टिड्डी दलों का हमला: 2019 की गलतियों से सबक लेगी सरकार?

डाउन टू अर्थ ने टिड्डी दलों के हमले के कारण राजस्थान में हुए भारी नुकसान के कारणों की पड़ताल की

By DTE Staff

On: Tuesday 26 May 2020
 
Photo: Twitter/@NOAAResearch

2019 में हुए टिड्डी दलों के हमले से राजस्थान को काफी नुकसान पहुंचा। जानकारों का मानना है कि समस्या स्वीकार करने में राज्य सरकार की ओर से हुई देरी के कारण बड़ा संकट पैदा हुआ। स्थिति इतनी गंभीर नहीं होनी चाहिए थी, क्योंकि किसानों ने मई 2019 में ही टिड्डी दल के बारे में सूचना देना शुरू कर दिया था। ऐसे में सरकार को भी जल्दी कदम उठाने चाहिए थे।

जोधपुर के वैज्ञानिक चंद्रशेखर (टिड्डी नियंत्रण में प्रशिक्षित) कहते हैं, “21 मई 2019 को जैसलमेर के किसानों ने जिले के एलडब्ल्यूसी में फसलों को हुए नुकसान के बारे में शिकायत दर्ज कराई थी।” किसानों ने 30 जून 2019 को बाड़मेर के गुडामालानी गांव में हुए एक और बड़े हमले के बारे में भी सूचित किया था।

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय ने 8 मई, 2019 को एक चिट्‌ठी राजस्थान, गुजरात, पंजाब व हरियाणा के कृषि निदेशकों को लिखी और बताया कि ईरान व पाकिस्तान में ब्रीडिंग (प्रजनन) हो रही है जो मई-जून तक रहेगी। टिड्डी दल जून में भारत पहुंच सकता है, संगठन अलर्ट रहें और आपात स्थितियों से निपटने को तैयार हो जाएं।

मंत्रालय ने दूसरी चिट्‌ठी 20 मई, 2019 को लिखी और बताया कि 26 साल पहले बड़ा हमला हुआ था, तब जमीन और हवाई ऑपरेशन कर कंट्रोल किया था। गंभीर स्थिति को देखते हुए कीटनाशक के छिड़काव के लिए सिंगल इंजन के हल्के एयरक्राफ्ट की जरूरत पड़ सकती है। मगर संगठन ने इसकी व्यवस्था ही नहीं की। संगठन जमीन पर ही स्प्रे करते रहे और टिड्‌डी उड़ गईं।

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टिड्डी दलों की निगरानी करने वाले केंद्र (एलडब्ल्यूसी) की मानें तो 21 मई, 2019 को रामदेवरा में टिड्‌डी दल पहुंचा। इनकी संख्या इतनी थी कि टीमें कम पड़ गईं। वह इसलिए कि इन्हें जमीन पर टिड्‌डी मारने की ट्रेनिंग थी। मौसम में ठंडक के चलते टिड्‌डी पेड़ों पर चढ़कर बैठ गईं। खेतों में खड़ी फसलों पर छिड़कने के लिए दवा नहीं थी। राजस्थान के छह जिलों में न तो हेलिकॉप्टर उड़ाए गए और न ही ड्रोन।

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फरीदाबाद स्थित लोकस्ट वॉच ऑर्गनाइजेशन (एलडब्ल्यूओ) के उप निदेशक केएल गुर्जर मानते हैं कि किसी प्लेन या ड्रोन की डिमांड नहीं की गई। अब मांगा जा रहा है। स्टाफ बढ़ाने की भी डिमांड की गई है। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने 31 जुलाई, 2019 को लोकसभा में पूछे गए प्रश्न के उत्तर में कहा था कि टिड्डी दल के हमले से फसलों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा है। हालांकि उन्होंने माना था कि राजस्थान और गुजरात में रेगिस्तानी टिड्डी दल देखे गए थे। ऐसे में कहा जा सकता है कि राज्य सरकार व केंद्र खतरे के बारे में पूरी तरह वाकिफ थे।

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नवंबर, 2019 में राजस्थान सरकार की पहली बार आंख खुली जिसके बाद कृषि विभाग में सर्वेक्षण और निगरानी के लिए 54 टीमें बनाई गईं तथा प्रभावित जिलों में ट्रैक्टर पर 450 छिड़काव यंत्र लगाए गए। एलडब्ल्यूओ में भी ऐसी 45 गाड़ियां तैनात की गईं। लेकिन तब तक टिड्डी दल की तीन पीढ़ियां तैयार हो चुकी थीं। इसके अलावा सरकार का बुनियादी ढांचा काफी नहीं था।

जोधपुर स्थित वैज्ञानिक का कहना है कि राजस्थान और गुजरात में 10 एलडब्ल्यूसी हैं लेकिन उनमें तीन चौथाई पद खाली हैं। छिड़काव यंत्रों और टिड्डियों पर निगरानी करने वाली गाड़ियों की भी बहुत कमी है। बाड़मेर में छिड़काव की केवल दो मशीनें हैं जो 25 साल पुरानी है और मुश्किल से 3 मीटर की ऊंचाई तक कीटनाशकों का छिड़काव कर सकती हैं। इसी तरह एलडब्ल्यूसी में 110 गाड़ियों की जरूरत है जबकि केवल 39 मौजूद हैं। जोधपुर स्थित कृषि विश्वविद्यालय में कीट वैज्ञानिक मदन मोहन कहते हैं, “बाड़मेर-जैसलमेर की सीमा पर अधिकारियों ने कीटनाशकों के छिड़काव के लिए दो फायर इंजन तैनात किए हैं।”

सुवालाल कहते हैं, “हम किसानों को ट्रैक्टर किराए पर लेने, मुफ्त में कीटनाशक लेने और स्वयं ही छिड़काव करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं क्योंकि इतने कम समय में सरकारी एजेंसियां सब जगह नहीं पहुंच सकतीं। हम उन्हें खर्चे का भुगतान कर देंगे।”ऑर्गेनोफॉस्फेट का छिड़काव करने का अधिकार केवल एलडब्ल्यूसी के पास है, लेकिन सरकार ने किसानों को भी इसके इस्तेमाल की इजाजत दे दी है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि एलडब्ल्यूसी टिड्डियों के संक्रमण का पता लगाने के लिए खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) द्वारा निर्धारित मानक प्रक्रिया का पालन नहीं करता। प्रक्रिया के अनुसार, जिन रेतीले स्थानों पर हरियाली मौजूद है और हाल ही में बारिश हुई है, उन्हें जिंदा टिड्डियों के अंडों का पता लगाने की दृष्टि से नियमित रूप से देखा जाना जरूरी है। जिन इलाकों पर पहले हमले हुए हैं या जहां लोगों ने टिड्डियों को देखा है, वहां नजर रखी जानी चाहिए। प्रक्रिया में यह भी कहा गया है कि जिन इलाकों में सूर्योदय से लेकर दोपहर तक का तापमान 20 डिग्री से 38 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है, वहां भी नजर रखनी चाहिए क्योंकि यह टिड्डियों के प्रजनन के लिए आदर्श तापमान है। इनमें से किसी दिशा-निर्देश का पालन नहीं किया गया था।

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