जलवायु परिवर्तन के चलते पृथ्वी की धुरी में आ रहा है बदलाव

जलवायु परिवर्तन और तापमान में हो रही वृद्धि के चलते दुनिया भर में ग्लेशियर बड़ी तेजी से पिघल रहे हैं जिसका असर पृथ्वी की धुरी पर पड़ रहा है और उसके झुकाव में वृद्धि हो रही है

By Lalit Maurya

On: Monday 26 April 2021
 

दुनिया भर में जिस तरह से जलवायु में बदलाव आ रहे हैं और तापमान में वृद्धि हो रही है उसका असर पृथ्वी की धुरी पर भी पड़ रहा है| शोध से पता चला है कि 1990 के बाद से ही यह बदलाव सामने आने लगे थे| वैज्ञानिकों के अनुसार यह स्पष्ट रूप धरती पर बढ़ते इंसानी प्रभावों को स्पष्ट करता है| इसकी सबसे बड़ी वजह तापमान बढ़ने के साथ बड़े पैमाने पर पिघल रहे ग्लेशियर हैं, जिनकी वजह से पृथ्वी के ध्रुवों में जो संतुलन है वो अस्थिर हो रहा है, जिससे पृथ्वी के झुकाव में भी वृद्धि हो रही है|

पृथ्वी पर उत्तर और दक्षिण दोनों ध्रुवों की स्थिति कभी भी स्थिर नहीं रहती है वो लगातार बदलती रहती है| पृथ्वी इन दोनों ध्रुवों को जोड़ने वाली एक अदृश्य रेखा के सहारे घूमती रहती है जिसे पृथ्वी की धुरी या अक्ष कहा जाता है| हालांकि धुरी में बदलाव क्यों आता है, इसके पीछे बहुत से कारण जिम्मेवार हैं|

वैज्ञानिक पहले इसके लिए केवल प्राकृतिक कारकों जैसे महासागरीय धाराओं और पृथ्वी के भीतर गर्म चट्टानों और उनके पिघलने को ही वजह मानते थे| हालांकि सभी कारणों के बारे में तो वैज्ञानिक नहीं जानते पर हाल ही में किए शोध के अनुसार 1990 के बाद से जिस तरह से धरती पर ग्लेशियरों में जमा करोड़ों टन बर्फ पिघल रही है, उनसे पृथ्वी के द्रव्यमान का जो वितरण है उसमें बदलाव आ रहा है, जिसका असर इसकी धुरी पर भी पड़ रहा है और उसमें बदला आ रहा है|  

जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में छपे इस नए शोध के अनुसार 1995 से ध्रुव दक्षिण से पूर्व की ओर खिसक रहे हैं| वहीं यदि इनके खिसकने की गति के बारे में बात करें तो वो 1981 से 1995 की तुलना में 1995 से 2020 के बीच 17 गुना ज्यादा तेजी से खिसक रहे हैं|

इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता शानशैन डेंग के अनुसार 1990 के दशक से जिस तरह से ग्लोबल वार्मिंग के चलते बर्फ तेजी से पिघल रही है वो धुरी की दिशा के बदलने के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेवार है| इस बारे में ज्यूरिख विश्वविद्यालय के जलवायु वैज्ञानिक विन्सेंट हम्फ्रे ने बताया कि पृथ्वी अपनी धुरी पर एक लट्टू की तरह ही घूमती है यदि उसके ऊपरी हिस्से से वजन हटा दिया जाए और दूसरी ओर कर दिया जाए तो उसके घूर्णन अक्ष में भी परिवर्तन हो जाता है। पृथ्वी के साथ भी ऐसा ही हो रहा है|

इसे समझने के लिए वैज्ञानिकों ने बहुत पहले ही प्रयास शुरू कर दिए थे| नासा और जर्मन एयरोस्पेस सेंटर के संयुक्त मिशन ग्रेविटी रिकवरी और क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट शुरू किया गया था| जिसके तहत दो उपग्रह भी लांच किए गए थे| इस मिशन के आंकड़ों पर आधारित पिछले अध्ययनों ने ध्रुवों में आ रहे बदलावों के कुछ प्रमुख कारणों को उजागर किया है| उसके अनुसार उत्तरी घ्रुव के कनाडा से रूस की और ओर खिसकने के पीछे पृथ्वी की बाहरी क्रोड़ में पिघला हुआ लोहा एक कारण है|

भूजल का बढ़ता दोहन भी हो सकता है एक वजह

वहीं अन्य बदलावों के लिए स्थलीय जल भंडारण में आने वाला परिवर्तन जिम्मेवार है| जिसके अंतर्गत जमीन पर मौजूद सभी जल स्रोतों जिनमें ग्लेशियर में जमा बर्फ भी शामिल है, उसके पिघलने और भूमि में मौजूद जल को निकालने के कारण संतुलन बिगड़ रहा है जिससे ध्रुवों में बदलाव आ रहा है| इस शोध से जुड़े शोधकर्ताओं का मानना है कि दुनिया में जिस तरह 1990 के बाद से जल वितरण में बदलाव आ रहा है उसका असर ध्रुवों पर भी पड़ रहा है|

हम्फ्रे के अनुसार हालांकि पृथ्वी की धुरी में यह जो परिवर्तन आया है वो उतना बड़ा नहीं है कि उसका असर हमारे दैनिक जीवन पर पड़े| इसका असर दिन की अवधि पर केवल कुछ मिलीसेकंड का ही पड़ेगा| उनके अनुसार यह स्पष्ट रूप से दिखाता है कि कि तरह इंसानी गतिविधियों का प्रत्यक्ष प्रभाव जमीन पर पानी के द्रव्यमान में होने वाले परिवर्तनों पर पड़ रहा है|

उनके अनुसार इन सब के लिए अकेले ग्लेशियरों का पिघलना ही वजह नहीं है| भूजल का बढ़ता दोहन भी इसके पीछे की एक वजह हो सकती है| विश्लेषण के अनुसार कैलिफोर्निया, उत्तरी टेक्सास, बीजिंग और उत्तरी भारत के आसपास के क्षेत्रों में पानी के द्रव्यमान में बड़े बदलावों का पता चला है| गौरतलब है कि यह सभी क्षेत्र अपनी कृषि सम्बन्धी जरूरतों के लिए बड़े पैमाने पर भूजल का दोहन कर रहे हैं| 

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