क्रिकेट के लिए वायु प्रदूषण के मानक बने तो भारतीय शहरों में शायद ही कोई मैच हो पाए क्योंकि सभी जगह प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा है।
भविष्य में क्या भारत में क्रिकेट बंद हो जाएगा? दिसंबर, 2017 में दिल्ली टेस्ट मैच के दौरान क्रिकेट के मैदान पर मास्क पहनकर खेलते हुए श्रीलंकाई खिलाड़ियों की तस्वीरों ने जो बहस छेड़ी वह दूर तलक गई है। भारत में धर्म का रूप अख्तियार कर चुके क्रिकेट के लिए यह यक्ष प्रश्न इन दिनों चहुंओर क्रिकेट भक्तों के बीच बहस का मुद्दा बना हुआ है। सब इसी बहस में उलझे हैं कि दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता जैसे महानगर क्या प्रदूषण से घिरे होने के कारण बड़े क्रिकेट मैचों के आयोजन से हाथ धो बैठेंगे?
प्रदूषण की मार से क्या भारत अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट की पिच पर क्लीन बोल्ड हो जाएगा? भारत में आम लोगों का खेल बन चुके क्रिकेट की साख पर प्रदूषण का संकट है। सबसे ज्यादा परेशानी उन प्रायोजक कंपनियों की है जो इस खेल और इसके खिलाड़ियों की ब्रांडिंग में खजाना खोल कर बड़े मुनाफे का गुणा-भाग कर चुकी हैं। आम क्रिकेट प्रेमी से लेकर इससे जुड़े बाजार को शीघ्र ही दुबई में होने वाली अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद यानी आईसीसी की बैठक का इंतजार है, जहां आईसीसी प्रदूषण के मानक तय करने के लिए विचार विमर्श करेगी।
क्रिकेट में बारिश और रोशनी कम होने की स्थिति के लिए तो नियम-कायदे बनाए गए। लेकिन पहले टेस्ट मैच (15 मार्च, 1877) के बाद से अब तक 140 साल के क्रिकेट के इतिहास में पहली बार प्रदूषण को लेकर नियम लागू करने, मानक तय करने की बात उठी है। प्रदूषण की पड़ी मार के असर का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि आईसीसी ने अपना बयान जारी कर कहा, “हमने इस बात पर ध्यान दिया है कि दिल्ली में टेस्ट मैच किन हालात में खेला गया।
साथ ही, हमने पहले से ही अपनी चिकित्सीय कमेटी को यह मुद्दा भेज दिया है, जिससे भविष्य में इस तरह के मुद्दे से निपटने के लिए दिशा-निर्देश और मानक तय किए जा सकें। कोटला टेस्ट मैच में श्रीलंकाई खिलाड़ी प्रदूषण से निपटने के लिए चेहरे पर मास्क पहने दिखाई पड़े थे। यह एक ऐसी तस्वीर थी, जो पहले कभी क्रिकेट के इतिहास में मैदान पर तो नहीं ही देखी गई थी।”
क्रिकेट मुश्किल में
प्रदूषण के कारण भारतीय क्रिकेट मुश्किल में पड़ सकता है, यह सवाल सुनकर राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन के पूर्व उपाध्यक्ष विवेक व्यास ने लगभग झल्लाते हुए कहा, “यह भारत के लिए शर्म की बात है कि श्रीलंका जैसा छोटा देश भारत में आकर प्रदूषण को लेकर इतना हल्ला मचा गया कि लगभग टेस्ट मैच रद्द होते-होते बचा। इसके लिए पूरी तरह से प्रशासन जिम्मेदार है। आखिर जिस देश में क्रिकेटरों को भगवान का दर्जा हासिल हो, वहां अब वक्त आ गया है कि प्रदूषण जैसे मामलों पर भी नियम कायदा बने।”
