समुद्र के बढ़ते जल स्तर के कारण खतरे की जद में हैं 26.7 करोड़ लोग

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यदि जलवायु में आ रहे बदलावों को रोकने के लिए ठोस कदम न उठाए गए तो सदी के अंत तक यह आंकड़ा बढ़कर 41 करोड़ पर पहुंच जाएगा

By Lalit Maurya

On: Thursday 01 July 2021
 

समुद्र के बढ़ते जलस्तर के कारण दुनिया भर में करीब 26.7 करोड़ लोग खतरे की जद में हैं। जिसका मतलब है कि यह लोग दुनिया के उन निचले इलाकों में रहते हैं, जो समुद्र के स्तर से 2 मीटर से भी कम ऊंचे हैं। यही नहीं वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सदी के अंत तक यह आंकड़ा बढ़कर 41 करोड़ पर पहुंच जाएगा। इनमें से ज्यादातर लोग उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में रहते हैं। यह जानकारी हाल ही में जर्नल नेचर कम्युनिकेशन्स में प्रकाशित शोध में सामने आई है।

वैज्ञानिकों ने उन स्थानों को मापने के लिए जो समुद्र स्तर के 2 मीटर से भी कम ऊंचाई पर स्थित है, नासा के उपग्रहों की मदद ली है। साथ ही उन्होंने इसमें रिमोट सेंसिंग की सबसे उन्नत तकनीकों में से एक लिडार नामक पद्धति का भी उपयोग किया है, जो पृथ्वी की सतह पर ऊंचाई को मापने के लिए लेजर किरणों का उपयोग करती है।

शोध के अनुसार इनमें से करीब 6.49 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र या यह कहें की करीब 62 फीसदी क्षेत्र उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में है। जिसमें से काफी हिस्सा तो समुद्र के स्तर से एक मीटर से भी कम ऊंचाई पर है। अनुमान है कि भविष्य में बढ़ते जल स्तर के जोखिमों का सामना करने वाली करीब 72 फीसदी आबादी उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में रह रही होगी, जिसमें से 59 फीसदी तो अकेले एशिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में होगी।

वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का स्तर पहले के मुकाबले काफी बढ़ गया है साथ ही इससे बार-बार गंभीर तूफान आ रहे हैं। जिससे तटीय इलाकों में बाढ़ का जोखिम बढ़ रहा है।

इसका सबसे ज्यादा असर एशिया में इंडोनेशिया, बांग्लादेश और भारत जैसे देशों पर पड़ेगा। इंडोनेशिया का करीब 118,200 वर्ग किलोमीटर हिस्सा समुद्र के जल स्तर से करीब 2 मीटर नीचे होगा जोकि इसके कुल क्षेत्रफल का करीब 6.3 फीसदी हिस्सा है। हालांकि वैज्ञानिकों के अनुसार इसका मतलब यह नहीं है कि यूरोप और अमेरिका इसके खतरे से बच जाएंगें।

हाल ही में आईआईटी खड़गपुर द्वारा भारत में लक्षद्वीप के आसपास समुद्र के बढ़ते जलस्तर का अध्ययन किया है, जिसके अनुसार वहां 0.9 मिलीमीटर प्रतिवर्ष की दर से समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। अनुमान है कि इसका असर वहां मौजूद एयरपोर्ट और घरों पर पड़ सकता है। इसी तरह कुछ समय पहले अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में छपे एक शोध में भी दावा किया गया था कि जिस तेजी से समुद्र के जल स्तर में वृद्धि हो रही है उसके कारण 2050 तक समुद्र तट के किनारे बसे मुंबई जैसे शहरों में रहने वाले लगभग 30 करोड़ लोगों पर आफत आ सकती है

यदि इन सभी के पीछे की वजह को देखें तो उसके लिए काफी हद तक जलवायु परिवर्तन जिम्मेवार है जिसके कारण हर साल पहले के मुकाबले ग्लेशियरों से 30 फीसदी ज्यादा बर्फ पिघल रही है, जो समुद्र के स्तर में इजाफा कर रही है, ऊपर से बढ़ता उत्सर्जन इस समस्या को और बढ़ा रहा है। ऐसे में यह जरुरी हो जाता है कि न केवल उत्सर्जन में कमी की जाए साथ ही इनसे पैदा होने वाले खतरों से निपटने पर भी ध्यान दिया जाए। इसमें जलवायु अनुकूलन से जुड़े उपायों को अपनाना, बाढ़ के दीर्घकालिक जोखिम को कम करने के लिए स्थानीय स्तर पर योजनाएं बनाना जरुरी है। उसमें भी उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों पर अधिक तत्काल अधिक ध्यान देने की जरुरत है।

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