भारत के आठ राज्यों पर मंडरा रहा जलवायु जोखिम का सर्वाधिक खतरा

भारत स्थित स्विटरलैंड दूतावास के स्विस को-ऑपरेशन कार्यालय की प्रमुख कोरिेने डेमेंगे ने कहा कि इस आकलन से जलवायु परिवर्तन कार्यक्रमो को और अधिक लक्ष्य केंद्रित तरीके से लागू करने में मदद मिलेगी।

By Vivek Mishra

On: Monday 19 April 2021
 

देश के पूर्वी हिस्से में बसे राज्यों पर जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक जोखिम का खतरा मंडरा रहा है। इन राज्यों में खासतौर से झारखंड, मिजोरम, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, असम, बिहार, अरुणाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल का नाम शामिल है। 

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की ओर से जारी राष्ट्रीय जलवायु जोखिम आकलन रिपोर्ट में यह बात कही गई है।  

मंत्रालय की ओर से जारी रिपोर्ट का शीर्षक क्लाइमेट वलनरेबिलिटी एसेसमेंट फॉर एडॉप्टेशन फ्रेमवर्क है। इस रिपोर्ट में सर्वाधिक जलवायु जोखिम वाले राज्यों और जिलों की पहचान की गई है। 

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के सचिव आशुतोष शर्मा ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा " हम लगातार देख रहे हैं कि किस तरह चरम घटनाओं की न सिर्फ संख्या बल्कि उनकी मारकता में भी बढ़त हो रही है। जमीनी स्तर पर जलवायु कार्रवाई के लिए भारत के इन राज्यों की मैपिंग की गई है। यह रिपोर्ट सभी हितधारकों के लिए आसानी से उपलब्ध है। यह पूरे भारत में उन समुदायों को फायदा पहुंचाएगा जो जलवायु जोखिम वाले हिस्सों में मौजूद हैं। बेहतर तरीके से डिजाईन किए गए जलवायु परिवर्तन परियोजनाओं को जोखिम वाले समुदायों तक हितधारक आसानी से पहुंचा सकते हैं।  यह मैप मोबाइल ऐप में भी मौजूद है।

डीएसटी, जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम के प्रमुख डॉक्टर अखिलेश गुप्ता कहते हैं कि भेद्यता का पता लगाना जोखिम जानने का पहला कदम है। जलवायु जोखिम के तहत खतरा और उसके प्रभावों का आकलन भी किए जाने की आवश्यकता है। अगले चरण में इनपर भी ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

भारत में स्थित स्विटजरलैंड दूतावास के स्विस को-ऑपरेशन कार्यालय की प्रमुख कोरिने डेमेंगे ने कहा कि इस आकलन के सहारे जलवायु परिवर्तन कार्यक्रमों को और अधिक लक्ष्य केंद्रित तरीके से लागू करने में मदद मिलेगी। राज्यों के जलवायु संबंधी एक्शन प्लान को भी बेहतर बनाने में यह मददगार होगा। उन्होंने कहा कि पेरिस समझौते के तहत राष्ट्रीय प्रतिबद्धता योगदान में भारतीय रिपोर्टिंग में भी यह आकलन मददगार होगा और भारत के जलवायु परिवर्तन संबंधी राष्ट्रीय कार्रवाई योजना को भी सहयोग करेगा। 

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) तथा स्विस एजेंसी फॉर डेवलपमेंट एंड कोऑपरेशन के समर्थन से किए गए इस देशव्यापी अभ्यास में 24 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के कुल 94 प्रतिनिधियों ने भागीदारी की। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सक्रिय भागीदारी और सहयोग से किए गए आकलन और प्रशिक्षण तथा क्षमता निर्माण अभ्यास के जरिए ऐसे संवेदनशील जिलों की पहचान की गई है, जो नीति-निर्माताओं को उचित जलवायु क्रियाओं को शुरू करने में मदद करेंगे। इससे बेहतर तरीके से जलवायु परिवर्तन अनुकूलन परियोजनाएं तैयार की जा सकेंगी और उनके जरिए जलवायु परिवर्तन का दंश झेल रहे देश के विभिन्न समुदायों को लाभ होगा। भारत जैसे विकासशील देशों में इस प्रकार के आकलन विभिन्न परियोजनाओं और कार्यक्रमों को लागू करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं।

राज्यों और जिलों के उपलब्ध आकलन से इसकी तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि इन आकलनों के लिए जिन पैमानों का इस्तेमाल किया गया है, वे अलग अलग हैं, इसलिए ये नीतिगत और प्रशासनिक स्तर पर निर्णय लेने की क्षमता को सीमित करते हैं। डीएसटी ने हिमालयी क्षेत्र की संवेदनशीलता के आकलन के लिए एक समान प्रारूप बनाने का समर्थन किया है। यह जलवायु परिवर्तन संबंधी अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की पांचवीं मूल्यांकन रिपोर्ट (एआर 5) पर आधारित है।

इस समान प्रारूप और इसे लागू करने के लिए जरूरी मैनुअल को आईआईटी मंडी, आईआईटी गुवाहाटी और भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु ने तैयार किया। इस प्रारूप को भारतीय हिमालयी क्षेत्र के सभी 12 राज्यों में क्षमता निर्माण प्रक्रिया के जरिए लागू किया गया । इस दिशा में किए गए प्रयासों के नतीजे हिमालयी राज्यों के साथ बांटे गए जिसके कई सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं जैसे कि इनमें से कई राज्यों ने पहले से ही संवेदनशीलता मूल्यांकन आधारित जलवायु परिवर्तन अनुकूलन कार्यों को प्राथमिकता दी है और उन्हें लागू भी कर चुके हैं। हिमालयी क्षेत्र के राज्यों में इनके लागू होने की उपयोगिता को देखते हुए यह निर्णय किया गया कि
राज्यों की क्षमता निर्माण के जरिए पूरे देश के लिए एक जलवायु संवेदनशीलता आकलन अभ्यास शुरू किया जाए।

डीएसटी नेशनल मिशन फॉर सस्टेनिंग द हिमालयन इकोसिस्टम (एनएमएसएचई) और नेशनल मिशन फॉर स्ट्रैटेजिक नॉलेज फॉर क्लाइमेट चेंज (एनएमएसकेसीसी) मिशन के तहत 25 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में राज्य जलवायु परिवर्तन सेल को समर्थन दे रहा है। राज्यों के इन जलवायु परिवर्तन सेल पर अन्य कामों के अलावा प्रारंभिक रूप से जलवायु परिवर्तन के कारण
राष्ट्रीय, जिला और उप-जिला स्तर पर आ रही संवेदनशीलता का आकलन करने की जिम्मेदारी भी है।

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