क्या जलवायु परिवर्तन का संकेत हो सकते हैं मई में असामान्य रूप से आए पश्चिमी विक्षोभ

मई में हुई भारी बारिश और ओलावृष्टि, छह पश्चिमी विक्षोभों का परिणाम थी, जो मानसूनी मौसम प्रणालियों के साथ परस्पर क्रिया कर सकते हैं

By Akshit Sangomla, Lalit Maurya

On: Saturday 03 June 2023
 
Moderate to intense convection seen over several parts of the country on May 30, 2023. Photo: IMD

भारत में पिछले तीन महीनों के दौरान पश्चिमी विक्षोभ की घटनाओं में असामान्य रूप से वृद्धि देखी गई है। विशेष रूप से मई में छह पश्चिमी विक्षोभ सामने आए थे। देखा जाए तो गर्मियों के महीनों में इतनी ज्यादा संख्या में पश्चिमी विक्षोभों का आना आश्चर्यजनक है।

वहीं अप्रैल में तीन और मार्च में पश्चिमी विक्षोभ की सात घटनाएं सामने आई थी। यह जानकारी भारतीय मौसम विज्ञान विभाग द्वारा जारी आंकड़ों में सामने आई है जिनका विश्लेषण सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट डाउन टू अर्थ ने किया है।

देखा जाए तो पिछले तीन महीनों के दौरान, भूमध्यसागरीय क्षेत्र से उत्पन्न होने वाले बाह्योष्णकटिबंधीय चक्रवातों की एक श्रृंखला का भारत के मौसम पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ा है। इन तूफानों ने देश के कुछ हिस्सों में लम्बे समय तक चलने वाली लू को खाड़ी में ही रोके रखने में मदद की थी। हालांकि वे साथ ही देश के विभिन्न हिस्सों में भारी बारिश और ओलावृष्टि भी साथ लाए थे। इनकी वजह से फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया था और किसानों की दिक्कतों को बढ़ा दिया था।

इस समय में भारी बारिश और ओला गिरने की यह घटनाएं महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इस समय में पश्चिमी विक्षोभ विरल हैं और गर्म महीनों में कमजोर रहते हैं। जबकि यह आमतौर पर सर्दियों में चरम पर होते हैं।

सर्दियों के दौरान इन पश्चिमी विक्षोभों की घटती गतिविधियां और गर्मी में बढ़ती संख्या इंसानी प्रभाव के चलते जलवायु में आते बदलावों का एक संभावित परिणाम है। जो इन सीजनों के दौरान मौसम की विशिष्ट परिस्थितियों की बदलती विशेषताओं का संकेत देती हैं।

जानिए इनके बीच का क्लाइमेट कनेक्शन

इस बारे में नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फेरिक साइंस एंड डिपार्टमेंट ऑफ मेट्रोलॉजी, यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग से जुड़े वैज्ञानिक अक्षय देवरस का कहना है कि, "यह देखते हुए कि सर्दियों के महीनों में पश्चिमी विक्षोभ की आवृत्ति चरम पर होनी चाहिए, लेकिन निश्चित तौर पर मई में जितने पश्चिमी विक्षोभ आए हैं वो बहुत ज्यादा हैं। उनके मुताबिक आम तौर पर मई के दौरान दो से तीन पश्चिमी विक्षोभ आते हैं। जिनकी आवृत्ति जून से सितंबर के बीच तेजी से घट जाती है। यह ऐसा समय है जब उपोष्णकटिबंधीय पश्चिमी जेट हवाएं उत्तर की ओर पलायन करती हैं।

गर्मियों के दौरान पश्चिमी विक्षोभों के बढ़ने का एक और नकारात्मक प्रभाव मानसून की मौसम प्रणालियों पर पड़ने वाला प्रभाव हो सकता है। इसकी वजह से बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में कम दबाव का क्षेत्र बन सकता है। इसकी वजह से मानसून के दौरान दक्षिण और मध्य भारत में बारिश होती है।

इनकी आपसी प्रतिक्रिया से भारी बारिश की घटनाएं सामने आ सकती हैं यहां तक की पहाड़ों पर बादल फट सकते हैं, जिसकी वजह से अचानक से बाढ़ और भूस्खलन हो सकते हैं।

इतना ही नहीं पश्चिमी विक्षोभ संभवतः मॉनसूनी ट्रफ (गर्त) को भी प्रभावित कर सकते हैं। गौरतलब है कि यह गर्त एक कम दबाव वाला क्षेत्र होता है जो मॉनसून के दौरान उत्तर-पश्चिम भारत से पूर्वोत्तर भारत तक फैला रहता है। ऐसा ही कुछ जून 2013 में भी हुआ था, जिससे उत्तराखंड में भारी बाढ़ आ गई थी। इस आपदा में कम से कम 5,000 लोगों की जान गई थी।

इस बारे में देवरस का कहना है कि, "उन्हें नहीं लगता कि जून में पश्चिमी विक्षोभ का मानसून पर कोई नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।" उनके मुताबिक उपोष्णकटिबंधीय जेट हवाएं, जो पश्चिमी विक्षोभ को भारत की ओर ले जाती हैं, वो शिफ्ट होता दिख रही हैं। हालांकि उनका कहना है कि पश्चिमी विक्षोभ और मानसून की परस्पर प्रतिक्रिया जैसी विशिष्ट घटनाओं का इतने लम्बे समय के लिए पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है।

देखा जाए तो बसंत और गर्मियों में पश्चिमी विक्षोभ की निरंतर गतिविधियों के चलते देश के कई हिस्सों में अच्छी-खासी बारिश हुई है। आईएमडी के आंकड़ों से पता चला है कि जहां देश के 52 फीसदी जिलों में भारी बारिश हुई है, जबकि 12 फीसदी जिलों में सामान्य से ज्यादा बारिश पड़ी है।

गौरतलब है कि इस दौरान जहां गुजरात में सामान्य से 831 फीसदी अधिक बारिश दर्ज की गई है। वहीं सोलह राज्यों में अधिक बारिश हुई है। यह सभी राज्य उत्तर-पश्चिम, मध्य और दक्षिणी भारत में हैं। वहीं इस दौरान पूर्वोत्तर के राज्यों में बारिश की कमी रही।

आंकड़ों के मुताबिक इस मामले में मणिपुर सबसे पीछे रहा जहां औसत से 66 फीसदी कम बारिश हुई। इसके बाद त्रिपुरा 61 फीसदी, मिजोरम में 48 फीसदी, मेघालय 47 फीसदी, अरुणाचल प्रदेश में 41 फीसदी, असम में 38 फीसदी और नागालैंड में औसत से 33 फीसदी कम बारिश हुई थी।

आईएमडी के मुताबिक, पूर्वोत्तर को छोड़ दें तो गोवा में प्री-मानसून सीजन के लिए सामान्य से 65 फीसदी , केरल में 34 फीसदी, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में 65 फीसदी और लक्षद्वीप में 49 फीसदी कम बारिश हुई थी। वहीं यदि एक मार्च से 31 मई के बीच देश भर में हुई बारिश के औसत को देखें तो वो सामान्य से 12 फीसदी अधिक थी।

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