छह महीने बर्फ से ढका रहता है यह जिला, अब लॉकडाउन ने बढ़ाई परेशानी
हिमाचल प्रदेश के लाहौल स्पीति जिले में लोग छह माह ही खेती करते हैं, लेकिन लॉकडाउन की वजह से अभी फसल की बोआई शुरू ही नहीं पाई है
On: Wednesday 15 April 2020
जिस कोरोना संक्रमण से पूरा विश्व त्रस्त है और दुनिया के लगभग हर देश में लाॅकडाउन की स्थिति के चलते कोई भी घरों से बाहर नहीं निकल पा रहा है, लेकिन जनजातीय जिला लाहौल-स्पीति के लोगों को हर वर्ष साल के छह माह तक कुदरत के लाॅकडाउन का सामना करना पड़ता है।
जी हां, छह माह तक बर्फ से ढके रहने वाले इस कबाईली जिले में लोग कई फुट बर्फ के कहर के चलते छह माह तक घरों में बंद रहते हैं, लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते इस बार इस जिला के हजारों लोगों की रोजी-रोटी छिनने का डर सता रहा है। लाहौल-स्पीति जिला केवल छह माह के लिए खुला रहता है और इस दौरान केवल एक ही फसल ली जा सकती है।
अक्टूबर से अप्रैल माह के पहले सप्ताह तक घरों में कैद रहने के बाद लाहौल के लोग खेती-बाड़ी के कामों में जुट जाते हैं। हालांकि कई लोग सर्दियां शुरू होने से पहले जिले को छोड़कर कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों रिवालसर, धर्मशाला, हमीरपुर, सोलन, कुल्लू में पलायन कर जाते हैं और छह माह बाद अप्रैल के पहले सप्ताह में घरों की ओर वापसी करके खेती बाड़ी शुरू कर देते हैं। लेकिन इस बार लाॅकडाउन की वजह से जिले से बाहर फंसे 3 हजार से अधिक लोग अपने घरों तक न ही तो खुद पहुंच पा रहे हैं और न ही ये वहां बीज और अन्य दवाईयां पहुंचा पाएंगे।
लाहौल-स्पीति जिला औषधीय पौधों, विदेशी सब्जियों, मटर और आलू के लिए विश्व विख्यात है, लेकिन इस बार समय पर घर न पहुंच पाने और लेबर व बीज न मिलने के चलते इन लोगों की खेती-बाड़ी का काम बहुत सीमित क्षेत्र तक सीमट तक रह जाएगा। ऐसे में इस क्षेत्र के लोगों को भारी आर्थिक संकट से गुजरना पड़ सकता है।
इसके अलावा जो लोग घरों में हैं वो भी लाॅकडाउन के कारण इस दुविधा में पड़े हैं कि यदि वे मटर और अन्य सब्जियों की बोआई कर दें और लाॅकडाउन की अवधी काफी लंबी चलती है तो उनके द्वारा तैयार की कई सब्जियां बाजार तक नहीं पहुंच पाएंगी। इससे किसानों की मेहनत के साथ इन्हें उगाने में लगी लागत का भी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
लाहौल के किसानों को उनके घरों तक पहुंचाने के लिए पिछले वर्ष तक सरकार की ओर से स्पेशल हवाई सेवा और निर्माणाधीन रोहतांग टनल से स्पेशल परमिशन लेकर पहुंचाया जाता रहा है और कुछ किसान तो एक दिन बर्फ में चलकर रोहतांग पास क्रास करके लाहौल क्षेत्र में अपने घरों तक पहुंचा करते थे। लेकिन इस बार न ही तो लोग पैदल और न ही हवाई सेवा के माध्यम से अपने घरों तक पहुंच सकते हैं।
लाहौल का आलू देश-दुनिया में एक अलग पहचान रखता है। कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में पैदा होने वाले यहां के आलू को बीज में कम बीमारियां होती हैं, जिसके कारण इसकी डिमांड देश के बड़े राज्य पश्चिम बंगाल, बिहार, गुजरात, मध्यप्रदेश, पंजाब, उतराखंड, उतर प्रदेश और अन्य प्रदेशों में रहती है। ऐसे में यदि लाॅकडाउन लंबा चलता है तो लाहौल क्षेत्र में आलू की बीजाई के काम में लेबर की उपलब्धता न होने के चलते असर पड़ेगा जिससे इन राज्यों को आलू के बीज का संकट भी खड़ा हो सकता है।
लाहौल पोटेटो सोसायटी के चेयरमैन सुदर्शन जास्पा ने बताते हैं कि लाहौल क्षेत्र में खेती-बाड़ी लोगों का मुख्य व्यवसाय है और यहां पर केवल छह माह तक ही खेती संभव है। ऐसे में लोगों के क्षेत्र के बाहर फंसे होने के चलते सबसे अधिक असर यहां की मटर, गोभी और विदेशी सब्जियों को होगा।
जनजातीय सलाहकार परिषद के सदस्य पलजोर देरिंग बोद्ध का कहना है कि लाहौल में साल में सिर्फ एक ही फसल होती है और उसकी बोआई का समय चल रहा है। ऐसे में लोगों के बाहर फंसे होने की वजह से समय पर बोआई न होने से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा और गरीब किसान परिवारों पर आर्थिक संकट आ जाएगा।
लाहौल के किसान अनिल का कहना है कि लाहौल क्षेत्र में कुछ स्थानों में लोग तीन-तीन माह के अंतराल में दो फसलें ले लेते हैं, लेकिन इसके लिए अप्रैल माह के पहले सप्ताह में बोआई करनी पड़ती है, लेकिन लाॅकडाउन की वजह से क्षेत्र के लोग विदेशी सब्जियों, मटर और गोभी को लगाने से भी डर रहे हैं कि यदि लाॅकडाउन लंबा चलता है तो ऐसी स्थिति में उनके द्वारा उगाई गई सब्जियां जिले से बाहर सब्जी मंडियों तक पहुंच भी सकेंगी कि नहीं।