वड़ोदरा का एक आश्रम दिखा रहा है दुनिया को जलवायु परिवर्तन से निपटने की राह

वड़ोदरा के एक आश्रम ने यह करके दिखा दिया है कि किस तरह दुनिया प्रकृति पर आधारित समाधानों की सहायता से जलवायु परिवर्तन के असर को पलट सकती है

By Lalit Maurya

On: Thursday 12 December 2019
 

Photo courtesy: greenashram.org

यह सच है कि जलवायु परिवर्तन प्रकृति पर ऐसा असर डाल रहा है, जिसे बदला नहीं जा सकता। लेकिन भारत के वड़ोदरा का एक आश्रम दुनिया को एक राह दिखा रहे हैं, जिससे जलवायु परिवर्तन की गति को कम किया जा सकता है। इस आश्रम का उल्लेख वर्ल्ड वाइल्ड फंड फॉर नेचर (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) एक नई रिपोर्ट, "क्लाइमेट, नेचर एंड अवर 1.5° सेल्सियस फ्यूचर" में किया गया है।

रिपोर्ट के अनुसार वड़ोदरा के पास गोराज में स्थित मुनि सेवा आश्रम है। यह आश्रम मानव देखभाल का एक शांति आश्रय है। साथ ही यह मानव-प्रकृति के सहसम्बन्ध का भी बहुत अच्छा उदाहरण है। जोकि अगले साल तक पूरी तरह से कार्बन न्यूट्रल होगा। इसमें पहला सोलर पैनल 1984 में स्थापित किया गया था, जब क्लाइमेट चेंज किसी के एजेंडे में भी नहीं था। इसकी ऊर्जा सम्बन्धी मांग सौर पैनलों द्वारा और आश्रम में ही उगाई गई लकड़ी से पूरी की जाती है। साथ ही यहां बचे हुए बेकार भोजन और जानवरों के अपशिष्ट से बनी खाद से बायोगैस बनायीं जाती है। जिसका उपयोग स्टेट में कारों को चलाने और खाना पकाने के लिए किया जाता है। इसके साथ ही सोलर कुकर का भी उपयोग किया जाता है।

रिपोर्ट के मुताबिक, यहां बने अस्पताल को ठंडा रखने के एयर कंडीशनिंग सिस्टम भी सोलर एनर्जी से चलता है। भोजन की आवश्यकता के लिए 70 फीसदी साधनों को यहीं पर उगाया जाता है। साथ ही यहां एक अनाथालय, सभी उम्र के बच्चों और बड़ों लिए स्कूल, व्यावसायिक प्रशिक्षण, बुजुर्गों की देखभाल, अत्याधुनिक मशीनरी के साथ एक कैंसर अस्पताल का भी निर्माण किया गया है। यहां तक कि एक सौर ऊर्जा से चलने वाला शवदाह गृह भी है।

 इसके साथ ही इस रिपोर्ट में सिक्किम के जंगलों में रहने वाले लाल पांडा और उस पर पड़ रहे जलवायु परिवर्तन के असर का भी जिक्र किया है। जोकि ग्लोबल वार्मिंग के कारण जंगलों में बढ़ती आग का दंश झेल रहा है। वैज्ञानकों को आशंका है कि तापमान के बढ़ने के साथ-साथ इसके आवास पर संकट बढ़ता जा रहा है।

यह रिपोर्ट जलवायु संकट से बचने के लिए समाधान के रूप में प्रकृति की ओर इशारा करती है। साथ ही ग्लोबल वार्मिंग से लड़ने के लिए राष्ट्रों, शहरों और व्यवसायों को साथ मिलकर काम करने का भी आहवाहन करती है। जिससे तापमान में हो रही वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस के भीतर रखा जा सके। रिपोर्ट इसके लिए मजबूत नेतृत्व और तत्काल कार्रवाई की मांग करती है। जिससे जलवायु परिवर्तन के बढ़ रहे खतरे को सीमित रखा जा सके। 

यह रिपोर्ट पिछले वर्ष आईपीसीसी द्वारा क्लाइमेट चेंज पर जारी विशेष रिपोर्ट और आईपीबीईएस के वैश्विक मूल्यांकन पर आधारित है। यह इस बात पर भी प्रकाश डालती है कि किस तरह क्लाइमेट चेंज प्रकृति, पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को प्रभावित कर रहा है। और कैसे एक मजबूत और स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र लोगों की जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मदद कर सकता है। साथ ही यह इस बात पर भी जोर देती है कि कैसे वैश्विक स्तर पर प्रकृति-आधारित समाधानों की मदद से इस खतरे से निपटा जा सकता है। जिसकी जरुरत भी है, क्योंकि जीवाश्म ईंधन के उपयोग और उससे होने वाले उत्सर्जन को रोकने के लिए जिस रफ्तार से कटौती की जा रही है वो धरती को बचने के लिए पर्याप्त नहीं होगी।

दुनिया भर क्लाइमेट चेंज से निपटने और प्रकृति को बचाने के लिए जिस तरह आधे मन से प्रयास किये जा रहे हैं वो खतरनाक है। इससे लड़ने के लिए जो कॉप-25 मैड्रिड में वैश्विक समाज इकठ्ठा हुआ है, उसे ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिए तत्काल ठोस कदम उठाने की जरुरत है। आज डीप डीकार्बोनाइजेशन के साथ-साथ प्रकृति आधारित समाधान सभी देशों की जलवायु योजनाओं का हिस्सा होना चाहिए। और ऐसा करके वे जलवायु परिवर्तन के असर को पलट सकते हैं।

साथ ही दुनिया के कमजोर तबके को भी जलवायु सम्बन्धी जोखिमों से बचा सकते हैं। और ऐसा करके वो सभी के लिए एक बेहतर भविष्य दें सकते हैं। पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता की रक्षा, सुधार और उचित प्रबंधन के जरिये क्लाइमेट चेंज के जोखिमों को कम किया जा सकता है। यह एक ऐसा तरीका है जिसकी मदद से आने वाले वर्षों में भी लोगों के लिए भोजन, पानी और अन्य महत्वपूर्ण संसाधनों की आपूर्ति को सुनिश्चित कर सकते हैं।

डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के ग्लोबल क्लाइमेट एंड एनर्जी प्रैक्टिस के प्रमुख मैनुअल पुलगर-विडाल ने बताया कि "आज मानव प्रकृति को ऐसे जख्म दे रहा है, जिसे कभी भरा नहीं जा सकेगा। जबकि आज उसे इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है। प्रकृति की रक्षा और इसके बहाली केवल एक नैतिक मुद्दा ही नहीं है। प्रकृति हमारे समाज और अर्थव्यवस्था को जीवन देती है। साथ ही यह जलवायु संकट से लड़ने के लिए हमारा सबसे बड़ा हथियार बन सकती है।"

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