“दूध का भाव 80-100 रुपए हो तभी पशुपालक चारे और फीड की लागत निकाल पाएंगे”

भूसे और फीड की महंगाई से पशुपालक घाटे में, दूध के न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग

By Bhagirath Srivas

On: Friday 27 May 2022
 
नजफगढ़ की तूड़ा मंदी में ट्रॉलियों की संख्या कम हुई है। सभी फोटो : सन्नी गौतम

पंजाब-हरियाणा में बारिश और गर्मी से गेहूं की फसल प्रभावित होने के कारण दिल्ली के नजफगढ़ में स्थिति तूड़ा (चारा) मंडी में भूसे की आवक में 20-25 प्रतिशत की कमी आई है। रात 11 बजे से सुबह 4-5 बजे तक खुली सड़क पर लगने वाली इस मंडी में भूसे की औसतन 50-60 ट्रॉलियां आती हैं लेकिन इन दिनों 35-40 ट्रॉली भूसा ही यहां पहुंच रहा है।

आवक में कमी के चलते भूसे का थोक भाव 1,200-1,250 रुपए प्रति क्विंटल पर पहुंच गया है। 2021 में इसी थोक मंडी में भूसा 500-600 के औसत भाव पर मिल रहा था। चारा व्यापारियों के अनुसार, तूड़ा मंडी में प्रतिदिन 5,000 क्विंटल भूसे की खपत है। यह पूरा भूसा गोला और नंगली डेरियों आदि में खप जाता है।

तूड़ा मंडी में थोक में बिकने वाला भूसा फुटकर बाजार या टाल में पहुंचकर करीब 1,500 प्रति क्विंटल का भाव छू रहा है। इस भाव पर चारा खरीदकर पशुओं को खिलाना पशुपालकों को भारी पड़ रहा है।

व्यापारियों की खरीद ही महंगी

पंजाब के पटियाला से 12 घंटे के सफर क बाद ट्रॉली में गेहूं का 90 क्विंटल भूसा लेकर पहुंचे जॉनी सैणी ने 900-950 के भाव पर भूसा खरीदा है। यह पिछले वर्ष के भाव के लगभग दोगुना है। वह बताते हैं कि पंजाब में फरवरी-मार्च में हुई बारिश के चलते गेहूं की आधी फसल सड़ गई। इससे जहां गेहूं की पैदावार पर असर पड़ा, वहीं भूसे में भी कमी आई है। वह बताते हैं कि पंजाब से 30-40 भूसे की ट्रॉली दिल्ली आती है, लेकिन इस समय करीब 20 ट्रॉली ही पहुंच रही हैं। 

संगरूर से दो से तीन दिन में भूसा लाने वाले व्यापारी नायब सिंह कहते हैं कि बहुत से जमींदारों ने भूसे को स्टॉक कर लिया है और वे धीरे-धीरे महंगे दाम पर भूसा निकाल रहे हैं। इससे भूसे के भाव में असामान्य उछाल आया है। नायब सिंह पंजाब में एक नए चलन की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि राज्य में दो साल पहले तक कोई सरसों की फसल नहीं लगाता था, लेकिन सरसों के भाव को देखते हुए लोगों ने सरसों की ओर रुख करना शुरू कर दिया है। वह संगरूर के महासिंहवाड़ा गांव का उदाहरण देते हुए बताते हैं कि गांव में 2021 में करीब 100 एकड़ (करीब 10 प्रतिशत खेत) में सरसों की बुवाई हुई है। वह मानते हैं कि आने वाले वर्षों में सरसों का रकबा बढ़ेगा जिससे चारे की महंगाई और बढ़ सकती है।    

हरियाणा के सोनीपत जिले में स्थित गोहाना से भूसे की ट्रॉली लेकर आए अजय भी मानते हैं कि हरियाणा में बारिश से गेहूं की फसल खराब होने से भूसा महंगा बिक रहा है। जींद के राजगढ़ धोबी गांव से आए एक अन्य व्यापारी कृषन का कहना है कि इस साल बेमौसम बारिश से गेहूं की फसल खराब होने की वजह से एक एकड़ के खेत से 10 क्विंटल ही भूसा निकला है। फसल सामान्य रहती तो करीब 20 क्विंटल भूसा निकलता।

