दाल के संकट पर काबू पाने के लिए क्या करना चाहिए?

दालों के संकट से उबरने के लिए नियामक और नीतिगत बदलावों पर जोर दे रहे हैं आईआईएम के प्रोफेसर सुखपाल सिंह

By Sukhpal Singh

On: Tuesday 03 August 2021
 
उत्पादन कम होने से हर साल दालों का संकट खड़ा हो जाता है। फोटो: अग्निमीर बासु

दालों पर स्टॉक सीमा लगाने के केंद्र सरकार के 2 जुलाई, 2021 के फैसले ने एक बार फिर लंबे समय से चली आ रही इस धारणा को बल दिया है कि भारत सरकार की खाद्य नीतियां सुसंगत नहीं हैं और खाद्य क्षेत्र के प्रमुख हितधारकों के लिए प्रासंगिक होने की तो बात ही छोड़ दें, चाहे किसान हों या उपभोक्ता।

ऐसा इसलिए है, 5 जून, 2020 को, भारत सरकार ने “आवश्यक वस्तु (संशोधन) (ईसी(ए) अध्यादेश, 2020” जारी किया। बाद में इसे एक अधिनियम में बदल दिया गया, जिसके तहत सरकार खाद्य वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि में तब तक हस्तक्षेप नहीं करेगी, जब तक कि हालात “असाधारण “ न हों।

यह नया ईसी (ए) अधिनियम, 2020 कहता है कि स्टॉक सीमा लगाने का निर्णय केवल तभी लिया जा सकता है, जब जल्द खराब होने वाले खाद्य पदार्थों के औसत खुदरा मूल्य में पिछले एक वर्ष या पांच वर्षों के मुकाबले 100 प्रतिशत की वृद्धि हुई हो, ऐसे खाद्य पदार्थ जो जल्दी खराब नहीं होते, उनके लिए मूल्य वृद्धि की सीमा 50 प्रतिशत निर्धारित की गई थी।  

इस संशोधन का औचित्य यह था कि भारत अधिकांश कृषि वस्तुओं में खाद्य अधिशेष था और भंडारण और प्रसंस्करण क्षमताओं में निवेश की कमी के कारण किसानों को उचित मूल्य नहीं मिल पा रहा था। ईसीए, 1955 के तहत निर्धारित नियामक तंत्र को विपणन बुनियादी ढांचे में इस तरह के खराब निवेश का कारण ठहराया गया। 

आर्थिक सर्वेक्षण (2015-16) और यहां तक कि अरविंद सुब्रमण्यम समिति (एएससी) की रिपोर्ट में “व्यापार करने में आसानी” की कमी और वैधानिक नियंत्रणों के बार-बार लागू होने के डर को भंडारण और प्रसंस्करण के बुनियादी ढांचे में खराब निवेश का कारण बताया। जून 2020 में, सरकार ने तीन महीने के लिए मसूर पर आयात शुल्क 30 प्रतिशत से घटाकर 10 प्रतिशत कर दिया था।


तर्क का अभाव

किसान संगठन दो नए कृषि अधिनियमों के साथ ईसीएए, 2020 को निरस्त करने की मांग कर रहे हैं। उनका तर्क है कि खाद्य वस्तुओं पर स्टॉक की सीमा को हटाने से अधिकांश गरीब परिवारों को जमाखोरी और खाद्य मुद्रास्फीति का सामना करना पड़ सकता है। इसमें किसान एवं खेतों में काम करने वाले मजदूर शामिल हैं।

उनका तर्क है कि केंद्र सरकार द्वारा हाल ही में लगाई गयी 31 अक्टूबर तक दालों पर स्टॉक होल्डिंग की सीमा ईसीएए 2020 के विपरीत है। जून 2021 के अंत में चना दाल की कीमत एक साल के औसत खुदरा मूल्य से बमुश्किल अधिक और पांच साल के औसत से कम थी।

