जलवायु संकट: अगले 28 वर्षों में लू की चपेट में होगा धरती का हर बच्चा

अनुमान है कि बढ़ते तापमान के चलते 2050 तक करीब 200 करोड़ से ज्यादा बच्चे बार-बार होने वाली लू की घटनाओं का सामना करने को मजबूर होंगे

By Lalit Maurya

On: Wednesday 26 October 2022
 
यमन में शरणार्थियों के लिए बनाए एक शिविर में पानी की बौछारों का आनन्द लेते हुए बच्चे, फोटो: गैब्रीज/यूनिसेफ

बच्चों के लिए काम कर रही संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनिसेफ ने अपनी एक नई रिपोर्ट “द कोल्डेस्ट ईयर ऑफ द रेस्ट ऑफ देयर लिव्स” में कहा है कि जिस तरह से वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है और जलवायु में आता बदलाव गंभीर रूप लेता जा रहा है, उसके चलते 2050 तक धरती पर मौजूद हर बच्चा किसी न किसी रूप में लू की चपेट में होगा।

गौरतलब है कि दुनिया भर में करीब 55.9 करोड़ बच्चे यानी हर चार में से एक बच्चा पहले ही लू की चपेट में हैं। वहीं हर तीन में से एक बच्चा उन देशों में रह रहा है, जहां तापमान पहले ही काफी बढ़ चुका है।

देखा जाए तो जैसे-जैसे जलवायु संकट कहीं ज्यादा गंभीर रूप लेता जा रहा है उसके चलते लू की घटनाएं कहीं ज्यादा व्यापक और गंभीर रूप लेती जा रही हैं। रिपोर्ट की मानें तो बच्चे इन जलवायु संकट के मामले में सबसे अग्रिम पंक्ति में हैं।

अनुमान है कि बढ़ते तापमान के चलते 2050 तक करीब 200 करोड़ से ज्यादा बच्चे बार-बार होने वाली लू की घटनाओं का सामना करने को मजबूर होंगें। यहां तक की यदि तापमान में होती वृद्धि को 1.7 डिग्री सेल्सियस पर रोक लिया जाए तो भी स्थिति के गंभीर रहने का ही अंदेशा है।

देखा जाए तो लू की यह घटनाएं न केवल सीधे तौर पर स्वस्थ को नुकसान पंहुचा रही हैं। साथ ही इनकी वजह से बीमारियों, फसलों, भुखमरी और जबरन प्रवास का खतरा भी बढ़ता जा रहा है।

रिपोर्ट का कहना है कि आने वाले कुछ वर्षों में सबसे अच्छी स्थिति में भी करीब 200 करोड़ बच्चों को हर साल भयंकर लू की चार से पांच घटनाओं का सामना करना पड़ सकता है। इस बारे में यूनिसेफ की कार्यकारी निदेशिका कैथरीन रसैल का कहना है कि, “जलवायु आपदाएं, दरअसल एक बाल अधिकार से भी जुड़ा संकट है और पहले ही इसका विनाशकारी असर बच्चों की जिंदगियों व भविष्य पर पड़ रहा है।“

उनका कहना है कि इस वर्ष जंगल में लगने वाली आग और लू की घटनाओं का प्रकोप भारत, यूरोप और उत्तरी अमेरिका तक में देखा गया था, जो बच्चों पर पड़ते जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का एक अन्य गम्भीर उदाहरण है।

रिपोर्ट में जो ताजा आंकड़े प्रकाशित किये गए हैं उनके अनुसार मौसम की अत्यन्त गर्म घटनाओं से वयस्कों की तुलना में, छोटे बच्चे को कहीं ज्यादा खतरा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि वयस्कों की तुलना में छोटे बच्चे अपने शरीर के तापमान को नियंत्रित करने कम समर्थ है। बच्चे जितना ज्यादा लू का सामना करते हैं, उनके लिए दीर्घकालीन बीमारियों का जोखिम उतना ज्यादा बढ़ जाता है। इससे उनमें सांस सम्बन्ध बीमारियां, अस्थमा, और हृदय सम्बन्धी बीमारियां हो सकती हैं। 

