कॉप 27: 2022 के दौरान भारत के उत्सर्जन में हो सकती है 6 फीसदी की वृद्धि, चीन में आएगी गिरावट

रिपोर्ट से पता चला है कि अगर मौजूदा उत्सर्जन जारी रहता है तो दुनिया 9 वर्षों में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि को पार कर सकती है

By Jayanta Basu, Lalit Maurya

On: Monday 14 November 2022
 

पिछले वर्ष की तुलना में इस साल वैश्विक उत्सर्जन में मामूली वृद्धि होने की आशंका है। वहीं सबसे ज्यादा वृद्धि भारत में देखने को मिल सकती है। यह जानकारी मिस्र के शर्म अल-शेख में जलवायु परिवर्तन पर चल रहे 27वें संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (कॉप 27) के दौरान जारी रिपोर्ट में सामने आई है। वहीं अमेरिका में  उत्सर्जन में दूसरी सबसे बड़ी वृद्धि होने का अनुमान है। यह रिपोर्ट 11 नवंबर, 2022 को जारी की गई है।

रिपोर्ट से पता चला है कि यदि उत्सर्जन का वर्तमान पैटर्न जारी रहता है, तो इस बात की 50 फीसदी आशंका है कि तापमान में होती वृद्धि पूर्व-औद्योगिक काल के स्तर की तुलना में 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को अगले नौ वर्षों में पार कर जाएगी।

11 नवंबर, 2022 को ‘ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट’ द्वारा जारी इस रिपोर्ट कार्बन बजट 2022 में जानकारी दी गई है कि जलवायु वैज्ञानिकों द्वारा वैश्विक उत्सर्जन में भारी कटौती करने की आवश्यकता के बारे में बार-बार याद दिलाने के बावजूद, वे अभी भी बढ़ रहे हैं।

यह रिपोर्ट ग्लोबल कार्बन साइकिल पर जारी नई वैश्विक अपडेट है। विश्लेषकों ने इस रिपोर्ट में उल्लेख किया है कि 2022 के दौरान वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड का औसत स्तर 417.2 पार्टस प्रति मिलियन पर पहुंच सकता है। जो औद्योगिक काल की तुलना में 51 फीसदी ज्यादा है।

2022 में और बढ़ेगा उत्सर्जन

रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में 2022 के दौरान एक फीसदी की वृद्धि हो सकती है जिसके 0.1 से 1.9 फीसदी के बीच रहने की सम्भावना है। देखा जाए तो यह तेल उपयोग में वृद्धि के कारण यह 36.6 गीगाटन तक पहुंच गया है। वहीं चीन और यूरोपीय संघ में 2022 के दौरान उत्सर्जन में कमी आने का अनुमान है, लेकिन अमेरिका, भारत और दुनिया के बाकी हिस्सों में वृद्धि हुई है।

पता चला है कि 2019 में कुल वैश्विक उत्सर्जन 36.3 गीगाटन था, जो 2020 में घटकर 34.5 गीगाटन हो गया। वहीं 2021 में बढ़कर 36.3 गीगाटन पर पहुंच गया था। रिपोर्ट के मुताबिक चीन के उत्सर्जन में 0.9 फीसदी और यूरोपीय संघ 0.8 फीसदी की गिरावट आ सकती है। वहीं अमेरिका में 1.5 फीसदी और भारत 6 फीसदी की वृद्धि होने का अनुमान है, वहीं शेष विश्व में यह वृद्धि 1.7 फीसदी के करीब रहने की सम्भावना है।

रिपोर्ट से पता चला है कि इस वृद्धि के लिए तेल का सबसे बड़ा योगदान है। देखा जाए तो कोयला और तेल से 2022 में होने वाला अनुमानित उत्सर्जन 2021 के स्तर से ऊपर है। तेल से हो रहे उत्सर्जन में इस दौरान 2.2 फीसदी की वृद्धि होने का अनुमान है।

भारत में बढ़ते उत्सर्जन के लिए जिम्मेवार है कोयला

रिपोर्ट से जुड़े वैज्ञानिकों ने जानकारी दी है कि भारतीय उत्सर्जन में होने वाली छह फीसदी की वृद्धि के लिए ज्यादातर कोयले के कारण होने वाली उत्सर्जन में वृद्धि जिम्मेवार है। अनुमान है कि कोयले से होने वाले उत्सर्जन में पांच फीसदी की वृद्धि हो सकती है। 

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि भारत पहले ही वैश्विक उत्सर्जन के बारहवें हिस्से के लिए जिम्मेवार है। वहीं यदि कुल उत्सर्जन की बात करें तो यह इस मामले में दुनिया में तीसरे स्थान पर है।  हालांकि यदि प्रति व्यक्ति उत्सर्जन के हिसाब से देखें तो भारत आज भी काफी पीछे है।

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि प्राकृतिक गैस से होने वाले उत्सर्जन में 2022 के दौरान 4 फीसदी की गिरावट आ सकती है, लेकिन कुल परिवर्तन में इसका बहुत कम योगदान है क्योंकि इस गैस का भारत के ऊर्जा क्षेत्र में बहुत छोटी सी हिस्सेदारी है। इसी तरह सीमेंट उत्सर्जन जिसकी वैश्विक उत्सर्जन में 5 फीसदी की हिस्सेदारी है उसमें भी गिरावट की सम्भावना जताई गई है।  हालांकि भारत में इसमें वृद्धि हो सकती है।

2000-2021 के दौरान, भारत में कोयला क्षेत्र से होने वाला उत्सर्जन तीन गुना बढ़कर 1.8 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर हो गया है। जोकि तेल क्षेत्र से दोगुना होकर 0.62 गीगाटन और गैस 0.04 से 0.13 गीगाटन और सीमेंट 0.05 से 0.15 गीगाटन, क्षेत्रों से बढ़कर तीन गुना हो गया है।

हालांकि विशेषज्ञ का कहना है कि कि चीन, यूरोपीय संघ और अमेरिका की नेट जीरो एमिशन की प्रतिज्ञा सामूहिक रूप से 2050 तक 500 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड के शेष कार्बन बजट का 89 फीसदी समाप्त कर देगी।

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