तफ्तीश : क्या वाकई बिहार में जैविक खेती का रकबा बढ़ रहा है?

जैविक खाद की अनुपलब्धता में किसान रासायनिक खेती को ही जारी रख रहे हैं। वहीं कई जाली कंपनियां जैविक खेती के नाम पर किसानों को ठग रही हैं। 

By Rahul Kumar Gaurav

On: Thursday 07 July 2022
 

बीते महीने 25 जून को बिहार के सूचना मंत्रालय की सोशल साइट पर एक वीडियो डॉक्यूमेंट्री जारी की गई जिसमें बताया गया कि किस तरह किसान जैविक खेती कर कृषि में अपनी सफलता की इबारत लिख रहे हैं। यह वीडियो बताता है कि बिहार में दिनों-दिन जैविक खाद की बिक्री बढ़ रही है और 6 सालों के अंदर बिहार में जैविक खाद का रकबा 300 गुना बढ़ा हैं। वहीं बिहार के किसानों की मांग के मुताबिक जैविक खाद बिहार में उपलब्ध नहीं हैं जबकि कुछ साल पहले बिहार के कई किसान अनुदान के बावजूद बाजार उपलब्ध नहीं होने की वजह से जैविक खाद बनाना छोड़ दिए थे।
 
"पिछले साल जनवरी के महीने में लगातार 13 दिन सुपौल बाजार गया था तो 2 बोरा यूरिया उपलब्ध हो पाया। अंत में जाकर गांव के ही दुकान से जैविक खाद लिया। वो भी उचित मुल्य से प्रति बोरा 300 रूपया ज्यादा। जहां पिछले साल प्रति कट्ठा लगभग डेढ़ मन गेंहू हुआ था इस बार सिर्फ आधा मन हुआ। क्या ही करते मजबूरी का नाम.." यह बोलते -बोलते बिहार के सुपौल जिला के वीणा बभनगामा गांव के 52 वर्षीय उत्तम शाह चुप हो जाते हैं।
 
रासायनिक खाद के संकट से किसानों की जैविक खाद की ओर बढ़ी रुझान
 
देश के सबसे गरीब राज्य बिहार की 76 फीसदी आबादी कृषि कार्यों में लगी है। लेकिन सरकार पिछले दो-तीन सालों से खेती के लिए किसानों की मूल जरुरत डीएपी-यूरिया नहीं पूरी कर पा रही है। कृषि विशेषज्ञ के अनुसार इस साल भी खाद संकट आएगा। पिछले दो साल बिहार के कई जगहों पर भगदड़ और लाठीचार्ज की खबरें भी आई थीं। 
 
सुपौल जिला के विभागीय आंकड़े के अनुसार पिछले साल गेंहू के सीजन में सुपौल जिले के करीब पांच हजार किसानों ने जैविक खाद का प्रयोग किया था। इसकी मुख्य वजह रसायन खाद की कमी थी। किसान खाद के इंतजाम करने में लगे थें। इसी मौके की ताक में कुछ कुछ खाद माफिया और  उर्वरक बनाने वाली कंपनियों ने नकली और मिलावटी जैविक खाद बनाकर बाजार में उतारने की कोशिश करते रहे।
 
बिहार के सुपौल जिला में जैविक खाद की दुकान चलाने वाले वीणा बभनगामा गांव के सुमन झा डाउन टू अर्थ से  बताते हैं "लगभग 10 लाख रुपए की लागत से 2015 में जैविक खाद केंद्र को शुरु किया गया था। यह गांव समृद्ध जमींदारों का गांव हैं तो विश्वास था कि जैविक खाद के प्रति लोगों को जागरूकता आएगी। लेकिन स्थिति यह थी कि 50 फीसदी जैविक खाद भी बिक्री नहीं हो पाता था। स्थिति को देखते हुए जैविक खाद के साथ 2-3 ट्रैक्टर और सवारी गाड़ी खरीद कर अपना रोजगार चला रहा था। लेकिन पिछले 3 सालों से सिर्फ पूरी खाद की बिक्री नहीं हो रही बल्कि कई ग्राहक वापस लौट रहे हैं।" 
 
अनुदान जैविक के लिए, खेती हो रही रासायनिक!
 
जैविक खाद के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए सरकार के ‘जैविक खाद प्रोत्साहन योजना’ के तहत 2018 में सुपौल जिला के वीरपुर अनुमंडल के बसंतपुर प्रखंड के पिपरानी नाग गांव में कृषि विभाग की ओर से लगभग 200 यूनिट पिट बनवाकर वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन शुरू किया। 
 
गांव के रतन मंडल बताते हैं कि, "गांव में 2019 में लगभग 30 से 35 किसान पूर्ण रुप से जैविक खेती के रूप में जुड़ चुके थे। लेकिन फिर लाभ नहीं होने और अनुदान के परेशान होने की वजह से लगभग 25 किसान इस योजना से हट चुके हैं। अभी भी गांव के 5-7 जमींदार किसान जैविक खाद के नाम पर अनुदान तो नियमित ले रहे हैं, लेकिन जैविक खेती नहीं कर रहे हैं।"
 
बोधगया के रसायन खाद के व्यवसाई पंकज राय फ़ोन पर बताते हैं कि "बोधगया के बहुत सारे गांव में, जैसे शेखवारा गांव मान लीजिए! आधिकारिक तौर पर लगभग 5000 से ज्यादा किसान जैविक कॉरिडोर का हिस्सा हैं, लेकिन इनमें से सिर्फ 25 प्रतिशत किसानों से भी कम जैविक तरीके से खेती कर रहे हैं। वो सब्जी की खेती जैविक तरीके से करते हैं लेकिन अनाज की खेती रसायन तरीके से। और दोनों के नाम पर अनुदान सरकार से ले रहे हैं।"
 
कृषि अधिकारी भी इस तथ्य से अवगत हैं। सहरसा जिला के कृषि विभाग में कार्यरत एक सरकारी अधिकारी नाम न बताने के शर्त पर बताया कि, "पूरे विभाग को मालूम हैं कि जिले में जैविक कॉरिडोर में शामिल किसानों में लगभग 60 प्रतिशत के आसपास ऐसे किसान है, जो रासायनिक खाद का इस्तेमाल कर रहे हैं। ये किसान मुख्य रूप से जमींदार है। हम लोगों को भी ऊपर कागज में दिखाना पड़ता है।  बिना जागरूकता के जैविक खेती संभव नहीं है।"

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