भारत में भी बढ़ता जा रहा है गर्मी और लू का कहर

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र और रेड क्रॉस द्वारा जारी नई रिपोर्ट “एक्सट्रीम हीट: प्रीपेरिंग फॉर द हीटवेब्स ऑफ द फ्यूचर” से पता चला है कि भारत के कई हिस्सों में पिछले 60 वर्षों के दौरान सूखे और लू की आवृत्ति काफी बढ़ गई है। जो देश में लोगों के लिए नई चुनौतियां पैदा कर रहीं हैं।

रिपोर्ट के अनुसार लू के बढ़ते कहर से बचने के लिए कहीं ज्यादा बड़े स्तर पर कार्रवाई की जरूरत है क्योंकि बदलती जलवायु के साथ यह संकट कहीं ज्यादा गहराता जा रहा है। पता चला है कि पिछले 50 वर्षों में लू के चलते मृत्युदर में 62.2 फीसदी की वृद्धि हुई है। अकेले वर्ष 2015 में ही लू की वजह से देश में 2,500 से ज्यादा लोगों की जान गई थी।

ऐसे में यह खतरा कितना गंभीर है इसका अनुमान आप स्वयं लगा सकते हैं। पता चला है कि तापमान में 1.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ ही भारत में लू का कहर आम हो जाएगा। यही नहीं तापमान में होने वाली 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से लोगों के इसकी चपेट में आने का जोखिम भी 2.7 गुणा बढ़ जाएगा।

वहीं जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में लू पर छपे एक शोध में आशंका जताई गई है कि तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ लोगों के लू की चपेट में आने का जोखिम करीब तीन गुना बढ़ जाएगा।

वहीं अंतराष्ट्रीय शोधकर्ताओं द्वारा की गई एक एट्रिब्यूशन रिसर्च से पता चला है कि जलवायु परिवर्तन ने भारत और पाकिस्तान में भीषण गर्मी की आशंका को 30 गुना तक बढ़ा दिया है।

गौरतलब है कि बढ़ते तापमान का ही नतीजा है कि इस साल भारत ने अपने इतिहास का सबसे गर्म मार्च के महीने को दर्ज किया था, जब तापमान सामान्य से 1.86 डिग्री सेल्सियस ज्यादा रिकॉर्ड किया गया था। इसी तरह पाकिस्तान में भी इस साल मार्च का महीना पिछले 60 वर्षों में सबसे ज्यादा गर्म था।

यूनिसेफ ने चेतावनी दी है कि बच्चों और कमजोर समुदायों को बढ़ती गर्मी, लू और जलवायु से जुड़े अन्य झटकों से बचाने के लिए अनुकूलन पर ध्यान देने और बढ़ते तापमान से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई की जरूरत है।

रिपोर्ट में यह भी कहा है कि आने वाले वर्षों में स्थिति कितनी गंभीर होगी और ये परिवर्तन कितने विनाशकारी होंगे यह इस बात पर निर्भर करेगा कि हम इनसे बचने के लिए अभी क्या कदम उठा रहे हैं।

इस दशक के दौरान उत्सर्जन में 14 फीसदी की वृद्धि होने का अनुमान है, जो हमें खतरनाक वैश्विक तापमान की राह पर ले जाएगा। ऐसे में सभी सरकारों को अपनी राष्ट्रीय जलवायु योजनाओं और नीतियों पर फिर से विचार करने की जरूरत है।

उन्हें 2030 तक उत्सर्जन में कम से कम 45 फीसदी की कटौती करनी होगी, जिससे बढ़ते तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित किया जा सके। इसी के मद्देनजर अगले महीने दुनिया भर के शीर्ष नेता और जलवायु विज्ञानी कॉप-27 शिखर सम्मलेन के लिए मिस्र में एकजुट होंगें। 

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