहा।

उत्तर प्रदेश के मुकुट सिंह बताते हैं कि उन्होंने 2 एकड़ में बाजरा लगाया था जिस में उन की लगभग 5500 - 6000 रुपए की लागत आई।  फसल पकने कर उन्होंने 15 क्विंटल बाजरा 1340/- प्रति क्विंटल की दर से बेचा जिस से उन्हें केवल 20,000 रुपए मिले। उन्होंने अपनी फसल नवंबर के पहले सप्ताह में बेचीं थी।  

"हमें तो कभी भी एमएसपी का रेट नहीं मिलता।  हर साल सस्ते में ही फसल बेचनी पड़ती है।" उन्होंने डाउन टू अर्थ से बातचीत में कहा। 

हरियाणा में भावांतर स्कीम के तहत सरकार ने किसानों से वादा किआ था कि यदि उनकी फसल समर्थन मूल्य पर नहीं बिकी, तो सरकार किसानों को भावांतर का भुगतान करेगी।  मगर किसान 2 महीने बाद भी सरकार के इस वादे को पूरा करने का इंतजार ही कर रहे हैं।  

"मैंने 20 एकड़ ज़मीन में बाजरे की खेती की थी जिसमें  150 टन बाजरा उपजा। मौसम की मार के कारण उपज ख़राब भी हुई और मुझे 1535 प्रति क्विंटल की दर पर बेचना पड़ा। मैंने सरकार की 'पानी बचाओ' स्कीम के तहत बाजरा लगाया था।  सरकार ने भी किसानो की न्यूनतम मूल्य पर फसल बिकने पर बचा हुआ पैसा देने का वादा किआ था पर आजमहीने होने को आये हैं पर सरकार की तरफ से हमको कोई मदद नहीं मिली। सरकारी मंडी में सिर्फ 50  क्विंटल बिक पाया।  बाकि के 100 क्विंटल मुझे प्राइवेट मंडी में 1200 रुपए प्रति क्विंटल की दर पर बेचना पड़ा," फतेहगढ़, हरियाणा के बाजरा किसान अभिषेक ने डाउन टू अर्थ को बताया। "मुझे बहुत नुक्सान हुआ है   इस दर से तो मेरी लगत भी नहीं निकली।"

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