ध्यान रहे कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड पहले से ही इस बात का ऐलान कर चुका है कि भविष्य में नवंबर और दिसंबर के दौरान दिल्ली को अंतरराष्ट्रीय मैचों की मेजबानी से वंचित किया जा सकता है। हालांकि व्यास का कहना था कि प्रदूषण के कारण क्रिकेट को बंद नहीं किया जा सकता, बस उसे किसी दूसरी जगह पर जरूर स्थानांतरित किया जा सकता है।
वहीं, उत्तर प्रदेश के पूर्व रणजी खिलाड़ी विश्वजीत सिंह कहा, “भारतीय क्रिकेट में पैसा इतना अधिक है कि वह प्रदूषण जैसे बड़े मुद्दे को भी कमजोर कर देगा। हालांकि, आईसीसी ने प्रदूषण के मानक बनाने की घोषणा की है लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि वह विश्व क्रिकेट में भारतीय क्रिकेट बोर्ड के दबदबे से अपने को निकाल कर कितना सही मानक तैयार कर पाती है।” वह बताते हैं, “प्रदूषण का असर तो खेल पर पड़ता ही है, जहां तक प्रदूषण के कारण भारत में क्रिकेट बंद हो जाए यह संभव नहीं है। आखिर यह भारतीयों की नस-नस में बस गया है।
आईसीसी अगर कोई मापदंड बनाती भी है तो इसके लिए एक ही हल है। जैसे कि दिल्ली का फिरोजशाह कोटला क्रिकेट मैदान जो कि एक ऐसे स्थान पर स्थित है, जहां सबसे अधिक प्रदूषण का स्तर पूरे साल भर बना रहता है। ऐसे में शहर के बाहरी इलाके में स्टेडियम स्थानांतरित किए जाने की जरूरत है। हो सकता है, नए मापदंड बनने के बाद दिल्ली जैसे और सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में मैच नहीं कराए जाएं।” सिंह ने कहा, “जहां तक बाहरी देशों के प्रदूषण के कारण भारत आने की बात है तो वे पैसे के कारण मना करने की स्थिति में तो कतई नहीं हैं।
लेकिन वे जरूर कह सकते हैं कि हम इन-इन स्थानों पर मैच नहीं खेलेंगे। उदाहरण के लिए फिरोजशाह कोटला की जगह ग्रेटर नोएडा में बने स्टेडियम में खेल सकते हैं।”
क्या किसी प्रदूषित स्थान पर मैच नहीं करवाने से समस्या हल हो जाएगी। इस सवाल पर भारतीय टीम के पूर्व टेस्ट सलामी बल्लेबाज तमिलनाडु के सदगोपन रमेश ने बताया, “बीसीसीआई और आईसीसी के लिए बड़ी चुनौती है कि मैच के लिए जगहों को चुनने के लिए प्रदूषण के मानक क्या तय किए जाएंगे।” बीसीसीआई और आईसीसी की प्रदूषण की पहल की सराहना करते हुए रमेश ने कहा, “खिलाड़ी और खेल के दृष्टिकोण से यह निर्णय सराहनीय है। लेकिन यह कदम भारत जैसे विशाल भूभाग वाले देश में पानी में लाठी मारने जैसा साबित होगा।
खिलाड़ी को खेल के दौरान काफी थकान होती है, जिसकी वजह से वह तेजी से सांस लेता है। ऐसे में प्रदूषित वातावरण उसे और उसके प्रदर्शन को प्रभावित कर सकता है। खेल के दौरान मैदान में प्रकाश कम होता है तो उसे जरूरत के अनुसार सही कर लिया जाता है पर प्रदूषण के स्तर को कम कर पाना टेढ़ी खीर है।” रमेश ने कहा कि इस मुद्दे पर भारत में क्रिकेट बंद नहीं किया जा सकता है।
प्रदूषण के कारण भारतीय क्रिकेट मैच होने और नहीं होने के सवाल पर भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व मीडिया मैनेजर रहे चेन्नई के आरएन बाबा का कहना है कि यह जरूरी नहीं कि किसी क्षेत्र व स्थान का प्रदूषण स्तर हमेशा एक समान हो। यह परिस्थिति बोर्ड के लिए परेशानी का सबब बन सकती है। जैसे अगर नियमों के अनुसार, बोर्ड ने किसी मैच के लिए चेन्नई के मैदान का चयन किया। लेकिन अगर वह भोगी-पोंगल के मौके पर पड़ा तो उस दिन का प्रदूषण स्तर बाकी दिनों की अपेक्षा में अधिक रहेगा। ऐसे कई स्थान और हैं, वहां मनाए जाने वाले त्योहार हैं जो प्रदूषण के स्तर को प्रभावित करते हैं।