अरहर दाल की कीमत पिछले वर्ष की तुलना में औसत मूल्य से केवल 4.6 प्रतिशत अधिक थी और यह पिछले पांच वर्षों के औसत की तुलना में 13 प्रतिशत अधिक थी। साल-दर-साल कीमत की बात करें तो  चना दाल की कीमत जुलाई 2020 की तुलना में जून 2021 में 15.4 प्रतिशत अधिक थी। इसी तरह, अरहर दाल की कीमतें 13.1 प्रतिशत अधिक थीं।

दी रिमूवल ऑफ लाइसेंसिंग रिक्वायरमेंट्स, स्टॉक लिमिट्स एंड मूवमेंट रिस्ट्रिक्शंज ऑन स्पेसिफाइड फूडस्टफस (अमेंडमेंट ) आर्डर, 2021 ने केंद्र सरकार को अक्टूबर के अंत तक राज्यों को निर्दिष्ट परिस्थितियों में अधिसूचित वस्तुओं के लिए स्टॉक सीमा निर्धारित करने में सक्षम बनाने का अधिकार दिया है।

इस आदेश के तहत, थोक व्यापारी केवल 200 टन तक दाल का स्टॉक कर सकते हैं, जिसमें एक किस्म का 100 टन से अधिक नहीं हो सकता है, खुदरा विक्रेता सिर्फ 5 टन तक स्टॉक कर सकते हैं। बाद में इस लिमिट को बढ़ा कर 500 टन और 200 टन कर दिया गया।  

25 जून से 8 जुलाई के बीच, भंडारण पर इस प्रतिबंध के कारण तीन प्रमुख दालों, अरहर, उड़द और चना के थोक और खुदरा कीमतों में लगभग 60 प्रतिशत की कमी आई। यह नियंत्रण आदेश केंद्र सरकार द्वारा इसीलिए जारी किया जा सका, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने ईसीएए 2020 के साथ-साथ 2020 के अन्य दो कृषि अधिनियमों के कार्यान्वयन पर अगली सूचना तक रोक लगा दी है।


असल समस्या 

दलहन बाजार में मूल्य प्रबंधन पर नीति और नियामक भ्रम को समझने के लिए, भारत के दाल उत्पादन और खपत पैटर्न और गतिशीलता की जांच करना महत्वपूर्ण है। भारत एक बड़ा उत्पादक (वैश्विक उत्पादन का 24 प्रतिशत) और विश्व स्तर पर दालों का एक बड़ा उपभोक्ता दोनों है। हालांकि इसकी पैदावार अन्य उत्पादक देशों की तुलना में बहुत कम है, क्योंकि हमारे यहां दालें अपेक्षाकृत सीमांत भूमि और शुष्क या वर्षा आधारित असिंचित क्षेत्रों में उगाई जाती हैं।

कीमतों को नियंत्रण में रखने हेतु आपूर्ति बढ़ाने के लिए भारत में दालों के उत्पादन को वर्तमान 3 प्रतिशत की तुलना में 8 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से बढ़ने की आवश्यकता है। हालांकि उनका उत्पादन 2014-15 में 15-16 मीट्रिक टन से बढ़कर 2019-20 तक 22-23 मीट्रिक टन हो गया, लेकिन घरेलू मांग बढ़ जाने के कारण कमी बरकरार रही, क्योंकि दालों की खपत लगभग 25-26 मीट्रिक टन प्रति वर्ष है।

यह भी कहा जा रहा है कि इसी कमी के कारण सरकार ने इस वर्ष के दौरान राशन कार्ड धारकों को मुफ्त दाल उपलब्ध नहीं कराई है। दूसरी ओर, आयातकों का दावा है कि कम स्टॉकिंग सीमा से आयात महंगा हो जाएगा, क्योंकि कंटेनर की लागत बढ़ जाएगी। इसके अलावा कम मात्रा के कारण उच्च आयात मूल्य भी होगा।

