तटीय भारत: नया कंटेनमेंट जोन

बदलते जलवायु में ताप और आर्द्रता बढ़ेगी, जिससे स्वास्थ्य और उत्पादकता प्रभावित होगी 

By Jayanta Basu

On: Wednesday 23 February 2022
 
21 मई 2020 को पश्चिम बंगाल के बर्धमान में अंफन चक्रवात ने लोगों के आशियाने उजाड़ दिए। ऐसे चक्रवात जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़े हैं

इससे पहले आपने पढ़ा कि दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन की वजह से विस्थापन तेजी से बढ़ा है। जलवायु संकट की वजह से समुद्र तट से लगे क्षेत्र बहुत अधिक प्रभावित हैं। इस कड़ी में पढ़ें कि भारत के तटीय इलाकों में क्या स्थिति है

भारत के तटीय इलाकों और इसके नजदीक रहने वाले लोगों को साल 2,100 में आधे वक्त तक काम के समय घरों में रहने को मजबूर होना पड़ेगा। कोविड-19 महामारी नहीं, बल्कि भयावह ताप लोगों को ऐसा करने को विवश करेगा। ये खुलासा क्लाइमेट ट्रेंड्स की ताजा रिपोर्ट में हुआ है। भारत में हर साल लाखों लोग भयावह हीटवेव झेलते हैं। विज्ञानियों ने आगाह किया है कि बढ़ता जलवायु संकट आने वाले समय में स्थिति को और संगीन बनाएगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के ज्यादातर हिस्सों में एक साल में 12-66 दिन संभवतः जानलेवा ताप और आर्द्रता वाले होंगे जिसे “वेट बल्ब तापमान” कहा जाता है। वेट बल्ब तापमान एक सूचकांक है, जो मानव शरीर पर ताप और आर्द्रता के प्रभाव को नापता है।

रिपोर्ट कहती है, “साल 2100 तक आरसीपी (रीप्रजेंटेटिव कंसंट्रेशन पाथवे) 8.5 की स्थिति में भी प्री-इंडस्ट्रियल अवधि की तुलना में तापमान में 4.3 डिग्री सेल्सियस का इजाफा हो सकता है।” रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि वेट बल्ब तापमान अगले नौ दशकों तक छह महीने और उससे अधिक के घातक स्तर को पार कर जाएगा। क्लाइमेट ट्रेंड्स की आरती खोसला कहती हैं, “पूरी तरह फिट और जलवायु अनुकूल लोग भी 32 डिग्री सेल्सियस वेट बल्ब तापमान में काम नहीं कर सकते। वहीं 35 डिग्री सेल्सियस वेट बल्ब तापमान में पूरी तरह फिट और जलवायु अनुकूल लोग अगर छांव में भी बैठते हैं, तो छह घंटे में मर सकते हैं। वेट बल्ब तापमान को जलवायु परिवर्तन ऐसी ही बना रही है।”

भारत के ज्यादातर हिस्से 12-66 दिनों तक घातक ताप और आर्द्रता झेलते हैं और पूर्वी तट हॉटस्पॉट है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि आरसीपी 8.5 की स्थिति में ऐसे दिनों में और इजाफा हो सकता है। कोलकाता में ऐसे दिन 124 से बढ़कर 221, सुंदरवन में 171 से बढ़कर 253, कटक में 178 से बढ़कर 282, ब्रह्मपुर में 173 से बढ़कर 285, तिरुअनंतपुरम में 113 से बढ़कर 365, चेन्नै में 140 से बढ़कर 309, मुंबई में 47 से बढ़तर 261 और नई दिल्ली में ऐसे दिन 63 से बढ़कर 131 हो सकते हैं।