कृषन कहते हैं कि उन्हें एक ट्रॉली भूसा बेचने पर 2,000-3,000 रुपए की ही बचत होती है। भूसे की भराई, आढ़तिये का कमीशन, डीजल का खर्च, खाने का खर्च और टोल चुकाने के बाद मुश्किल से मजदूरी ही निकल पाती है। पिछले 10 वर्षों में भूसे का व्यापार कर रहे सोनीपत जिले के मिर्जापुर खेड़ी गांव के निवासी मनोज बताते हैं कि दो साल पहले तक उन्होंने 200-250 रुपए प्रति क्विंटल के भाव पर भूसा खरीदकर 450-500 के भाव पर बेचा है। लेकिन मौजूदा समय में उन्हें की करीब 1,100 रुपए प्रति क्विंटल के भाव पर भूसा लेना पड़ रहा है। उन्हें लगता है, नवंबर तक भूसे का भाव 2,000 प्रति क्विंटल के पार चला जाएगा। मौजूदा संकट की वजह बताते हुए मनोज कहते हैं कि 2021 के रबी सीजन में 40 प्रतिशत खेतों में सरसों और 60 प्रतिशत पर गेहूं बोया गया है। गेहूं की आधी पैदावार बारिश और गर्मी से नष्ट होने से चारे का संकट गहराया है।

नजफगढ़ की तूड़ा मंदी में भूसे की अधिकांश खरीदारी आढ़तियों के जरिए ही होती है। इक्का दुक्का पशुपालक ही सीधी खरीद के लिए यहां पहुंचते हैं। नजफगढ़ के छावला में रहने वाले एक ऐसे ही खरीदार 60 वर्षीय देविंदर ने डाउन टू अर्थ को बताया कि वह 30-32 साल से भूसा खरीदने आ रहे हैं, लेकिन उन्होंने अपने पूरे जीवन में भूसे की इतनी महंगाई नहीं देखी है। देविंदर ने अपने घर में एक गाय और एक भैंस रखी है जो उनके परिवार की दूध की जरूरतें पूरी करती है। वह बताते हैं चारे के मौजूदा भाव पर पशुओं को खिलाना उनके लिए बहुत भारी हो रहा है।  

गाय की खुराक दूध के मूल्य से अधिक

आढ़ती प्रदीप कुमार ने डाउन टू अर्थ को बताया कि पशुपालक चारे की महंगाई की वजह से पशु छोड़ रहे हैं। दूध उत्पादन की लागत और दूध से आमदनी में बढ़ते अंतर को पाटने के लिए दूध का भाव कम से कम 100 रुपए प्रति लीटर करने की जरूरत है। नजफगढ़ की गोला डेरी में 46 साल से डेरी चला 64 वर्षीय अशोक कुमार भी बताते हैं कि केवल चारा ही नहीं, फीड का भाव भी डेरी संचालकों की कमर तोड़ रहा है। वह बताते हैं कि इससे पहले चारा और फीड दोनों के भाव एक साथ आसमान नहीं छूते थे, लेकिन पिछले कुल वर्षों में दोनों के भाव एक दूसरे को टक्कर दे रहे हैं।

डेरी में 80 गाय-भैंस के दूध की आपूर्ति करने वाले नजफगढ़ निवासी व पशुपालक अनिल गहलोत ने डाउन टू अर्थ को बताया कि एक गाय की खुराक ही करीब 500 रुपए प्रतिदिन पड़ रही है, जबकि एक गाय से करीब 425 रुपए का दूध (7.5 लीटर प्रतिदिन ) मिल रहा है। वह डेरी में 56 रुपए प्रति लीटर के हिसाब से दूध बेचते हैं। पशुपालन में घाटे को देखते हुए उन्होंने पिछले दो महीने में 15 भैंस कम कर दी है।

अनिल बताते हैं कि उन्होंने 19 साल पहले जब डेरी फार्मिंग का काम शुरू किया था तो पशुओं की संख्या धीरे-धीरे बढ़ा ली थी। लेकिन अब उल्टी गंगा बह रही है। चारे और पशु आहार की महंगाई ने अब उन्हें पशुओं को घटाने पर मजबूर कर दिया है। वह बताते हैं कि दूध का भाव कम से कम 80 रुपए प्रति लीटर होना चाहिए, तभी पशुपालक का घर चल सकता है। ऐसी स्थिति में ही दूध और चारे की लागत निकलेगी। उनका मानना है कि दूध का भी न्यूनतम समर्थन मूल्य हो और उसे समय-समय पर बढ़ाया जाए।

 

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