दुनिया भर के कुछ इलाकों को रहने के लिए खतरनाक बना रहा है जलवायु परिवर्तन

2100 तक खतरनाक इलाकों से निकलने में 10 फीसदी तक की कमी आ सकती है, इसमें सबसे खराब परिदृश्यों के तहत 35 फीसदी तक की कमी आ सकती है।

By Dayanidhi

On: Tuesday 12 July 2022
 
फोटो : ग्लोबल सिटीजन

जलवायु परिवर्तन दुनिया भर में कुछ इलाकों को रहने के लिए लगातार खतरनाक बना रहा है। खासकर उप-सहारा अफ्रीका, उत्तरी अफ्रीका और पूर्व सोवियत संघ की सबसे कम आय वाली आबादी पर सबसे अधिक असर पड़ने के आसार हैं। यहां रहने वाले लोगों के 2100 तक खतरनाक इलाकों से निकलने में 10 फीसदी तक की कमी आ सकती है। एक मॉडलिंग अध्ययन के मुताबिक सबसे खराब परिदृश्यों के तहत इसमें 35 फीसदी तक की कमी आ सकती है।

जलवायु परिवर्तन की रणनीतियों के अनुरूप ढलने के रूप में दूसरी जगहों पर जाने की अधिक उम्मीद है। हालांकि जलवायु परिवर्तन से कुछ सबसे वंचित क्षेत्रों में संसाधनों की कमी होने के आसार हैं। जिससे ऐसे लोगों के वहीं फंसने की सबसे अधिक आशंका हैं जो दूसरी जगह जाने का जोखिम नहीं उठा सकते हैं।

हाल के शोध ने विभिन्न मॉडलों का उपयोग करके माइग्रेशन या दूसरी जगहों पर जा कर रहने तथा इस पर भविष्य में पड़ने वाले जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का पता लगाया, लेकिन सिमित संसाधनों वाली आबादी के लिए अंतरराष्ट्रीय तौर पर दूसरे देशों में जाने की सीमाएं अभी भी अज्ञात हैं।

जलवायु परिवर्तन के कारण बिना संसाधनों के दूसरी जगहों पर न जा पाने के प्रभाव को मापने के लिए, अध्ययनकर्ताओं ने अंतरराष्ट्रीय प्रवास और प्रेषण, जिसमें आय का वितरण आदि शामिल था, इसे जोड़कर एक मॉडल विकसित किया। साथ ही इसे एक वैश्विक जलवायु-अर्थव्यवस्था मॉडल से जोड़ा गया।

इसके बाद उन्होंने इक्कीसवीं सदी में भविष्य के विकास और जलवायु परिवर्तन के पांच अलग-अलग परिदृश्यों के बाद इसका अभ्यास किया, ताकि दूसरी जगहों पर रहने के संभावित चीजों की एक श्रृंखला का वर्णन किया जा सके।

इसके बाद उन्होंने संसाधनों की कमी और बाद में दूसरी जगहों पर न जा पाने के जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को शामिल किया। यह अध्ययन हेलेन बेनवेनिस्टे और उनके सहयोगियों की अगुवाई में किया गया है।

अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि जलवायु परिवर्तन से कम से कम दुनिया के कुछ सबसे गरीब इलाकों की आबादी के दूसरे देशों में जा पाने (अंतरराष्ट्रीय गतिशीलता) में कमी आएगी। एक ऐसे परिदृश्य में जहां 2040 तक उत्सर्जन अपने चरम पर होगा और आर्थिक रुझान स्पष्ट रूप से नहीं बदलेंगे।

सबसे कम आय स्तर वाले लोगों के लिए अंतर्राष्ट्रीय गतिशीलता 10 फीसदी से अधिक कम हो सकती है। इससे पता चलता है कि संसाधनों की कमी के चलते जलवायु संबंधी प्रवास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाने की संभावना है।

अध्ययनकर्ताओं के मुताबिक ये निष्कर्ष सबसे गरीब आबादी पर जलवायु परिवर्तन के होने वाले विनाशकारी प्रभावों के साथ-साथ ढलने के उपकरण के रूप में दूसरे देशों में रहने की सीमा की पुष्टि करते हैं। यह अध्ययन नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित हुआ है।

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