ग्लोबल वार्मिंग: महासागरों के सर्वाधिक जैवविविधता सम्पन्न 70 फीसदी क्षेत्रों में संकट में है समुद्री जीवन

वैज्ञानिकों का दावा है महासागरों में सबसे जैव विविध क्षेत्रों के 70 फीसदी से ज्यादा हिस्से में मौजूद समुद्री जीवन खतरे में है, जिसके लिए बढ़ता तापमान जिम्मेवार है

By Lalit Maurya

On: Monday 25 July 2022
 

वैज्ञानिकों का दावा है कि महासागरों में सबसे जैव विविध क्षेत्रों के 70 फीसदी से ज्यादा हिस्से में मौजूद समुद्री जीवन खतरे में है, जिसके लिए बढ़ता तापमान जिम्मेवार है। वहीं अन्य संवेदनशील क्षेत्र मैनाटी सहित कई समुद्री मेगाफौना का घर हैं।

एडिलेड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का मानना है कि सबसे संकटग्रस्त समुद्री समुदायों में दुनिया की अधिकांश रीफ-बिल्डिंग कोरल प्रजातियां शामिल हैं, जो पारिस्थितिकी तंत्र सम्बन्धी महत्वपूर्ण सेवाएं प्रदान करती हैं।

देखा जाए तो यह कोरल्स न केवल समुद्र के परिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण है, यह हमारे लिए भी बहुत मायने रखती हैं| यह करीब 830,000 से अधिक प्रजातियों का घर हैं| यह तटों पर रहने वाले समुदायों को भोजन और जीविका प्रदान करती हैं| इनसे मतस्य पालन और पर्यटन को मदद मिलती है| यह समुद्री तूफानों से भी तटों की रक्षा करती हैं, साथ ही कई डूबते द्वीपों के लिए जमीन प्रदान करती हैं|

इस बारे में एडिलेड विश्वविद्यालय के पर्यावरण संस्थान के प्रमुख डॉक्टर स्टुअर्ट ब्राउन ने बताया कि, “शोध से पता चला है कि भविष्य में महासागरों के बढ़ते तापमान का खतरा असाधारण रूप से उच्च समुद्री जैव विविधता वाले क्षेत्रों में कहीं ज्यादा है। यह इन क्षेत्रों को 21वीं सदी के जलवायु परिवर्तन के लिए विशेष रूप से कमजोर बनाता है।“ उनके अनुसार ऐसा इसलिए है क्योंकि जैव विविधता से भरपूर इन क्षेत्रों में रहने वाली प्रजातियां तापमान में होते बड़े बदलावों का सामना करने के लिए आम तौर पर काबिल नहीं हैं।

यदि वैश्विक तापमान में होती वृद्धि को देखें तो नेशनल ओसेनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के अनुसार 90 फीसदी ग्लोबल वार्मिंग समुद्र में हो रही है। 1955 के बाद से पानी की आंतरिक गर्मी तेजी से बढ़ रही है। अनुमान है कि यह गर्मी दिसंबर 2021 में 337 जेटाजूल्स पर पहुंच गई थी।

हालांकि यह सही है कि महासागरों की ताप सहन करने की क्षमता बहुत अधिक होती है। यही वजह है पिछले कुछ दशकों में पैदा हुई गर्मी का करीब 90 फीसदी हिस्सा समुद्रों ने सोख लिया है। अनुमान है कि समुद्र की कुछ मीटर की गहराई, पूरे वातावरण जितनी गर्मी को जमा कर रही है।

इसकी वजह से न केवल समुद्री बर्फ तेजी से पिघल रही है और जलस्तर में वृद्धि हो रही है। साथ ही समुद्री जैवविविधता पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है। इसकी कारण न केवल कोरल ब्लीचिंग जैसी घटनाएं बड़े पैमाने पर सामने आई हैं साथ ही वहां रहने वाले जीवों के व्यवहार में भी व्यापक बदलाव आ रहा है। समुद्र में बढ़ी ऊष्मा न केवल उसकी बायोकेमिस्ट्री में बदलाव ला रही है साथ ही उसके स्वास्थ्य पर भी व्यापक असर डाल रही है।

अंतराष्ट्रीय स्तर पर प्रवाल भित्तियों पर किए एक शोध से पता चला है कि वैश्विक उत्सर्जन में यदि तीव्र वृद्धि जारी रहती है तो 2050 तक करीब 94 फीसदी प्रवाल भित्तियां खत्म हो जाएंगी। जर्नल ग्लोबल चेंज बायोलॉजी में प्रकाशित इस शोध के मुताबिक यदि यह मान भी लिया जाए कि तापमान में होती वृद्धि बहुत ज्यादा तेज नहीं होगी उस स्थिति में भी समुद्री जैव विविधता के यह हॉटस्पॉट बढ़ती गर्मी के लिए अत्यंत संवेदनशील होंगें।

बचने के लिए कई प्रजातियों को अपने आवास क्षेत्रों में करना होगा बदलाव

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने अतीत और भविष्य में समुद्र में बढ़ने वाली गर्मी की दरों की तुलना करने के लिए एक नई तकनीक का उपयोग किया है। इसकी मदद से उन्होंने वैश्विक स्तर पर समुद्रों में जलवायु परिवर्तन के बढ़ते जोखिम को मैप भी तैयार किया है। इससे पता चला है कि संवेदनशील क्षेत्रों में बढ़ते संकट की वजह से पौधों और अन्य जीवों को उपयुक्त जलवायु परिस्थितियों के लिए कितनी दूरी तक स्थानांतरित करने की आवश्यकता होगी। 

शोधकर्ता डॉक्टर ब्राउन का इस बारे में कहना है कि इसके असर से बचने के लिए कई मामलों में प्रजातियों को उन क्षेत्रों से आगे बढ़ने की जरुरत होगी, जिसमें वो विकसित और अनुकूलित हुई हैं। उनके अनुसार समुद्री जीवन के लिए शायद ही पहले कभी ऐसे बदलाव की जरुरत को देखा गया है।

शोध से जुड़े अन्य शोधकर्ता डेमियन फोर्डहम का इस बारे में कहना है कि, "हम जानते हैं कि इंसानों के कारण जलवायु में आता बदलाव समुद्री प्रजातियों की संख्या और वितरण को बड़े स्तर पर प्रभावित कर रहा है। हालांकि अतीत और भविष्य में समुद्री तापमान में आते बदलावों का इन प्रजातियों के स्थानिक पैटर्न पर क्या प्रभाव पड़ेगा वो स्पष्ट नहीं है।"

उनका कहना है कि "यह दर्शाते हुए कि भविष्य में समुद्री जैवविविधता से भरपूर क्षेत्रों को बढ़ता तापमान असमान रूप से प्रभावित करेगा, हमारे परिणाम जलवायु परिवर्तन की स्थिति में समुद्री जैव विविधता की रक्षा के लिए संरक्षण कार्यों को और मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।“

ऐसे में उनके अनुसार जलवायु परिवर्तन से बचाव हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए। इसके साथ-साथ मत्स्य पालन प्रबंधन में सुधार, प्रजातियों की बेरोकटोक आवाजाही में सहायता और बेहतर तरीके से प्रबंधित क्लाइमेट स्मार्ट समुद्री संरक्षित क्षेत्रों का विस्तार समुद्री जैव विविधता को बचाने में मददगार हो सकता है। 

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