अत्यधिक सिंचाई का भारतीय मानसून पर पड़ता है असर, चरम मौसम बढ़ने की आशंका: अध्ययन

मध्य भारत में हाल के दशकों में अत्यधिक बारिश हुई है, सिंचाई और वाष्पीकरण में वृद्धि के चलते इस तरह की घटनाएं बढ़ जाती हैं।

By Dayanidhi

On: Tuesday 06 July 2021
 
Photo : Wikimedia Commons

एक नवीनतम जलवायु अध्ययन के मुताबिक, उत्तर भारत में अत्यधिक सिंचाई की वजह से सितम्बर में होने वाली मानसूनी बारिश उपमहाद्वीप के उत्तर-पश्चिमी भाग की ओर चली जाती है। इस प्रक्रिया के परिणामस्वरूप पूरे मध्य भारत में मौसम की चरम सीमा बढ़ जाती है। मौसम की चरम सीमा का मतलब अत्यधिक बारिश होने या सूखा पड़ने से है।

ये मौसम संबंधी खतरे किसानों और उनकी फसलों की घटती उपज या फसलें बर्बाद होने के जोखिम में डाल देते हैं। अध्ययन में कहा गया है कि मानसूनी वर्षा दक्षिण एशिया में सिंचाई में पसंद की जाने वाली प्रथाओं में से एक है। यह अध्ययन इस क्षेत्र में कृषि पद्धतियों की योजनाओं को बनाने में मदद कर सकता है।   

दक्षिण एशिया के कृषि क्षेत्र दुनिया के सबसे अधिक सिंचित क्षेत्रों में से एक है। ये बड़े पैमाने पर भूजल का उपयोग करते हैं और यहां की गर्मी की प्रमुख फसल धान है, जिसकी खेती पानी की सबसे अधिकता वाले क्षेत्रों में की जाती है।

शोधकर्ताओं के अनुसार इस अध्ययन में पता चलता है कि इस तरह की प्रथाएं मानसून को कैसे प्रभावित कर सकती हैं, जो इस कृषि आधारित अर्थव्यवस्था का आधार है।

यह शोध विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की सहायता से किया गया है। इसकी अगुवाई आईआईटी बॉम्बे में जलवायु अध्ययन पर कार्यक्रम (आईडीपीसीएस) में सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर और संयोजक सुबिमल घोष द्वारा की गई है। शोध में घोष ने भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून पर कृषि जल के उपयोग के प्रभाव की जांच के लिए, जलवायु मॉडल का उपयोग किया है।

जर्नल 'जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स' में हाल ही में प्रकाशित शोध से पता चला है कि मानसून की वर्षा दक्षिण एशिया में सिंचाई पद्धतियों की पसंद के प्रति संवेदनशील है।

एक अन्य अध्ययन में, आईआईटी बॉम्बे के प्रोफेसर शुभंकर कर्मकार और उनके शोध समूह ने पहली बार पता लगाया कि चावल और गेहूं के लिए जोखिम हाल के दशक में चावल की तुलना में गेहूं को दो गुना है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि फसल पर बढ़ते खतरे के पीछे मुख्य रूप से किसानों की घटती संख्या है। गेहूं की फसल के लिए बढ़ते खतरे के रूप में इसको उगाने वाले मौसम के दौरान न्यूनतम तापमान में वृद्धि को जिम्मेदार ठहराया गया है।

इस अध्ययन से यह पता चलता है कि अत्यधिक वर्षा और सूखे से संबंधित जलवायु संबंधी खतरे विशेष रूप से तापमान की चरम सीमा की तुलना में फसलों पर जोखिम को बढ़ा रहे हैं।

अध्ययन के निष्कर्ष से स्पष्ट है कि मध्य भारत में हाल के दशकों में अत्यधिक बारिश हुई है। सिंचाई और वाष्पीकरण में वृद्धि के चलते ऐसा होता है। भूमि की सतह से वाष्पीकरण होता है साथ ही पौधों से होने वाले वाष्पोत्सर्जन के कारण अत्यधिक बारिश होने की घटनाएं बढ़ जाती हैं।    

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