हर्षिल के सेबों के बिना देहरादून का अंतर्राष्ट्रीय सेब महोत्सव न पड़ जाए फीका

उत्तरकाशी में हर्षिल घाटी के 8 गांव सुक्की, झाला, पुराली,जसपुर, बगोरी, हर्षिल, धराली और मुखबा सेब उत्पादन के लिए मशहूर हैं

By Varsha Singh

On: Monday 20 September 2021
 
सेब महोत्सव का विरोध करने के लिए हर्षिल के सेब उत्पादकों ने एक बैठक का आयोजन किया। फोटो: वर्षा सिंह

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में 24-26 सितंबर के बीच अंतर्राष्ट्रीय सेब महोत्सव-2021 का आयोजन किया जा रहा है। लेकिन उत्तराखंड के सेबों के लिए मशहूर हर्षिल के काश्तकार इसका विरोध कर रहे हैं। सेब काश्तकारों ने कहा है कि वे इस महोत्सव में अपने सेब नहीं भेजेंगे। इस सूरत में मेज़बान राज्य के ही सेब अपने ही आयोजन से नदारद मिलेंगे!

उत्तरकाशी में हर्षिल घाटी के 8 गांव सुक्की, झाला, पुराली,जसपुर, बगोरी, हर्षिल, धराली और मुखबा सेब उत्पादन के लिए मशहूर हैं। लेकिन मौसम के साथ-साथ जंगली जानवर इस क्षेत्र के लिए बड़ी चुनौती बने हुए हैं। उपला-टकनौर जन कल्याण ट्रस्ट के माध्यम से आठों गांवों के सेब काश्तकार व्यापार करते हैं। ट्रस्ट के अध्यक्ष माधवेंद्र सिंह रावत का कहना है हमारा उगाया हुआ सेब घर-घर जाता है। लेकिन सरकार सेब काश्तकारों की समस्याओं पर कोई ध्यान नहीं दे रही है।

जंगली जानवरों से सेब के बगीचों का नुकसान बड़ी समस्या बन गई है। हम बच्चे की तरह सेब के पेड़ों को पालते हैं। 20-25 साल पुराने पेड़ों को कभी भालू नुकसान पहुंचाता है तो कभी लंगूर उसकी खाल छील देता है। सेब लगते ही तोतों के झुंड फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। साल दर साल ये समस्या बढ़ती ही जा रही है

माधवेंद्र हर्षिल वन पंचायत के सरपंच भी हैं। वह बताते हैं कि सेब को बचाने के लिए काश्तकारों ने उद्यान विभाग को कई बार अपने सुझाव और प्रस्ताव भेजे हैं लेकिन उन पर कभी कार्रवाई नहीं की गई। सेब ही यहां के किसानों की आय का मुख्य ज़रिया है। कैनन गन, सोलर फेन्सिंगआइडर ( जानवरों को भगाने के लिए रोशनी और आवाज़ निकालने वाली मशीन) जैसी कई कारगर तकनीक है जिससे हमारे बगीचों को बचाया जा सकता है। सरकार यूएनडीपी, कैंपा, वन पंचायत के फंड से भी किसानों की मदद कर सकती है। हम 50 प्रतिशत सब्सिडी मिलने पर खुद भी कैनन गन खरीदने के लिए तैयार हैं। वन्यजीवों के हमले से काश्तकारों को बहुत नुकसान हो रहा है। इसलिए हम सेब महोत्सव का विरोध कर रहे हैं

उत्तरकाशी की धराली ग्राम सभा के सेब काश्तकार शैलेश सिंह पंवार के पास सेब के 800 पेड़ हैं। डाउन टु अर्थ से बातचीत में वह बताते हैं  वर्ष 2013 की आपदा के बाद रास्ते बंद होने के चलते हर्षिल के सेब बाज़ार तक नहीं पहुंच पाए और खराब हो गए। जिसके बाद यहां कोल्ड स्टोरेज बनाया गया। 2018, 2019, 2020 में ये कोल्ड स्टोरेज चला। लेकिन इस वर्ष ये बंद हो गया है।

यहां आपदा के चलते रास्ते बंद हो जाते हैं। लॉकडाउन में मुश्किल आती है। कोल्ड स्टोरेज चलता तो हमारे सेब बचे रहते। हमने कई बार प्रशासन को कोल्ड स्टोरेज शुरू करने के लिए पत्र भेजे हैं। ज़िले के मुख्य उद्यान अधिकारी ने इस मसले पर हाथ खड़े कर दिए हैं। वह कहते हैं कि शासन स्तर से इस पर काम नहीं हो रहा। अगर ये कोल्ड स्टोरेज शुरू नहीं किया जाएगा तो हर्षिल के काश्तकार सेब महोत्सव में अपने फल नहीं भेजेंगे

शैलेश सेब की कीमत का सवाल भी उठाते हैं। अडानी जैसी कंपनी हमारे सेब की कीमत क्वालिटी के आधार पर 14, 20 और 30 रुपये प्रति किलो तय करती है। इससे अच्छा रेट तो हमें ठेले वाला देकर जाता है। हम ये भी चाहते हैं कि सरकार ही हमारे सेब खरीदे।  

वन्यजीवों के आतंक से त्रस्त उत्तरकाशी के सुखी टॉप गांव के सेब काश्तकार मोहन सिंह भी वन विभाग और उद्यान विभाग के रवैये से नाराजगी जताते हैं और देहरादून सेब महोत्सव का विरोध करते हैं।

इससे पहले 2019 में हर्षिल में ही सेब महोत्सव का आयोजन किया गया था। इस वर्ष देहरादून में हो रहे अंतरराष्ट्रीय सेब महोत्सव में देश के सेब उत्पादक राज्यों के साथ अमेरिका और यूरोपीय देशों के सेब भी प्रदर्शित किये जाएंगे।

उत्तराखंड सेब उत्पादक एवं विपणन सहकारी संघ के मुताबिक राज्य में अभी 17 सेब उत्पादक कोऑपरेटिव सोसाइटी मौजूद हैं। जिसमें 6500 काश्तकार जुड़े हुए हैं।

उत्तरकाशी के मुख्य उद्यान अधिकारी डॉ रजनीश सिंह से इस मामले पर संपर्क करने की कोशिश की तो उन्होंने जरूरी मीटिंग कहकर बात नहीं की।

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