कॉप-26 रिपोर्ट कार्ड: ग्लासगो में भूमिगत ही रहा कृषि मुद्दा

कृषि, वानिकी एवं जमीन का इस्तेमाल विश्व के एक चौथाई ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं

By Richard Mahapatra

On: Tuesday 16 November 2021
 

वन, वित्त और परिवहन जैसे मुद्दों के विपरीत- जिन्हें जलवायु परिवर्तन को लेकर चल रहे  संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन में  (कॉप26) पार्टियों के 26वें सम्मेलन में 'एक दिन का खिताब' भी दिया गया, वहां पर शनिवार 13 नवंबर 2021 को कृषि पर 'प्रकृति दिवस' के हिस्से के रूप में चर्चा की गई।

कार्यक्रम स्थल के बाहर, हजारों लोग कई चीजों का विरोध कर रहे थे जिसमें खाद्य व्यवस्था (प्रणालियों) साथ किया जा रहा सौतेला सा व्यवहार शामिल रहा। लोगों के इस विरोध के मूल में खासकर ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन में प्रमुख भूमिका निर्वाह करने वाले प्रमुख स्रोत थे।

अभी तक कॉप26 में जिन दो प्रमुख विषयों शपथ ग्रहण हो चुका था। वे थे, वनों की कटाई पर रोक और मीथेन उत्सर्जन में कटौती। यह अब स्पष्ट हो चुका है कि मीथेन ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन में वनों की कटाई और औद्योगिक खाद्य व्यवस्था से काफी गहरे संबंध हैं और इसके उत्सर्जन में इनका काफी योगदान है।

यह बात भी निकलकर आई है कि कृषि, वानिकी एवं जमीन का इस्तेमाल विश्व के एक चौथाई ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं। अंतत: प्रकृति दिवस का मनाया जाना इस बात की गवाही रही है कि विश्व के 45 राष्ट्र  'सतत कृषि नीति कार्य एजेंडा' सस्टेनेबल एग्रीकल्चर एंड एवं ग्लोबल एक्शन फॉर इनोवेशन इन एग्रीकल्चर (अर्थात सतत कृषि हेतु वैश्विक स्तर पर कृषि कार्य नीति में) नवाचार के साथ बदलाव के पक्ष में हैं। दूसरे शब्दों में इसे कार्य नीति एजेंडा भी कहा जाता है।   

ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में कमी लाने के लिए स्विट्जरलैंड, नाइजीरिया, स्पेन और संयुक्त अरब अमीरात जैसे प्रभावशाली देशों ने शपथपत्र पर हस्ताक्षर कर अपनी प्रतिबद्धता जता चुके हैं। इन देशों का कृषि से होने वाले कुल ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में 10 प्रतिशत हिस्सेदारी है। इसलिए शपथपत्र में स्पष्ट रूप से उल्लेख कर दिया है कि – शपथ लेने वाले को -प्राकृतिक वातावरण की रक्षा करना होगा और कृषि से होने वाले उत्सर्जन कम करने के लिए वह संघर्ष करेगा।

इसको देखते हुए यूनाइटेड किंगडम की सरकार ने भी यह घोषणा कर दी है कि हस्ताक्षरकर्ता देश इस बात से सहमत हैं कि - "प्रकृति की रक्षा करने के लिए हमें और निवेश करना होगा और सतत व स्थायी खेती करने हेतु हमें और अधिक सुदृढ़ तरीके खोजने होंगें और उसमें आवश्यक बदलाव भी करना पड़ेगा।

26 देशों ने और अधिक स्थायी खेती तथा उसे कम प्रदूषणकारी बनाने के लिए अपनी कृषि नीतियों में आवश्यक बदलाव करने के लिए प्रतिबद्धता जताई है। उन्होंने इस बात की भी घोषणा की है कि सतत कृषि और खाद्य आपूर्ति व्यवस्था बनाए रखने तथा उसे जलवायु परिवर्तन के हानिकारक प्रभाव से बचाए रखने विज्ञान के क्षेत्र में और अधिक निवेश करेंगें।

इससे संबंधित प्रेस वक्तव्य में यह कहा गया है कि कृषि में नवाचार हेतु सार्वजनिक क्षेत्र में 4 अरब डॉलर (लगभग 30,000 करोड़ रुपये) का निवेश किया जाएगा।

कॉप 26 के अध्यक्ष आलोक शर्मा ने कहा, "प्रतिबद्धताओं से पता चलता है कि पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए प्रकृति और भूमि उपयोग को आवश्यक माना जा रहा है, और यह जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान के दोहरे संकटों को दूर करने में योगदान देगा।"

