कॉप-26: कृषि को पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए नीतियों में बदलाव करेंगे 26 देश, भारत भी शामिल

इसी के साथ 45 देशों ने प्रकृति की रक्षा के लिए तत्काल कार्रवाई और निवेश का वादा किया है। साथ ही उन्होंने कृषि को पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए बदलावों को अपनाने की भी बात कही है

By Lalit Maurya

On: Tuesday 09 November 2021
 

भारत सहित 26 अन्य देशों ने कॉप-26 सम्मलेन के दौरान कृषि को पर्यावरण अनुकूल और कम प्रदूषणकारी बनाने के लिए नीतियों में बदलाव पर नई प्रतिबद्धता जताई है। इन देशों में भारत, कोलंबिया, वियतनाम, जर्मनी, घाना और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश शामिल हैं। यही नहीं इन देशों ने कृषि के शाश्वत विकास के लिए विज्ञान पर निवेश की भी बात कही है। साथ ही जलवायु परिवर्तन के असर से कृषि और खाद्य आपूर्ति की रक्षा के लिए इन्हें दो 'एक्शन एजेंडा' में शामिल किया गया है।

यदि इस एजेंडे से जुड़ी कुछ राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को देखें तो इनमें जहां ब्राजील ने अपने कृषि क्षेत्र में कार्बन को कम करने के लिए शुरु किए एबीसी+ कार्यक्रम को 7.2 करोड़ हेक्टेयर तक बढ़ाने की योजना बनाई है। उसकी इस पहल से 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में करीब 100 करोड़ टन की कमी आएगी। इसी तरह जर्मनी ने भी 2030 तक अपने भूमि उपयोग से होने वाले उत्सर्जन में 2.5 करोड़ टन की कमी करने की योजना बनाई है। वहीं यूके का लक्ष्य 2030 तक 75 फीसदी किसानों को कम कार्बन उत्सर्जन के लिए जोड़ना है। 

इसी के साथ 45 देशों ने प्रकृति की रक्षा के लिए तत्काल कार्रवाई और निवेश का वादा किया है। साथ ही उन्होंने कृषि को पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए बदलावों को अपनाने की भी बात कही है। इस तरह अलग-अलग क्षेत्रों की 95 हाई प्रोफाइल कंपनियों ने भी 'नेचर पॉजिटिव' बनने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जताई है। साथ ही उन्होंने 2030 तक प्रकृति में आ रही गिरावट को रोकने और उसमें सुधार की दिशा में काम करने पर अपनी सहमति जताई है।

देखा जाए तो पर्यावरण और जलवायु के दृष्टिकोण से यह एक प्रशंसनीय पहल है जब कॉप-26 के दौरान सरकारें और व्यवसाय, किसानों और स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर प्रकृति की रक्षा के लिए एकजुट हुए हैं। साथ ही उन्होंने कृषि और भूमि उपयोग के शाश्वत विकास के लिए बदलाव की बात कही है। 

गौरतलब है कि यूके ने वन, कृषि और कमोडिटी ट्रेड (फैक्ट) रोडमैप के कार्यान्वयन का समर्थन करने के लिए करीब 5,000 करोड़ रुपए का वित्त देने की घोषणा की है। इसे वर्ल्ड लीडर्स समिट के दौरान लॉन्च किया गया था, जिसमें 28 देश ने विकास को बढ़ावा देते हुए वनों की रक्षा के लिए मिलकर काम करने की बात कही थी। इसके अलावा 650 करोड़ रुपए विकासशील देशों के लिए 'जस्ट रुरल ट्रान्सिशन' योजना के तहत जारी किए गए हैं, जिसका लक्ष्य इन देशों में कृषि और खाद्य उत्पादन से जुड़ी योजनाओं और कार्यों को पर्यावरण अनुकूल बनाने में मदद करना है। 

गौरतलब है कि देशों द्वारा की गई इन प्रतिबद्धताओं से वन और भूमि उपयोग पर ग्लासगो लीडर्स द्वारा की गई घोषणा को लागू करने में मदद मिलेगी, जिसे अब तक 134 देशों द्वारा समर्थित किया गया है। इसमें दुनिया के 91 फीसदी वनों को कवर करने का लक्ष्य रखा गया है।

इसी तरह वर्ल्ड बैंक को भी अपनी जलवायु सम्बन्धी कार्ययोजना के माध्यम से कृषि और खाद्य प्रणालियों पर ध्यान देने के लिए 2025 तक हर वर्ष करीब 1.8 लाख करोड़ रुपए जलवायु वित्त के रूप में खर्च करने के लिए प्रतिबद्ध होना होगा।    

कंपनियों ने भी 'नेचर पॉजिटिव' बनने पर जताई प्रतिबद्धता

इसी तरह निजी क्षेत्र ने भी अपनी प्रतिबद्धता को जताते हुए अलग-अलग क्षेत्रों की करीब 100 हाई-प्रोफाइल कंपनियों ने 'नेचर पॉजिटिव' बनने की बात कही है। इनमें सुपरमार्केट शामिल है जिन्होंने जलवायु और प्रकृति को हो रहे नुकसान को कम करने के लिए अपने पर्यावरण पर पड़ रहे प्रभाव को कम करने का वचन दिया है, जबकि फैशन ब्रांड ने इस बात की गारंटी दी है कि उनका मटेरियल कहां किन स्रोतों से आ रहा है वो उसका पता करेंगे। 

प्रकृति दिवस के सभी कार्यक्रमों में देशी और स्थानीय समुदायों के प्रतिनिधि भी भाग लेंगे। गौरतलब है कि दुनिया की शेष जैव विविधता के करीब 80 फीसदी हिस्से के प्रबंधक के रूप में यह स्थानीय लोग जलवायु परिवर्तन के लिए प्रकृति-आधारित, बेहतर और प्रभावी समाधान विकसित करने में अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं।

इसी तरह महासागर कार्रवाई दिवस के मौके पर 5 नवंबर को दस से अधिक देशों ने 2030 तक 30 फीसदी महासागरों की रक्षा के लिए '30बाय30' लक्ष्य पर हस्ताक्षर किए हैं। इन देशों में भारत सहित बहरीन, जमैका, सेंट लूसिया, श्रीलंका, सऊदी अरब, कतर, समोआ, टोंगा, गाम्बिया और जॉर्जिया शामिल हैं। इस लक्ष्य को अब तक दुनिया के 100 से भी ज्यादा देश अपना समर्थन दे चुके हैं।    

कॉप-26 के अध्यक्ष आलोक शर्मा के अनुसार अगर हमें वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि को सीमित करना है और 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्यों को हासिल करने की सम्भावना को जीवित रखना है तो भूमि के सतत उपयोग और प्राकृतिक संरक्षण और उसकी बहाली को अपने हर कार्यों के केंद्र में रखने की जरुरत है। 

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