पिछले महीने, भारत सरकार ने म्यांमार के साथ निजी व्यापार के माध्यम से 2021-22 तक हर साल 2,50,000 टन उड़द और 100,000 टन अरहर का आयात करने और मलावी के साथ अगले पांच वर्षों तक हर साल 50,000 टन अरहर आयात करने के लिए समझौतों पर हस्ताक्षर किए।

ऐसा कीमतों को नियंत्रित करने एवं आपूर्ति बढ़ाने के उद्देश्य से किया गया। इससे पहले सरकार दालों के आयात के लिए मोजाम्बिक के साथ एक समझौता भी कर चुकी है। तूर, मूंग और उड़द की आयात नीति को 15 मई, 2021 से 31 अक्टूबर, 2021 तक “प्रतिबंधित” से “मुक्त” में संशोधित किया गया था।


आपूर्ति पक्ष की समस्याएं 

दालें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के तहत हैं, हालांकि दालों की एमएसपी के बारे में किसानों के बीच की जागरूकता गेहूं, धान या गन्ना जैसी अन्य फसलों की तुलना में बहुत कम है, क्योंकि उनकी खरीद प्रभावी नहीं है। इसी सिलसिले में 2016 में ही अलग-अलग फसल स्तर के लक्ष्य, विशेष रूप से अरहर और उड़द के साथ दलहन के 2 मिलियन टन स्टॉक के निर्माण की सिफारिश की गई थी।

कम पैदावार और एमएसपी की अनुपलब्धता के अलावा, दालों की खरीद मूल्य में उच्च भिन्नता का मतलब है कि किसानों के स्तर पर,  दालों से सामाजिक और निजी रिटर्न में अंतर बड़ा है, जैसे चना में 101 प्रतिशत और उड़द में 95 प्रतिशत। ऐसा इसलिए है क्योंकि धान, गेहूं या गन्ना जैसी अन्य फसलों की तुलना में दलहन फसलों की सकारात्मक खूबियां जैसे नाइट्रोजन स्थिरीकरण क्षमता और कम पानी और रासायनिक खपत जैसी चीजों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा।

आगे का रास्ता 

अरविंद सुब्रमण्यम समिति और आर्थिक सर्वेक्षण 2015-16 ने दालों के सामाजिक मूल्य निर्धारण और सिंचित क्षेत्रों में दलहन उत्पादकों को प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) की सिफारिश की थी, ताकि उनके जोखिम और समाज में योगदान को कवर किया जा सके और नागरिकों के लिए पर्याप्त पोषण स्तर प्राप्त किया जा सके।

हालांकि, साथ ही, समिति ने दालों में मूल्य स्थिरीकरण प्राप्त करने के लिए, विशेष रूप से थोक विक्रेताओं के लिए, दालों पर निर्यात और स्टॉक सीमा को समाप्त करने की भी सिफारिश की थी, जिसे हासिल करना ईसीएए 2020 का लक्ष्य भी था। हरियाणा सरकार वर्ष 2020 से मेरा पानी मेरी विरासत फसल विविधीकरण योजना के तहत राज्य के कुछ भूजल तनाव ग्रस्त हिस्सों में धान के स्थान पर दलहन सहित विभिन्न वैकल्पिक फसलों के लिए डीबीटी लागू कर रही है। 

उपरोक्त नियामक और नीतिगत संदर्भ को देखते हुए, शुष्क क्षेत्रों में छोटे किसानों द्वारा घरेलू उत्पादन बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना,  प्रभावी एमएसपी आधारित खरीद के साथ, सभी हितधारकों के लिए फायदेमंद होगा। जैसे- किसानों के लिए उत्पादक और उपभोक्ता के रूप में प्रोटीन सुरक्षा, उपभोक्ताओं के लिए किफायती मूल्य आधारित उपलब्धता, सरकार के लिए जो बहुमूल्य विदेशी मुद्रा की बचत होगी।

-प्रो सुखपाल सिंह, भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) अहमदाबाद में सेंटर फॉर मैनेजमेंट ऑफ एग्रीकल्चर के चेयरमैन हैं

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