जलवायु परिवर्तन के चलते बढ़ सकती हैं अरबाईन तीर्थयात्रियों की मुश्किलें

अरबाईन, दुनिया की सबसे बड़े धार्मिक जुलूसों में से एक है, जिसमें हर साल करीब 2 करोड़ शिया मुस्लिम तीर्थयात्री भाग लेते हैं

By Lalit Maurya

On: Friday 28 October 2022
 
अरबाईन की पैदल यात्रा के बाद कर्बला में हुसैन श्राइन के आसपास जमा श्रद्धालु; फोटो: विकिपीडिया

वैश्विक स्तर पर जैसे-जैसे जलवायु में बदलाव आ रहे हैं और तापमान में वृद्धि हो रही है उसके चलते अरबाईन तीर्थयात्रियों की मुश्किलें समय के साथ और बढ़ सकती हैं। गौरतलब है कि अरबाईन, दुनिया की सबसे बड़ी धार्मिक सभाओं में से एक है, जिसमें हर साल करीब 2 करोड़ शिया मुसलमान तीर्थयात्री भाग लेते हैं।

इसपर किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि वैश्विक स्तर पर जिस तरह से तापमान में वृद्धि हो रही है उसके चलते सदी के अंत तक अरबाईन तीर्थयात्रा के दौरान तापमान का खतरनाक स्तर सामान्य हो जाएगा। इसकी वजह से इस धार्मिक सभा में भाग लेने वाले श्रद्धालुओं में गर्मी और उससे संबंधित बीमारियों का खतरा कहीं ज्यादा बढ़ जाएगा। इससे जुड़ा अध्ययन जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुआ है।

रिसर्च से पता चला है कि भविष्य में जलवायु परिवर्तन के चलते इराक में शिया पवित्र स्थल पर अरबाईन के दौरान लू की गंभीरता और आवृत्ति में वृद्धि होने की आशंका है। इसकी वजह से उमस में भी वृद्धि हो जाएगी जो तीर्थयात्रियों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक हो सकती है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ईराक में अरबाईन का यह धार्मिक समारोह हर साल हजरत अल-हुसैन इब्न अली की याद में आयोजित किया जाता है, जोकि मुस्लिम पैगंबर मुहम्मद साहब के पोते थे। वो 680 में कर्बला के एक युद्ध में शहीद हो गए थे।

कर्बला, इराक की इस पैदल यात्रा में श्रद्धालु नजफ, इराक से लगभग 80 किलोमीटर की यात्रा करते हैं। वहां से वो आमतौर पर एक से तीन दिनों के भीतर कर्बला पहुंच जाते हैं। लेकिन दूसरे रास्तों से यह यात्रा 500 किलोमीटर तक लम्बी हो सकती है।

शोधकर्ताओं के मुताबिक अरबाईन इस्लामी कैलेंडर के अनुसार निर्धारित किया जाता है, जो चन्द्रमा की परिक्रमा पर आधारित है। ऐसे में इसकी अवधि बदलती रहती है जब यह समारोह सर्दियों में पड़ता है तो तापमान को लेकर कोई दिक्कत नहीं है, वहीं यदि यह गर्मियों में पड़ता है तो उस दौरान लू का कहर तीर्थयात्रियों के लिए घातक हो सकता है।

अपने इस अध्ययन में शोधकर्ता येओन-वू चोई और एल्फतिह एलताहिर ने क्षेत्रीय जलवायु मॉडल का इस्तेमाल यह अनुमान लगाने के लिए किया है कि कैसे भविष्य में जलवायु परिवर्तन अरबाईन तीर्थयात्रियों के स्वास्थ्य को खतरे में डाल सकता है। उनके मॉडल के अनुसार उच्च ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन परिदृश्यों में गर्मियों का औसत तापमान 2050 से 2060 के बीच खतरनाक स्तर पर पहुंच सकता है।

दिन ही नहीं रात में बढ़ता तापमान भी बढ़ा सकता है मुश्किलें

शोधकर्ताओं का कहना है कि केवल दिन ही नहीं बल्कि रात के तापमान में होती वृद्धि भी समस्या पैदा कर सकती है, क्योंकि वो तीर्थयात्रियों को दिन की गर्मी का सामना करने के बाद रात में उसके असर से पूरी तरह से उबरने का मौका नहीं देती है। 

रिसर्च के मुताबिक जैसे-जैसे बदलती जलवायु के साथ इस क्षेत्र का तापमान बढ़ रहा है। वो स्वास्थ्य प्रणालियों पर अतिरिक्त दबाव डाल सकता है, जो पहले ही लू की चुनौतियों का सामना कर रही हैं। इस साल भी अरबाईन तीर्थयात्रा के दौरान बढ़ते तापमान ने समस्या पैदा कर दी थी।

पता चला है कि उस दौरान पारा 41 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचने पर यात्रा के दौरान कुछ तीर्थयात्री बेहोश हो गए थे। शोध से पता चला है कि यदि ईराक में गर्मी का कहर इसी तरह जारी रहता है तो इस तरह की भीषण गर्मी की घटनाओं का होना आने वाले समय में सामान्य हो जाएगा।

गौरतलब है कि यूएस नेशनल वेदर सर्विस ने 39 डिग्री सेल्सियस से ऊपर के तापमान को खतरनाक माना है, जबकि 51 डिग्री सेल्सियस से ऊपर के 'वेट-बल्ब टेंपरेचर ' को "अत्यधिक खतरे" के रूप में वर्गीकृत किया गया है । इस समय हीट स्ट्रोक का खतरा सबसे ज्यादा होता है, जो मस्तिष्क, हृदय, गुर्दे और मांसपेशियों को गंभीर नुकसान पहुंचा सकता है, यहां तक कि इससे जान भी जा सकती है।

इससे पहले भी इन खतरों के सच होने के संकेत मिल चुके हैं। ऐसी ही एक घटना 1990 में हज यात्रा के दौरान घटी थी, जब भगदड़ में 1,462 लोग मारे गए थे। वहीं दूसरी घटना 2015 में घटी थी, जिसमें 769 लोग मारे गए थे और 934 घायल हो गए थे। रिसर्च में अरबाईन को उन सामूहिक धार्मिक समारोहों की सूची में शामिल किया है जो आने वाले समय में जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हो सकते हैं।

इससे पहले मेसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन में सामने आया था कि जलवायु परिवर्तन के कारण मक्का जाने वालों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। रिपोर्ट के अनुसार बढ़ते तापमान के कारण सऊदी अरब के उस क्षेत्र में, जहां हज की जाती है, वहां गर्मी और उमस की स्थिति और बदतर हो सकती है।

इसके परिणामस्वरूप आने वाले वक्त में हज करना खतरनाक हो जाएगा, क्योंकि बढ़ते तापमान के चलते लोगों को असहनीय गर्मी का सामना करना पड़ सकता है, जो उनके स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन सकती है।

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