भारतीयों के स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा है जलवायु परिवर्तन: लैंसेट रिपोर्ट

हाल ही में लैंसेट जर्नल में छपी रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन भारत में स्वास्थ्य को बुरी तरह प्रभावित कर सकता है। रिपोर्ट के अनुसार प्रमुख फसलों की उपज पर इसका प्रभाव बढ़ रहा है

By Banjot Kaur, Lalit Maurya

On: Thursday 14 November 2019
 
Photo: Prashant Ravi

जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य पर छपी लैंसेट काउंटडाउन रिपोर्ट 2019 के अनुसार आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन के चलते भारत में कुपोषण की स्थिति और गंभीर हो सकती है । साथ ही इसके चलते हैजा और उसके कारण होने वाला संक्रमण बढ़ सकता है। 13 नवंबर, 2019 को जारी किए गए इस विश्लेषण के अनुसार, 1960 के बाद से भारत में मक्का और चावल की औसत उपज क्षमता में लगभग 2 फीसदी की गिरावट आई है।

रिचर्ड डेविस जोकि लैंसेट के सलाहकार हैं, ने डाउन टू अर्थ को बताया कि "इसके साथ ही सोयाबीन और सर्दियों में उगने वाले गेहूं की औसत उपज क्षमता में भी 1 फीसदी से अधिक की गिरावट आई है।" भारत में पहले से ही कुपोषण पांच साल से कम उम्र के दो-तिहाई बच्चों की मौतों के लिए कुपोषण जिम्मेदार है, ऐसे में यदि उत्पादकता गिरती है तो इसका सबसे बुरा असर बच्चों के स्वास्थ्य और पोषण पर पड़ेगा।

रिपोर्ट में प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल अकादमी ऑफ साइंसेज में छपे एक शोध के हवाले से बताया है कि वैश्विक स्तर पर तापमान में प्रत्येक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के कारण गेहूं की उपज में 6 फीसदी, चावल 3.2, मक्का 7.4 और सोयाबीन की उपज में 3.1 फीसदी की गिरावट आ जाएगी । हालांकि दक्षिण एशिया में पोषण की स्थिति सुधर रही है, जबकि दुनिया के अन्य क्षेत्रों में उपलब्धता, पहुंच और सामर्थ्य की कमी के कारण पोषण की स्थिति बदतर हो रही है । डेविस ने बताया कि जलवायु परिवर्तन के चलते जिस तरह फसलों की उपज क्षमता में जिस तरह से कमी आ रही है उसके कारण स्थिति और गंभीर हो सकती है। 

गर्म होते सागर

35 अंतराष्ट्रीय संस्थानों द्वारा किये गए शोध से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्रों का तापमान भी लगातार बढ़ रहा है। जिसके चलते मछली पालन और जलीय कृषि पर भी गंभीर खतरा मंडरा रहा है। समुद्रों का बढ़ता तापमान निम्न प्रकार से इनको प्रभावित कर रहा है:

 

  • समुद्री सतह का बढ़ता तापमान
  • मौसम की चरम घटनाओं का लगातार बढ़ना और अधिक विनाशक होना
  • समुद्र तल में हो रही लगातार वृद्धि
  • महासागरों में बढ़ रहा अम्लीकरण

 

गौरतलब है कि वैश्विक रूप से मछली 520 करोड़ लोगों के लिए पशु प्रोटीन की जरुरत का लगभग पांचवा हिस्सा प्रदान करती है। समुद्री सतह का बढ़ते तापमान भारत में हैजा, गेस्ट्रोइंटेराइटिस (पेट का फ्लू), घाव के संक्रमण जैसी कई अन्य बीमारियों में वृद्धि कर रहा है । रिपोर्ट के अनुसार बढ़ते संक्रामक रोगों के सबसे ज्यादा शिकार बच्चे होंगे। भारत में 1980 से हैजे के मामलों में 3 प्रतिशत की दर से वृद्धि हो रही है, जिसके पीछे का एक बड़ा कारण जलवायु परिवर्तन से फलफूल रहा वाइब्रियो कॉलरी बैक्टीरिया है। साथ ही, दुनिया में बढ़ते तापमान के चलते वेक्टर जनित बीमारियों जैसे डेंगू से होने वाली मृत्यु दर और बढ़ जाएगी।