इस साल 23 सितंबर को संयुक्त राष्ट्र खाद्य प्रणाली शिखर सम्मेलन से पहले, इनसे जुड़ी हुई एजेंसियों ने उन किसानों को मिल रहे वैश्विक समर्थन की व्यापक समीक्षा करने की बात कही जिसके कारण यह ग्रह गर्म होते जा रहा है। इस बात की भी चर्चा हुई कि कैसे इसे 2030 तक सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने से भी दूर रखा जा रहा है।

अधिकांश समर्थन ऐसे क्षेत्रों से आ रहे हैं जो ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन-करने में काफी आगे हैं और पर्यावरण के दुश्मन हैं।

इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के सीनियर रिसर्च फेलो जोसेफ ग्लौबर ने कहा - उदाहरण के तौर पर- बीफ उत्पादन वाले क्षेत्र को भारी समर्थन मिला है ता है ताज्जुब की बात यह है कि जीएचजी का भी अत्यधिक उत्सर्जन यही करते हैं। अत यहां पर समर्थन कम करने की आवश्यकता है। मूल रूप से, समर्थन प्रणाली का उद्देश्य को पुनःभाषित एवं पुनर्व्यवस्थित करने की आवश्यकता है।

उदाहरण के लिए, उच्च आय वाले देशों को - अपने बड़े मांस और डेयरी उद्योगों के लिए बड़े पैमाने पर मिलने वाले समर्थन को स्थानांतरित करने की आवश्यकता है -क्योंकि आकंड़े के मुताबिक ये वैश्विक ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन में इनकी हिस्सेदार 14.5 प्रतिशत है। और अगर पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करना है तो ऐसा करना पड़ेगा।

खाद्य प्रणालियों में परिवर्तनकारी परिवर्तन लाने के लिए वचन लेने वाले प्रभावी देशों से काफी अपेक्षाएं थीं। पर बजाय इस क्षेत्र में प्रभावी कदम उठाने के जानबूझकर कृषि व्यवस्था को खाद्यय पदार्थ व उपभोग में आने वाली व्यवस्था बताकर इससे जुड़े हुए मुद्दों को जानबूझकर दफन कर दिया गया।

हस्ताक्षर किए गए शपथ पत्र पर "मांस की खपत" जैसे शब्दों का उल्लेख नहीं था। द गार्जियन दैनिक को दिए एक साक्षात्कार में, संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि सचिव थॉमस विल्सैक ने कहा:

"मुझे नहीं लगता कि मुद्दा यह है कि हमें अमेरिका में उत्पादित मांस या पशुधन की मात्रा को कम करना है। क्योंकि यहा जो उत्पादन होता है उसका एक एक महत्वपूर्ण प्रतिशत निर्यात किया जाता है। यहां अधिक या कम खाने या अधिक या कम उत्पादन करने का प्रश्न ही नहीं है।सवाल है उत्पादन को कैसे सतत बनाए रखा जाए ।"

स्लो फूड यूरोप के निदेशक मार्टा मेसा ने कहा: प्राकृतिक पर्यावरण के अनुरूप ही कृषि पारिस्थितिकी तंत्र को पुनर्बहाली किया जाना चाहिए।

तकनीकी सुधार एक झूठे समाधान हैं, वे उन वास्तविक नवाचारों पर आधारित नहीं हैं जिन्हें समुदाय लचीला होने के लिए लेकर आते हैं। तकनीकी सुधार व मरम्मत एक झूठे समाधान हैं, जो उन वास्तविक नवाचारों पर आधारित नहीं हैं जो कि समुदायों के लंबें अनुभव व प्रयोगों के परिणाम से आते हैं। हमें उम्मीद है कि कॉप26 का समापन बजाए हवाई वायदों के ठोस, आवश्यक एवं बंधनकारी प्रतिबद्धताओं के साथ होगी।

कृषि 1995 के यूएनएफसीसीसी समझौते का हिस्सा था, लेकिन यह चर्चा में 2011 में ही आया।

2017 में कॉप23 का परिणाम था कृषि पर कोरोनिविया संयुक्त कार्य (केजेडब्ल्यूए)। जिसे आज भी इस क्षेत्र में एक मील का पत्थर माना जाता है। इसने जलवायु परिवर्तन से निपटने में कृषि की भूमिका पर प्रकाश डाला और उसे स्वीकार भी किया गया। यूएनएफसीसीसी के तहत एकमात्र कार्यक्रम है जो कि कृषि और खाद्य सुरक्षा पर केंद्रित है।

केजेडब्ल्यूए ने कॉप26 में कुछ कार्यक्रम आयोजित किए, लेकिन हमेशा की तरह इसकी आवाज और दृश्यता दब गई।

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