कपास उत्पादक देशों पर बढ़ रहा है जलवायु परिवर्तन का खतरा

जलवायु परिवर्तन के कारण 50 फीसदी कपास पर सूखे का खतरा कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा। इसी तरह 20 फीसदी उत्पादक क्षेत्रों को बाढ़ के बढे हुए खतरे का सामना करना होगा

By Lalit Maurya

On: Wednesday 23 June 2021
 

यदि उत्सर्जन में कमी न की गई तो 2040 तक भारत सहित दुनिया के आधे से ज्यादा कपास उत्पादक क्षेत्रों को जलवायु परिवर्तन के गंभीर खतरों का सामना करना पड़ेगा। जिसकी सबसे बड़ी वजह तापमान में हो रही वृद्धि, बारिश के पैटर्न में आ रहा बदलाव और बाढ़ सूखा जैसी मौसम की चरम घटनाएं हैं। यह जानकारी कॉटन 2040 इनिशिएटिव द्वारा जारी रिपोर्ट में सामने आई है।

यही नहीं रिपोर्ट के अनुसार जलवायु के सबसे खराब परिदृश्य आरसीपी 8.5 में दुनिया के सभी कपास उत्पादक क्षेत्रों में जलवायु से जुड़े कम से कम एक खतरे और उससे जुड़े जोखिम में वृद्धि हो जाएगी। हालांकि जोखिम में होने वाली यह वृद्धि कहीं कम तो कहीं ज्यादा होगी। इसके बावजूद दुनिया के आधे से ज्यादा कपास उत्पादक क्षेत्रों को जलवायु से जुड़े गंभीर खतरों का सामना करना होगा। उन क्षेत्रों में जलवायु से जुड़े कम से कम एक खतरे का जोखिम बहुत ज्यादा बढ़ जाएगा।

रिपोर्ट के मुताबिक इसका असर दुनिया के सभी प्रमुख कपास उत्पादक देशों भारत, अमेरिका, चीन, ब्राजील, पाकिस्तान और टर्की पर पड़ेगा और यह सभी देश बाढ़, सूखा, तूफान जैसे खतरों का सामना करने को मजबूर होंगें। इसका सबसे ज्यादा असर उत्तर-पश्चिम अफ्रीका, सूडान, मिस्र, दक्षिण और पश्चिम एशिया पर पड़ेगा।

इसी तरह 75 फीसदी से ज्यादा क्षेत्रों में कपास पर गर्मी का दबाव (40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर) काफी बढ़ जाएगा, जबकि 5 फीसदी से ज्यादा क्षेत्रों को  इसके बहुत उच्च जोखिम का सामना करना पड़ेगा। रिपोर्टस से पता चला है कि 40 फीसदी कपास उत्पादक क्षेत्रों में पैदावार का मौसम घट जाएगा, जिसका मुख्य कारण तापमान में आने वाली वृद्धि है जो कपास उत्पादन के अनुकूल नहीं होगी।

50 फीसदी कपास पर सूखे का खतरा कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा। इसी तरह 20 फीसदी उत्पादक क्षेत्रों को बाढ़ और 30 फीसदी को भूस्खलन के बढे हुए खतरे का सामना करना होगा।

वहीं 60 फीसदी कपास हवा की बढ़ी हुई गति और 10 फीसदी तूफान के कारण प्रभावित होगी। एक तरफ जहां कुछ क्षेत्र पानी की कमी के कारण परेशान होंगे वहीं कुछ को भारी बारिश का सामना करना पड़ेगा। जिसका असर दुनिया के सबसे ज्यादा कपास उपजाऊ क्षेत्रों पर पड़ेगा। ऐसे में जो कपास पहले ही ज्यादा पानी की जरुरत को लेकर बदनाम है उसपर जलवायु परिवर्तन के चलते दबाव और बढ़ जाएगा। 

कपास का कुल बाजार करीब 90 हजार करोड़ रुपए का है। जो विश्व में कपड़े से जुड़ी कच्चे माल की करीब 31 फीसदी जरुरत को पूरा करता है। यही नहीं यह करीब 35 करोड़ लोगों की जीविका का साधन है। इसकी खेती कर रहे 90 फीसदी से ज्यादा किसान छोटे हैं जो 2 हेक्टेयर से कम जमीन पर कपास उगाते हैं। इसका कुल वार्षिक आर्थिक प्रभाव करीब 45 लाख करोड़ रुपए का है।

भारत में है दुनिया का 38 फीसदी कपास उत्पादक क्षेत्र

दुनिया भर में हर साल कपास की 2.5 करोड़ टन पैदावार होती है। यदि भारत की बात करें तो वो दुनिया में सबसे ज्यादा कपास पैदा करने वाला देश है, जहां हर साल करीब 62 लाख टन कपास पैदा होती है। वहीं दुनिया का 38 फीसदी कपास उत्पादक क्षेत्र भारत में ही है। हालांकि इसके बावजूद देश में इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार अन्य देशों के मुकाबले काफी कम है। जहां अमेरिका में इसकी प्रति हेक्टेयर पैदावार 955 किलोग्राम और चीन में 1764 किलोग्राम हैं वहीं भारत में पैदावार 454.4 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है।

ऊपर से जलवायु परिवर्तन का खतरा उसके लिए और समस्याएं पैदा कर रहा है। देश में इसकी ज्यादातर खेती गुजरात, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, तेलंगाना, आँध्रप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में होती है।

इससे पहले भारत के आर्थिक सर्वेक्षण 2017-18 में कृषि पर जलवायु परिवर्तन के पड़ते असर के बारे में आगाह किया था, जिसके अनुसार तापमान के चलते कपास सहित खरीफ की फसलों में 4 फीसदी की गिरावट आ सकती है वहीं बारिश में अनियमितता के कारण उत्पादन में 12.8 फीसदी की गिरावट आ सकती है। वहीं गैर सिंचित क्षेत्रों में खरीफ की फसलों में आने वाली यह गिरावट क्रमशः 7 और 14.7 फीसदी है।

ऐसे में यह जरुरी है कि हम अभी से इस आने वाले खतरे के लिए सतर्क हो जाएं और इससे निपटने के उपाय करें। लॉड्स फाउंडेशन से जुड़ी अनीता चेस्टर के अनुसार जलवायु परिवर्तन न केवल कपास बल्कि उससे जुड़ी कृषि प्रणाली और सप्लाई चैन को भी प्रभावित करेगा ऐसे में हमें इससे जुड़े जोखिमों को कम करने के लिए हमें इस पूरे क्षेत्र में जरुरी बदलाव करने होंगें।

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