कॉप 27: बाढ़, सूखा, तूफानों का सामना कर रहे छोटे किसान, मिल रही केवल 1.7 फीसदी राशि

छोटे किसान जलवायु आपदाओं का सामना करते हुए भी दुनिया के खाद्य उत्पादन का करीब एक तिहाई हिस्सा पैदा करते हैं, इसके बावजूद उन्हें क्लाइमेट फाइनेंस में केवल 1.7 फीसदी की हिस्सेदारी ही मिल रही है

By Lalit Maurya

On: Sunday 13 November 2022
 

भारत, अफ्रीका जैसे विकासशील देशों के छोटे किसान दुनिया के खाद्य उत्पादन का करीब एक तिहाई हिस्सा पैदा करता हैं। यह किसान हर साल बाढ़, सूखा और तूफान जैसी न जाने कितनी जलवायु आपदाओं का हर साल सामना करते हैं, लेकिन इसके बावजूद इन्हें क्लाइमेट फाइनेंस का केवल 1.7 फीसदी हिस्सा ही मिल पा रहा है।

कुछ ऐसी ही भावनाएं शनिवार को मिस्र के शर्म अल-शेख में चल रहे शिखर जलवायु सम्मलेन कॉप-27 के दौरान देखने को मिली। जब वार्ता का ध्यान जलवायु अनुकूलन, कृषि और खाद्य प्रणालियों के अहम मुद्दों पर खींचा गया। 

इस बारे में संयुक्त राष्ट्र के कृषि विकास कोष (आईएफएडी) की सदभावना दूत सबरीना ढोवरे ऐलबा ने मीडिया को कहा कि, “हमें ग्रामीण आबादी को मौसम की चरम घटनाओं से बचने और बदलती जलवायु के अनुकूलन में मदद करने की आवश्यकता है।" उनके अनुसार यदि ऐसा नहीं किया जाता तो हम केवल एक संकट से दूसरे संकट में प्रवेश कर जाएंगे। छोटे किसान विपरीत परिस्थितियों में कठिन परिश्रम करके, हमारे लिए अन्न उगाते हैं।

उनका कहना था कि सोमाली महिला होने के नाते, ये मुद्दा उनके लिये निजी अहमियत भी रखता है। उनके देश ने लगातार चार मौसमों से बारिश नहीं देखी है, ये एक ऐसी जलवायु घटना है जो पिछले 40 वर्षो में भी नहीं दर्ज की गई है।

उनका कहना है कि वो केवल मूक दर्शक नहीं बनी रह सकती, जबकि माएं, परिवार और किसान, पूरे हॉर्न ऑफ अफ्रीका में तकलीफें झेल रहे हैं, क्यों यह क्षेत्र इतिहास के अपने सबसे बदतर दौर से गुजर रहा है।

ऐसे में उन्होंने विकसित देशों से राजनैतिक इच्छाशक्ति के साथ-साथ संसाधन निवेश को सक्रिय बनाने का भी आग्रह किया है।  उनके अनुसार कोविड-19 और उसके आर्थिक परिणामों का सामना करने के लिये अनेक ट्रिलियन डॉलर की राशि आबंटित की गई थी। अब करीब उतनी ही राशि  जलवायु परिवर्तन के लिये भी चाहिए। उतना ही धन शाश्वत कृषि की मदद के लिये भी चाहिए और ऐसा हम सबकी बेहतरी और खाद्य सुरक्षा के लिये भी अहम है।

अभी न दिया ध्यान तो सदी के अंत तक आधी रह जाएगी फसलों की पैदावार

गौरतलब है कि तेरह वर्ष पहले, कोपनहेगन में हुए कॉप 15 सम्मलेन में, विकसित देशों ने एक अहम संकल्प लिया था। उन्होंने विकासशील देशों को जलवायु अनुकूलन और तापमान में होती वृद्धि का मुकाबला करने के लिए 2020 तक हर साल 8 लाख करोड़ रुपए (10,000 करोड़ डॉलर) की रकम देने का वादा किया था। अलबत्ता वो अब तक सिर्फ वादा ही है।

इस बारे में आईएफएडी की क्षेत्रीय निदेशिका दीना सालेह का कहना है कि यदि ग्रामीण आबादी की जलवायु अनुकूलन में मदद करने में नाकाम रहते हैं तो इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। इससे लम्बी अवधि के लिए गरीबी, प्रवास और संघर्ष तक के हालात पैदा हो सकते हैं।

उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि इस सदी के अंत तक फसलों की पैदावार आधी हो सकती है। ऐसे में पिछड़ी ग्रामीण आबादी को इन आपदाओं से बचाने और उनके समुदायों की मदद और रक्षा करने के लिए बहुत कम समय ही शेष बचा है। उन्होंने चेतावनी भरे शब्दों में कहा कि अब हमारे पास अनुकूलन या भुखमरी में से किसी एक को चुनने का विकल्प बचा है।

गौरतलब है कि इन मुद्दों पर ध्यान देने के लिए कॉप 27 के अध्यक्ष मिस्र ने फास्ट नामक एक नई पहल शुरू की है। इसका मकसद 2030 तक कृषि व खाद्य प्रणालियों में बदलाव के लिए जलवायु वित्त की मात्रा और गुणवत्ता में सुधार करना है। जानकारी दी गई है कि इस सहयोग कार्यक्रम के तहत, देशों तक वित्त और संसाधनों की पहुंच आसान बनाने, लोगों को जागरूक करने, और नीतिगत समर्थन और संवाद में मदद के प्रयास किए जाएंगे।

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