यही नहीं, कुछ विशेष स्थानों पर विशेष समय में ऐसे कारक होते हैं जो प्रदूषण के स्तर को प्रभावित करते हैं। इस परिस्थिति से निबटने के लिए भी बोर्ड को गंभीरता से विचार करने की जरूरत है।
इस मुद्दे पर उत्तराखंड क्रिकेट एसोसिएशन के वर्तमान सचिव दिव्य नौटियाल का कहना है कि खेलों का स्वास्थ्य से सीधा संबंध है। जहां कहीं भी खेल हो, वहां पर्यावरण तो साफ-सुथरा होना ही चाहिए। इसलिए प्रदूषण वाले शहरों में क्रिकेट ही नहीं कोई भी खेल प्रतियोगिता आयोजित नहीं की जानी चाहिए। प्रदूषण का असर खिलाड़ियों पर बहुत अधिक पड़ता है।
इस बाबत मोहम्मद कैफ और सुरेश रैना जैसे खिलाड़ियों को प्रशिक्षण दे चुके उत्तर प्रदेश खेल निदेशालय के पूर्व खेल अधिकारी विनय गिल कहते हैं, “आईसीसी यदि ऐसा कोई मानक तैयार करती है तो यह देखना होगा कि वह क्या स्तर रखता है। क्योंकि वास्तविकता यह है कि भारत ही नहीं पूरी दुनिया में मानकों की अनदेखी की जा रही है। प्रदूषित वातावरण में खेलने से खिलाड़ियों की प्रतिरोधक क्षमता और कमजोर होती है। यह उनके भविष्य के लिए घातक होता है, विशेषकर तेज गेंदबाजों के लिए। वह कहते हैं, “प्रदूषण के कारण भारत जैसे देशों में क्रिकेट बंद करने की कल्पना करना अभी बहुत जल्दबाजी होगी।”
भारतीय क्रिकेट टीम के अंडर-19 टीम के पूर्व कप्तान अमीकर दयाल आईसीसी के प्रस्तावित प्रदूषण मानकों को काफी हद तक सही मानते हैं। उन्होंने बताया, “जब आम आदमी को प्रदूषित शहर में तेज चलने पर सांस लेने में परेशानी होती है तो एक क्रिकेटर के साथ क्या स्थिति होती होगी, यह सोचना जरूरी है।
मैच में पूरे समय सक्रिय रहने वाले क्रिकेटर को सांस लेने में परेशानी होने पर वह एकाग्रता खो सकता है। इसलिए, प्रदूषण पर चिंता स्वाभाविक है।” वे बताते हैं, “बीते साल 8 दिसंबर को दोपहर एक बजे पटना में हवा गुणवत्ता सूचकांक 401 पर था। ठीक इसी समय दिल्ली का सूचकांक 208 पर दिखा। किसी भी स्थिति में पटना का यह प्रदूषण स्तर सीवियर स्तर दिखा रहा था।”
चेन्नई के वरिष्ठ खेल पत्रकार शिलरजी शाह ने कहा, “बोर्ड इस मुद्दे को लेकर काफी देर से जागा है। लेकिन यह अच्छी बात है। जब जागो तभी सवेरा। भारत में वे खिलाड़ी अधिक प्रभावित होते हैं जो बाहर के देश से आते हैं।” प्रदूषण के संबंध में तमिलनाडु के स्वाथ्य सचिव जे. राधाकृष्णन ने कहा, “बीसीसीआई और आईसीसी जैसी संस्थाएं ऐसे कदम उठाती हैं तो यह सराहनीय है क्योंकि खेल के दौरान मैदान में खिलाड़ियों का स्वास्थ्य सबसे अहम होता है। और यह तभी स्वस्थ रह सकता है जब प्रदूषण का स्तर न के बराबर हो।
आईसीसी को कायदे से प्रदूषण के मानक तैयार करते समय किसी दबाव में नहीं आना चाहिए और उसे खेल और खिलाड़ी के हितों को ध्यान में रखकर कड़े प्रदूषण मानक तैयार करना चाहिए। यह देखने वाली बात जरूर होगी कि प्रदूषण से भविष्य में निपटने के लिए आइसीसी क्या मानक तय करती है और ये मानक कब से लागू होते हैं।
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