33 फीसदी से अधिक नुकसान वालों को मुआवजा, कई जिलों में सर्वे के लिए बाढ़ निकलने का इंतजार
आई इस्टीमेशन और क्रॉप कटिंग के जरिए तय होता है फसल का नुकसान, मुआवजे के लिए स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फंड का इस्तेमाल किया जा रहा
On: Tuesday 11 October 2022
उत्तर प्रदेश में करीब एक सप्ताह से जारी बरसात का सिलसिला अभी टूटा नहीं है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के कई जिले बाढ़ग्रस्त हो गए हैं जहां रेस्क्यू का काम जारी है। इस बीच उत्तर प्रदेश सरकार ने अभी 24 जिलों में फसल नुकसान के आकलन के आधार पर मुआवजे का ऐलान किया है। इन 24 जिलों में 3.56 लाख किसानों की पहचान हुई है जिनकी फसल बेमौसम अतिवृष्टि के कारण 33 फीसदी से अधिक नुकसान में चली गई।
सरकार के मुताबिक करीब 2 लाख हेक्टेयर जमीन पर फसलों का नुकसान हुआ है। हालांकि, अभी कई जिलें हैं जहां फसल नुकसान को लेकर सर्वे नहीं हो पाया है। और कई ऐसे जिले हैं जहां किसानों के फसल का नुकसान 33 फीसदी से कम है लेकिन वह इस मुआवजे से बाहर हैं। आखिर क्यों 33 फीसदी से अधिक वालों को नुकसान से बाहर रखा गया है?
उत्तर प्रदेश सरकार में मौजूदा वरिष्ठ आइएस अधिकारी रणवीर प्रसाद जो पहले राहत आयुक्त का कार्यभार भी संभाल चुके हैं। वह डाउन टू अर्थ से बताते हैं कि 33 फीसदी से अधिक नुकसान का मानक केंद्र सरकार की ओर से जारी गाइडलाइन के आधार पर किया जाता है। केंद्र सरकार ने अपनी गाइडलाइन में 33 फीसदी से अधिक फसल नुकसान को ही मुआवजे के लायक बताया है।
वहीं, उड़ीसा सरकार के राहत कार्यालय की ओर से 18 अगस्त 2015 को सभी जिलाधिकारियों को जारी किया गया पत्र यह बताता है कि 33 फीसदी से अधिक फसल नुकसान को ही मुआवजे के लिए गिनती किया जाए। साथ ही सर्वे का तरीका आंखों से (आई इस्टीमेशन) या फसल कटाई (क्रॉप कटिंग) के बाद सैंपल को जांच कर पूरा किया जाए।
उत्तर प्रदेश में जिन 24 जिलों में सर्वे पूरा किया गया है। अभी उसका आधार ग्राउंड पर आई इस्टीमेशन है। सिद्धार्थनगर जिले के डीएम संजीव रंजन डाउन टू अर्थ से बताते हैं कि उनके जिले में अभी तक फसल नुकसान का सर्वे नहीं किया जा सका है। क्योंकि राप्ती और बूढ़ी राप्ती के कारण 100 गांव ऐसे हैं जो बाढ़ग्रस्त हो गए हैं। इन गांवों में अभी रेस्क्यू का काम जारी है। इसके बाद फसल नुकसान का काम किया जाएगा।
33 फीसदी से ज्यादा फसल नुकसान का सर्वे किस तरह से किया जाएगा? इस पर जिलाधिकारी रंजन बताते हैं कि फाइनल आधार क्रॉप कटिंग होता है। प्राइमरी रिपोर्ट आई इस्टीमेशन पर बनती है। इस काम को गांव के सबंधित लेखपाल और कृषि अधिकारी मिलकर करते हैं। फिर यह रिपोर्ट हमारे पास आती है। हम इस रिपोर्ट को राहत आयुक्त कार्यालय में भेजते हैं। एप्रूवल के बाद स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फंड से फैसा रिलीज कर दिया जाता है। इस फंड में केंद्र और राज्य का 75:25 फीसदी की हिस्सेदारी होती है।
उत्तर प्रदेश राहत आयुक्त कार्यालय में कार्यरत अदिति उमराव डाउन टू अर्थ से बताती हैं कि स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फंड में अभी 2700 करोड़ रुपए है। ऐसे में केंद्र से मदद की कोई जरूरत नहीं है। अभी की आपदा को संभालने के लिए पर्याप्त फंड है। जिन जिलों की सर्वे रिपोर्ट आई उन्हें फंड जारी कर दिया गया है।
भले ही मानसून के बाद अक्तूबर में हुई घनघोर वर्षा को जलवायु परिवर्तन का पक्का सबूत माना जा रहा है लेकिन सरकार जलवायु परिवर्तन को आपदा की श्रेणी में ही नहीं रखती। 14 फरवरी, 2021 को केंद्रीय कृषि एवं कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने राज्य सभा में अपने एक जवाब में बताया कि जलवायु परिवर्तन को केंद्रीय गृह मंत्रालय के जरिए आपदा नहीं घोषित किया गया है। वहीं, स्टेट डिजास्टर रिस्पांस फंड (एसडीआरएफ) का 10 फीसदी फंड राज्य सरकार पीड़ितों के लिए इस्तेमाल कर सकती है।
इस वर्ष उत्तर प्रदेश में खरीफ सीजन में कुल 96 लाख हेक्टेयर भूमि पर बुआई का लक्ष्य रखा गया था। इसमें सूखे के दौरान फसल नुकसान को लेकर आकलन हो ही रहा था कि सितंबर और अक्तूबर महीने में हुई अतिवृष्टि ने नुकसान के आकलन की रणनीति ही बदल दी।
सरकार की ओर से 1 अक्तूबर से 10 अक्तूबर तक किए गए कृषि फसल नुकसान आकलन के मुताबिक 24 जिलों में सर्वाधिक नुकसान वाला जिला महोबा रहा जहां 1.28 लाख किसानों की फसल क्षति 33 फीसदी से अधिक रही। इसी तरह ललितपुर में 73,015, मिर्जापुर में 32,000 और गाजीपुर में 21142, जालौन में 14,160, वाराणसी में 11,592 व लखीमपुर खीरी में 10,725 किसानों की फसलों का नुकसान 33 फीसदी से अधिक हुआ है।
आईएमडी के आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश के कई जिलों में एक सप्ताह के दौरान अकेले 24 घंटे में 10 हजार फीसदी से अधिक तक वर्षा रिकॉर्ड की गई। धान, गन्ना, केला, सब्जी जैसी फसलों का नुकसान हुआ है। लेकिन कटाई के बाद ही व्यापक सर्वे और असल मुआवजा संभव होगा।
सिंचाई विभाग के मुताबिक भारी वर्षा के चलते गंगा, शारदा, सरयू, घाघरा, राप्ती, बूढ़ी राप्ती, रोहिन, क्वानो नदी अपने अधिकतम जलस्तर यानी खतरे के निशान के आसपास बह रही हैं।