किसान पर पड़ती जलवायु की मार: भारत में 45 फीसदी तक घट जाएगा डेयरी और मीट उत्पादन

तापमान में हर एक डिग्री की वृद्धि के साथ मवेशी अपने चारे में 5 फीसदी की कमी कर देंगे, जिसका सीधा असर उनके विकास, उत्पादन और प्रजनन क्षमता पर पड़ेगा

By Lalit Maurya

On: Saturday 12 March 2022
 

बदलती जलवायु जहां एक ओर कृषि और खाद्य सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन गई है। वहीं दूसरी तरफ यह पशुपालकों और उनके पशुधन पर भी व्यापक प्रभाव डाल सकती है। इस बारे में वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जिस तरह से तापमान में वृद्धि हो रही है, उसके चलते सदी के अंत तक भारत में डेयरी उत्पादन 45 फीसदी तक घट जाएगा। वहीं अमेरिका के डेयरी और मीट उत्पादन में करीब 6.8 फीसदी की गिरावट आ सकती है। 

गौरतलब है कि भारत दुनिया का एक प्रमुख डेयरी उत्पादक देश है। जहां किसान अपनी जीविका के लिए काफी हद तक अपने मवेशियों पर निर्भर हैं। ऐसे में बढ़ता तापमान उनके लिए बड़ी समस्या पैदा कर सकता है। इस बारे में कॉर्नेल विश्वविद्यालय से जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा एक विस्तृत शोध किया गया है जोकि अंतराष्ट्रीय जर्नल द लैंसेट प्लैनेटरी अर्थ में प्रकाशित हुआ है।

इस शोध में वैज्ञानिकों ने मवेशियों पर बढ़ते तापमान के असर को समझने का प्रयास किया है और यह जानने की कोशिश की है कि इससे डेयरी उत्पादन (दूध और मीट) पर कितना असर पड़ेगा। उनके अनुसार तापमान में होती वृद्धि जब मवेशियों के सहन क्षमता से बढ़ जाएगी तो उसका असर उनके वजन, दुग्ध उत्पादन और प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकता है।

यदि इससे उत्पादकता पर प्रभाव न भी पड़े तो भी गर्मी से पैदा होता तनाव छोटी अवधि में ही सही लेकिन इन जीवों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। ऐसे में यह मुद्दा केवल पशु उत्पादन का ही नहीं बल्कि उनके कल्याण से भी जुड़ा है।  

अपने इस शोध में वैज्ञानिकों ने 2045 और 2085 तक जलवायु परिदृश्य एसएसपी1 - 2.5 और एसएसपी5  - 8.5 के तहत बढ़ते तापमान के आधार पर मवेशियों पर पड़ने वाले असर का पूर्वानुमान किया है। जिसमें यह बताया गया है कि बढ़ते तापमान के पशुओं के आहार पर कितना प्रभाव पड़ेगा, साथ ही इससे डेयरी उत्पादन और वैश्विक अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान हो सकता है।

यदि भारत में दूध उत्पादन को देखें तो सदी के अंत तक जलवायु परिवर्तन के चलते इसमें प्रति मवेशी 25 फीसदी तक की गिरावट आ सकती है। जहां शुष्क और अर्ध शुष्क क्षेत्रों में इसके सबसे ज्यादा 24.6 फीसदी रहने का अनुमान है।

वहीं आर्द्र और उप आर्द्र क्षेत्रों में 9.9 फीसदी जबकि समशीतोष्ण या उष्णकटिबंधीय उच्चभूमियों पर 1.8 फीसदी रहने की सम्भावना है। इसी तरह एसएसपी5  - 8.5 परिदृश्य में सदी के अंत तक देश में बीफ उत्पादन 45 फीसदी तक गिर जाएगा। देखा जाए तो भारत में प्रति मवेशी उत्पादन कम है लेकिन यदि हालिया आंकड़ों को देखें तो देश में करीब 20 करोड़ मवेशी हैं जो उत्पादन को काफी बड़ा बना देते हैं।  

पशुपालकों को हो सकता है हर साल 3.07 लाख करोड़ रुपए का नुकसान

इसके जो निष्कर्ष निकलकर सामने आए हैं उनके अनुसार बढ़ते तापमान के चलते एसएसपी5  - 8.5 परिदृश्य में सदी के अंत तक डेयरी उत्पादन को हर साल करीब 3.07 लाख करोड़ रुपए का नुकसान होगा। यदि 2005 से इसकी तुलना की जाए तो वो करीब 10 फीसदी के बराबर बैठता है।

अनुमान है कि इसका सबसे ज्यादा असर भारत, अफ्रीका और दक्षिण अमेरिका के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों पर पड़ेगा। वैज्ञानिकों की मानें तो तापमान में हर एक डिग्री की वृद्धि के साथ मवेशी अपने चारे में 5 फीसदी की कमी कर देंगे, जिसका सीधा असर उनके विकास, उत्पादन और प्रजनन क्षमता पर पड़ेगा।       

चूंकि हम जानते हैं कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में जहां बढ़ता तापमान नई समस्याएं पैदा कर रहा है साथ ही वहां डेयरी उत्पादों की मांग भी लगातार बढ़ रही है। ऐसे में यह जरुरी है कि पशुपालक बदलती जलवायु का सामना करने के लिए तैयार रहें और उससे निपटने के लिए बुनियादी ढांचे को दुरुस्त करें। मवेशियों के लिए छाया, वेंटिलेशन और उन्हें ठंडक देने के उपायों पर ध्यान देना होगा, साथ ही ऐसी नस्लों पर ध्यान केंद्रित करना होगा जो बढ़ती गर्मी के प्रकोप को सह सकें।  

इस बारे में कॉर्नेल विश्वविद्यालय और शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता फिलिप थॉर्नटन का कहना है दुनिया के पिछड़े देशों में किसान गरीब है उनके पास सीमित संसाधन हैं। जो अपनी जीविका के लिए कहीं हद तक अपने मवेशियों पर निर्भर हैं। ऐसे में उन देशों में जहां किसानों पर सबसे ज्यादा असर पडने की सम्भावना है वहां अनुकूलन की जरूरत भी उतनी ज्यादा है। वहीं अन्य शोधकर्ता मारियो हेरेरो का कहना है कि हम सिर्फ यह आशा नहीं कर सकते कि गरीब इससे प्रभावित नहीं होंगें। हमें जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करना होगा, जिससे कोई पीछे न छूटे।

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