परंपरागत खेती से नहीं होगा भला
देश में कृषि और कृषि शिक्षा की दशा की पड़ताल करती सीरीज में प्रस्तुत है गोविंद बल्लभ पंत कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति तेज प्रताप का साक्षात्कार
On: Saturday 17 August 2019
कृषि शिक्षा के लिए विश्वविद्यालयों में आ रहे छात्र क्या खेती की ओर लौटते हैं?
हमारे देश में जो किसान अभी खेती कर रहे हैं, वे अपने बच्चों को इसलिए पढ़ाते हैं ताकि उन्हें नौकरी मिल जाए। बच्चे की पढ़ाई पर इतना पैसा खर्च करने के छोटे या मझोले किसान का बेटा वापस खेती के लिए नहीं जा सकता। खेती में उसके पास इतने साधन नहीं हैं, इतनी आमदनी नहीं है कि वे उससे बेहतर जीवन स्तर हासिल कर सकें। लेकिन हमारे पास ऐसे बच्चे भी कृषि शिक्षा के लिए आ रहे हैं जो एग्री-बिजनेस सेक्टर में जाना चाहते हैं। या फिर अच्छी नौकरी के लिए पढ़ाई कर रहे हैं। इसके साथ ही ये भी तथ्य है कि कृषि विश्वविद्यालयों में किसानों के परिवार से कम ही बच्चे पढ़ने आते हैं। आजकल लड़कियां भी कृषि शिक्षा के लिए आगे आ रही हैं। यहां ऐसे बच्चे भी कृषि शिक्षा के लिए आते हैं जिन्होंने कभी खेत भी नहीं देखा होता। हां लेकिन किसान बनने के लिए कोई कृषि शिक्षा नहीं लेता।
इसके साथ ही हमें ये भी देखना होगा कि इतनी पढ़ाई के बाद यदि कोई खेती में जाना भी चाहे तो उसके लिए हमने क्या माहौल तैयार किया है। मौजूदा किसान तो आज यही सोचते हैं कि जैसे-तैसे उनका जीवन गुजर जाए। खेती से एक परिवार का तो अच्छे से गुजारा हो नहीं पा रहा। हमारे रिसोर्स बेस बेहद कमजोर हो चुके हैं।
क्या नई पीढ़ी के बच्चे किसान बनने के लिए तैयार दिखाई देते हैं?
मुझे लगता है कि अधिकांश किसान खेती छोड़ रहे हैं और भविष्य में किसान कम हो जाएंगे। लेकिन कृषि क्षेत्र का जीडीपी में योगदान बढ़ेगा। ज्यादा लोग खेती में रहेंगे तो जीडीपी में उसका योगदान कम रहेगा। कृषि विश्वविद्यालय जिस तरह की तकनीक तैयार कर रहे हैं, वह भविष्य के किसानों के लिए बिलकुल सही है। किसानों के पास ऐसी आर्थिक क्षमता होनी चाहिए कि वे इन तकनीकों का इस्तेमाल कर सकें। प्रोफेशनल तरीके से खेती करने वाले किसान इन तकनीकों का बेहतर कृषि के लिए इस्तेमाल करेंगे।
क्या परंपरागत खेती छोड़नी होगी?
परंपरागत खेती से हमारा भला नहीं होगा। यदि हम सोचें कि हर किसी को अपने हिस्से की सब्जियां उगानी चाहिए तो ये भविष्य नहीं है। हम इसे नॉलेज-इकॉनमी बेस्ड खेती के रूप में देखते हैं जिसमें यह देखा जाए कि देश को किस तरह के कृषि उत्पाद चाहिए और अर्थव्यवस्था को कैसे आगे बढ़ाना है। इससे हमारी उत्पादकता और उत्पादन क्षमता बढ़ जाएगी। क्या मौजूदा स्थिति में भारत को एक कृषि प्रधान देश कहा जा सकता है? कृषि विश्वविद्यालय जिस तरह की तकनीक तैयार कर रहे हैं, वह भविष्य के किसानों के लिए बिलकुल सही है। किसानों के पास ऐसी आर्थिक क्षमता होनी चाहिए कि वे तकनीकों का इस्तेमाल कर सकें। प्रोफेशनल तरीके से खेती करने वाले किसान इन तकनीकों का बेहतर कृषि के लिए इस्तेमाल करेंगे।
किसानों के लिए केंद्र सरकार जो नीतियां बना रही है, क्या उससे किसानों को फायदा मिल रहा है?
सरकारें, जो नीतियां बनाती हैं यदि वो ग्राउंड सिचुएशन से मैच करते हैं तो फायदा होगा। अलग-अलग जगह किसानों की अलग समस्याएं हैं, हमें नीतियां उनकी समस्याओं के लिहाज से बनानी होंगी।