मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार करते हैं सूक्ष्म जीव

प्रति ग्राम मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की लगभग 40 से 50 हजार प्रजातियां होती हैं। कुछ सूक्ष्म जीव मिट्टी में सुधार कर सकते हैं, जिनमें प्रदूषण को दूर करना, प्रजनन क्षमता में सुधार करना आदि शामिल है।

By Dayanidhi

On: Wednesday 27 January 2021
 
Photo : Wikimedia Commons, A soil scientist examines soil health

एक ग्राम मिट्टी में सूक्ष्म जीवों की लगभग 40 से 50 हजार प्रजातियां होती हैं। कुछ सूक्ष्म जीव मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार कर सकते हैं, जिनमें प्रदूषण को दूर करना, प्रजनन क्षमता में सुधार और यहां तक कि बंजर भूमि में सुधार कर उसे खेती लायक बनाना शामिल है।

माइक्रोबायोलॉजी सोसाइटी की रिपोर्ट में मृदा स्वास्थ्य में शोधों को बढ़ाने, कृषि महाविद्यालयों और स्कूलों की पहुंच संबंधी गतिविधियों को बढ़ावा देने के बारे में कहा गया है। सूक्ष्म जीव विज्ञानियों का कहना है कि यह मृदा स्वास्थ्य और कृषि उत्पादकता में सुधार के लिए किसानों के साथ सहयोग करने का सबसे अच्छा तरीका है।

उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग से मृदा स्वास्थ्य पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। सूक्ष्म जीव विज्ञान का उपयोग खेती के प्रभाव को समझने और यथा संभव उनसे निपटने हेतु डिजाइन करने में मदद करने के लिए किया जा सकता है। यह रिपोर्ट माइक्रोबायोलॉजी सोसाइटी नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई है।

रिपोर्ट में मृदा स्वास्थ्य में सुधार के लिए किसानों के साथ सहयोग करने की बात कही गई है, टिकाऊ मिट्टी प्रबंधन प्रथाओं को कृषि आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया जाना चाहिए। रिपोर्ट में सतत मृदा प्रबंधन को प्रोत्साहित किए जाने की बात कही गई है।

मिट्टी की उर्वरता के उन्मूलन से 30 से 40 साल दूर होने का अनुमान लगाया गया है, संयुक्त राष्ट्र ने चेतावनी दी है कि यदि वर्तमान गिरावट दर को रोका नहीं किया गया तो दुनिया भर में मिट्टी की उर्वरता कम हो सकती है। यूरोपीय संघ ने मृदा स्वास्थ्य को अपनी शीर्ष पांच प्राथमिकताओं में से एक माना है और मृदा संरक्षण के क्षेत्र में कई वैश्विक पहलें सामने आ रही हैं। दुनिया भर के देशों को बढ़ी हुई रूपरेखा का लाभ उठाना चाहिए ताकि  स्थायी भूमि प्रबंधन प्रथाओं के विकास को बेहतर बनाया जा सके।

मिट्टी के कटाव की रोकथाम

कृषि उत्पादन में मिट्टी का कटाव एक बड़ी चुनौती है। यह मिट्टी की गुणवत्ता को प्रभावित करता है और पोषक तत्वों को बहा ले जाता है जो जलमार्ग को प्रदूषित करते हैं। जबकि मिट्टी का कटाव एक स्वाभाविक रूप से होने वाली प्रक्रिया है, कृषि गतिविधियां जैसे कि पारंपरिक खेती इसे रोक सकती है। इलिनोइस विश्वविद्यालय के नए अध्ययन में कहा गया है कि नो-टिल्स अथवा जिसे बिना जुताई के भी कहा जाता है इस प्रथा को लागू करने वाले किसान मिट्टी के कटाव की दर को काफी कम कर सकते हैं। अध्ययनकर्ता संग्यानुन ली ने कहा कि पूरी तरह से नो-टिल्स तरीका अपनाने से मिट्टी के नुकसान में 70 फीसदी से अधिक की कमी आएगी। 

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