आस्ट्रेलिया की भेड़ें बढ़ाएंगी उत्तराखंड के पशुपालकों की आमदनी!

उत्तराखंड में करीब 17 हज़ार लोग भेड़ पालन व्यवसाय से जुड़े हुए हैं, जो इस राज्य सरकार की इस योजना का लाभ उठा कर भेड़ व्यवसाय को बढ़ा सकते हैं

By Varsha Singh

On: Friday 27 December 2019
 
फोटो: वर्षा सिंह

उत्तराखंड में ऑस्ट्रेलिया से आयात कर 240 मेरिनो प्रजाति की भेड़ें लाई गई हैं ताकि भेड़ों की नस्ल सुधार कर, उत्पादकता बढ़ायी जा सके। राज्य में करीब 17 हज़ार लोग भेड़ पालन व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। इनमें बड़े भेड़ पालक बेहद कम है। उम्मीद की जा रही है कि इससे पशुपालकों की आमदनी बढ़ाई जा सकेगी। राष्ट्रीय पशुधन मिशन योजना के तहत लायी गई इन भेड़ों को टिहरी के घनसाली में राजकीय भेड़ प्रजनन प्रक्षेत्र में रखा गया है।

राज्य के पशुपालन सचिव डॉ. आर मीनाक्षी सुन्दरम ने बताया कि पशुधन मिशन तीन पर्वतीय राज्यों उत्तराखण्डहिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में भेड़ों की नस्ल सुधारऊन की गुणवत्ता बढ़ाने और ऊन उत्पादन में सुधार के लिए भेड़ों का आयात किया गया है। उत्तराखण्ड लायी गई 240 मेरिनो भेड़ में 40 नर और 200 मादा हैं। इन पर कुल 850 लाख रुपए का खर्च आया है। एक नर भेड़ की कीमत करीब तीन लाख और मादा भेड़ की कीमत 2.36 लाख रुपए आई है। इसमें 90 प्रतिशत हिस्सेदारी केंद्र सरकार और दस प्रतिशत राज्य की है। 

वर्ष 2012 की गणना के मुताबिक राज्य में लगभग 17 हजार लोग भेड़ पालन से जुड़े हैं। चमोली, उत्तरकाशी, पिथौरागढ़, बागेश्वर, रुद्रप्रयाग, टिहरी और देहरादून के कुछ पर्वतीय हिस्सों में ज्यादातर भेड़पालक कमज़ोर आर्थिक वर्ग के हैं। बड़े पशुपालकों की सालाना आमदनी 2-3 लाख रुपये तक है, इसमें भेड़ को बेचने से लेकर ऊन उत्पादन तक शामिल है। उत्तराखंड में भेड़ के मीट का भी इस्तेमाल होता है।

उत्तराखण्ड भेड़ एवं ऊन विकास बोर्ड की डॉ पूजा कुकरेती इस प्रोजेक्ट से जुड़ी हैं। उन्होंने बताया कि अगस्त में अमेरिका, स्पेन जैसे कई देशों में निरीक्षण के बाद ऑस्ट्रेलिया से मेरीनो भेड़ों के आयात का फ़ैसला लिया गया। किसी भी जानवर की उत्पादकता बढ़ाने के लिए आनुवंशिक तौर पर बेहतर बनाना होता है। इससे पहले वर्ष 1994 में देश में अमेरिका से करीब 600 रैंबुले (rambouillet) भेड़ें लायी गई थीं और उनका क्रॉस ब्रीडिंग प्रोग्राम चला।

डॉ पूजा बताती हैं कि हमारे यहां कमज़ोर आय वर्ग के पशुपालक पशुओं के आहार पर अधिक ध्यान नहीं दे पाते। इनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता तो बेहतर होती है लेकिन उत्पादकता बेहद कम होती है। उत्तराखंड के एक नर भेड़ से डेढ़ किलो तक ऊन मिलता है जबकि ऑस्ट्रेलिया का एक नर भेड़ छह किलो तक ऊन देता है। साथ ही, अच्छे खानपान की वजह से वज़न में भी बेहतर होते हैं। जबकि ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में जानवरों के आहार पर बहुत ध्यान देते हैं। भेड़ें अमूमन घास के अलावा जौ-जई, मक्का, गुड़ खाती हैं। बाजार में इनके रेडीमेड फूड पैकेट भी आते हैं लेकिन आर्थिक तौर पर कमजोर पशुपालक के लिए ये महंगा पड़ता है।

भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद (आईसीएआर) की भोपाल स्थित हाईसिक्योरिटी एनिमल डिसीज लेबोरेटरी और इंडियन वेटनरी रिसर्च इंस्टीट्यूट से भेड़ों की जांच करायी जाएगी। इनके रोगमुक्त पाए जाने पर ही इस्तेमाल होगा। आस्ट्रेलिया से लायी गई इन भेड़ों के लिए वर्षों का एक ब्रीडिंग प्रोग्राम तय किया गया है। प्योर लाइन यानी शुद्ध मेरिनो प्रजाति को बरकरार रखते हुए क्रॉस ब्रीडिंग करायी जाएगी। आधुनिक प्रजनन तकनीक के ज़रिये उच्च गुणवत्ता के जर्मप्लाजम राज्य के भेड़ पालकों को उपलब्ध कराए जाएंगे।

देश में 95 प्रतिशत ऊन का आयात ऑस्ट्रेलियन मेरिनो ऊन का होता है। इसे ध्यान में रखकर उत्तराखंड सरकार  ने ऑस्ट्रेलियन हाई कमीशन से मेरिनो भेड़ों के आयात को लेकर बात की।

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