बाढ़ और सूखा जैसी आपदाओं के चलते भारत सहित दुनिया में बढ़ रही हैं हिंसक घटनाएं

भारत में जलवायु से जुडी आपदाओं के चलते सबसे ज्यादा हिंसक संघर्षों के मामले सामने आये हैं

By Lalit Maurya

On: Friday 03 April 2020
 

भारत सहित दुनिया के कई देशों में हिंसक घटनाएं आम बात होती जा रही हैं| वैज्ञानिक इनके लिए जलवायु सम्बन्धी आपदाओं को एक बड़ी वजह मान रहे हैं| हाल ही में जारी अध्ययन के अनुसार देश-दुनिया में बाढ़ सूखा जैसी आपदाओं के चलते हिंसक वारदातों में बढ़ोतरी आयी है| जिसके अनुसार ऐसा कमजोर देशों में ज्यादा हो रहा है| उनके अनुसार कमजोर देशों से मतलब उन देशों से हैं, जहां एक बड़ी आबादी रहती है| यह देश अभी भी अपने विकास के लिए संघर्ष कर रहे हैं| जिनमें रहने वाले कई समुदाय आज भी राजनीति से अलग-थलग हैं| आज भी इन देशों के पास इतने साधन नहीं हैं कि वो इन आपदाओं से निपट सकें| यही वजह है कि इन आपदाओं के चलते हिंसक वारदातें बढ़ रही हैं| यह अध्ययन वैश्विक स्तर पर मौजूद आंकड़ों और उनके सांख्यिकीय विश्लेषण पर आधारित हैं| इसमें स्थानीय और क्षेत्रीय मामलों का भी अध्ययन किया गया है| जोकि नीति-निर्माताओं को इस विषय की गंभीरता को समझने में मदद कर सकता है। पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च द्वारा किया गया यह शोध जर्नल ग्लोबल एनवायर्नमेंटल चेंज में प्रकाशित हुआ है| इस शोध से जुड़े शोधकर्ता जोनाथन डोंग्स, जोकि पोट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इंपैक्ट रिसर्च से जुड़े हैं ने बताया कि "जलवायु से जुडी आपदाएं इन संघर्षों की आग को और हवा दे सकती हैं| जोकि सचमुच चिंताजनक हैं क्योंकि दुनिया भर में ऐसी आपदाएं तेजी से बढ़ रही हैं|" दुनिया भर में जिस धड़ल्ले से जीवाश्म ईंधन का उपयोग हो रहा है, उसके चलते ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ता जा रहा है| परिणामस्वरूप क्लाइमेट बड़ी तेजी से बदल रहा है| जिससे इन आपदाओं में भरी वृद्धि हो रही है, साथ ही यह और विकराल रूप लेती जा रही हैं|" 

कमजोर देशों में हो रहीं हैं दुनिया की एक तिहाई हिंसक घटनाएं

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि दुनिया भर में घटने वाली हिंसक घटनाओं में से एक तिहाई कमजोर देशों में घट रही हैं| जहां साधनों का आभाव है| इस अध्ययन के सह लेखक क्लाइमेट एनालिटिक्स के शोधकर्ता कार्ल-फ्रेडरिक ने बताया कि "हाल के दशकों में दुनिया भर के एक तिहाई संघर्ष कमजोर देशों में घटे हैं| और ऐसा इन आपदाओं के घटने के सात दिनों के अंदर हुआ है|" उनके अनुसार "हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि आपदाएं संघर्ष का कारण बनती हैं, बल्कि यह भी है कि इन आपदाओं के घटने से संघर्ष होने का खतरा बढ़ जाता है।" आखिरकार, संघर्ष मानव निर्मित होते हैं। आपदाओं और संघर्ष से जुड़े मामलों के विश्लेषण से पता चला है कि ऐसे अधिकांश मामले महज संयोग नहीं हैं, बल्कि उन दोनों में गहरा सम्बन्ध भी है। इस शोध में 2009 के दौरान अफ्रीकी देश माली में आये सूखे का जिक्र किया गया है| जिसके चलते आतंकवादी संगठन अल कायदा ने राज्य की कमजोरी और लोगों की स्थिति का फायदा उठाते हुए बड़ी संख्या में नवयुवकों को अपने संगठन में शामिल कर लिया था| जिससे संघर्ष में बढ़ोतरी हुई थी| इसके साथ ही इसमें चीन, फिलीपींस, नाइजीरिया और तुर्की का भी जिक्र किया गया है| इस रिपोर्ट के अनुसार चौंका देने वाली बात यह रही कि भारत में आपदाओं के चलते इस तरह के सबसे ज्यादा संघर्षों के मामले सामने आये हैं|

सबका विकास और बेहतर आपदा प्रबंधन से बदल सकते हैं हालात

शोध के अनुसार चूंकि संघर्ष में वृद्धि और आपदाओं से निपटने की नाकाबलियत सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं, इसलिए आपदाओं से निपटने की बेहतर तैयारी, सही नीतियां इनसे निपटने में मदद कर सकती हैं| इसके साथ ही समाज के सभी वर्गों का विकास भी बहुत जरुरी हैं, क्योंकि आर्थिक, सामजिक और राजनैतिक रूप से पिछड़ा वर्ग ही इन आपदाओं और संघर्षों का सबसे ज्यादा शिकार बनता है, ऐसे में उनके सर्वांगीण विकास इन संघर्षों में लगाम लगा सकता है| बाढ़ और सूखे जैसी घटनाओं से निपटने की तैयारी ने केवल इनके असर को कम कर सकती है, बल्कि इन घटनाओं के तुरंत बाद होने वाले संघर्षों को भी रोक सकती हैं| इसके साथ ही सबसे महत्वपूर्ण हैं कि समाज के सभी वर्गों का विकास सुनिश्चित किया जाये, साथ ही राजनीति में उनकी भागीदारी भी बढ़ाई जाये| जिससे उनकी बात सुनी जाये और देश की नीतियों में उन्हें भी जगह मिल सके| यह ने केवल किसी समाज को इन संघर्षों से बचाएगा| बल्कि सारे देश को बढ रहे जलवायु सम्बन्धी खतरों और संघर्षों से निपटने के लिए तैयार करेगा| जिससे इस तरह की घटनाएं भविष्य में न घट सकें|

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