रिपोर्ट कहती है, “पश्चिमी तट पर इसका प्रभाव बढ़ेगा। गोवा में वेट बल्ब तापमान 269 दिनों का होगा (फिलहाल 35 दिन है), वहीं कोच्चि में 362 दिनों का (फिलहाल 98 दिनों का है) और मंगलोर में 349 दिनों (अभी 72 दिनों का है) का होगा।” रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि साल 2050 तक भी स्थिति काफी बिगड़ सकती है। कोलकाता में 176 दिन घातक ताप व आर्द्रता वाले हो सकते हैं, सुंदरवन में ऐसे दिन 215, कटक में 226, ब्रह्मपुर में 233, तिरुअनंतपुरम में 314, चेन्नै में 229, मुंबई में 171 और दिल्ली में ताप-आर्द्रता के 99 दिन हो सकते हैं। आरसीपी 2.6 एक कठोर लक्ष्य है, जिसमें साल 2020 से कार्बन-डाईऑक्साइड उत्सर्जन में कमी लाना है और साल 2100 तक शून्य कार्बन उत्सर्जन करना है। ऐसे करने पर साल 2100 तक कोलकाता में ताप-आर्द्रता वाले दिन 157, सुंदरवन में 193, कटक में 216, ब्रह्मपुर में 218, तिरुअनंतपुरम में 240, चेन्नै में 179, मुंबई में 112 , नई दिल्ली में 81, गोवा में 94, मंगलोर में 163 और कोच्चि में 206 होंगे।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटियोरोलॉजी, पुणे के जलवायु विज्ञानी रोक्सी मैथ्यू कोल कहते हैं, “हवा ज्यादा आर्द्रता के साथ ज्यादा ताप भी संग्रह कर सकती है और इनका दोहरा असर ज्यादा गंभीर हो सकता है। जलवायु परिवर्तन के चलते ऊष्णता बढ़ेगी, जिससे ताप और आर्द्रता का दोहरा असर बढ़ेगा।” कोल ने बताया कि अब तक न तो इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) और न ही भारत के आधिकारिक मूल्यांकन ने मौसम से संबंधित घटनाओं के दोहरे प्रभाव पर विचार किया है। उन्होंने सुझाव दिया कि ऐसे शोध और मूल्यांकन जल्द से जल्द शुरू करने की जरूरत है।

स्वास्थ्य और उत्पादकता पर प्रभाव: रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है, “गर्मी में लोग खुद को पसीने से ठंडा करते हैं, लेकिन अगर आर्द्रता अधिक हो, तो पसीना राहत नहीं देता है और हम अधिक ताप के खतरे का जोखिम झेलते हैं। हीट स्ट्रोक के चलते हल्का सिरदर्द, उल्टियां, शरीर के अंगों में सूजन, उत्तकों में गड़बड़ी, बेहोशी और मृत्यु हो सकती है।” रिपोर्ट के अनुसार, पांच शारीरिक तंत्र हैं, जिन पर ताप का असर पड़ सकता है– अल्केमिया (रक्त प्रवाह में कमी), हीट साइटोटॉक्सीसिटी (उत्तकों की मृत्यु), सूजन, डिस्सेमिनेटेड इंट्रावास्कुलर कॉगुलेशन (असामान्य तौर पर खून का थक्का बनना) राबडोमाओलायसिस (मसल फाइबर में टूट)। ये तंत्र सात महत्वपूर्ण मानव अंगों मस्तिष्क, दिल, अंतड़ियां, किडनी, फेफड़े और अग्नाशय पर असर डालते हैं। रिपोर्ट बताती है कि ये पता चला है कि 27 घातक मेल और अंगों की वजह ताप है। वेदर एंड क्लाइमेट एक्सट्रीम जर्नल में प्रकाशित एक हालिया पेपर में कहा गया है कि पिछले पांच दशको में हीटेवेव के चलते 17,362 लोगों की मौत हुई है। इस पेपर को केंद्रीय भूविज्ञान मंत्रालय के सचिव एम राजीवन समेत देश के शीर्ष मौसमविज्ञानियों ने लिखा है। रिपोर्ट के अनुसार, इन मौतों में 12 प्रतिशत मौतें कठोर मौसमी गतिविधियों के चलते हुई हैं।

अध्ययन के मुताबिक, साल 1986 से साल 2016 के दौरान हर साल औसतन 17 हीटवेव आते थे, जबकि साल 2019 में देश में 73 हीटवेव आए। रिपोर्ट में ये चेतावनी भी दी गई है कि 30-33 डिग्री सेल्सियस वेट बल्ब तापमान के साथ भारत का ज्यादातर हिस्सा गर्म महीनों में काम करने के उच्च जोखिम से गुजर रहा है। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि कठोर गर्मी और आर्द्रता के चलते भारत को संप्रति आउटडोर काम के घंटों में 21 प्रतिशत का नुकसान होता है। साल 2020 में प्रकाशित हुई मैकिंजे रिपोर्ट में कहा गया है कि आरसीपी 8.5 की सबसे बुरे जलवायु प्रभाव की स्थिति में कार्य समय का ये नुकसान साल 2030 तक 24 प्रतिशत और साल 2050 तक 30 प्रतिशत पर पहुंच जाएगा।

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