प्रदूषण और बढ़ती गर्मी से बढ़ रहा है तनाव

लोगों को सिर्फ बचपन में ही नहीं आजीवन प्रभावित करता रहेगा जलवायु परिवर्तन

रिपोर्ट के अनुसार 2016 के दौरान देश में पीएम 2.5 के खतरनाक स्तर पर पहुंचने के कारण 529,500 से भी अधिक लोगों की असमय मौत हो गयी थी। इनमें से 97,400 से अधिक मौतों के लिए कोयले से होने वाला प्रदूषण जिम्मेदार था। गौरतलब है कि 2016 से 2018 के बीच भारत में कोयले से बनने वाली बिजली का उत्पादन 11 फीसदी बढ़ गया है।

अनुमान के अनुसार भारत में बढ़ती गर्मी के कारण वर्ष 2000 से करीब 2,200 करोड़ अतिरिक्त काम के घंटों का नुकसान हुआ है,  जिसमें से 1,200 करोड़ घंटे कृषि से जुड़े हुए हैं। रिपोर्ट के अनुसार तापमान में 24 के बाद हर डिग्री सेल्सियस वृद्धि के साथ 0.8 से 5 फीसदी के बीच उत्पादकता का नुकसान हो जाता है। श्रम उत्पादकता में आ रही यह कमी सीधे तौर पर गर्मी के स्वास्थ्य पर पड़ रहे दुष्प्रभावों का परिणाम है और अगर इस पर जल्द ध्यान न दिया गया तो इसके परिणाम खतरनाक हो सकते हैं।

इसके साथ ही करीब 2.1 करोड़ लोग जंगल में लग रही दावाग्नि का कोप झेल रहे हैं, जोकि 152 देशों में बढ़ रही दावाग्नि में सबसे अधिक है। जिसके कारण सीधे इसके संपर्क में आने और इससे होने वाले धुएं के संपर्क में आने से अनेकों लोगों को अपनी चपेट में ले रहा है, जिससे श्वसन की बीमारी से लेकर मृत्यु तक हो सकती है।

बुजुर्गों के लिए गर्मी एक बड़ी समस्या है। आंकड़े दिखते हैं कि 2018 में, हीटवेव के चलते करीब 4.5 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे । वैश्विक स्तर पर यह आंकड़ा 22 करोड़ के करीब था जोकि 2015 की तुलना में 1.1 करोड़ अधिक है। जबकि मध्य और उत्तरी यूरोप इससे दूसरा सबसे प्रभावित क्षेत्र था, जिसमें करीब 3.1 करोड़ लोग प्रभावित हुए थे। 

पेरिस समझौता

क्या भारत पेरिस समझौते द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को पूरा करने की राह पर है?

डेविस ने बताया कि "हालांकि लैंसेट काउंटडाउन इसे ट्रैक नहीं करता, लेकिन संयुक्त राष्ट्र, पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने में देशों की भूमिका का आंकलन करता है। उसके द्वारा प्रस्तुत 2018 एमिशन गैप रिपोर्ट के अनुसार, पेरिस समझौते के प्रति दर्शायी गयी मौजूदा प्रतिबद्धता के आधार पर भारत का उत्सर्जन भविष्य में बढ़ता जायेगा । लैंसेट रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में हो रही वैश्विक प्रगति अपर्याप्त है और यदि ऐसा ही चलता रहा तो हम इस अवसर को भी खो देंगे । दुःख की बात है कि ग्रीन क्लाइमेट फंड भी जलवायु परिवर्तन और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार को लेकर किन्ही विशेष परियोजनाओं पर काम नहीं कर रहा है । जबकि दुनिया पहले ही ग्लोबल वार्मिंग और स्वास्थ्य पर पड़ रहे उसके दुष्प्रभावों से निपटने के लिए संघर्ष कर रही है।

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