जलवायु परिवर्तन से प्रेरित भारी बारिश आर्थिक विकास को पहुंचा रही है नुकसान
वैज्ञानिकों ने बारिश में आती अनियमितता और भारी बारिश वाले दिनों में होते इजाफे के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेवार माना है, जिसके लिए हम स्वयं जिम्मेवार हैं
On: Monday 17 January 2022
पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च के वैज्ञानिकों द्वारा किए अध्ययन से पता चला है कि भारी बारिश वाले दिनों की संख्या में इजाफा होने से अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हो सकता है। साथ ही इसके चलते आर्थिक विकास की दर नीचे जा सकती है।
दुनिया के 1500 से ज्यादा क्षेत्रों को पिछले 40 वर्षों के आंकड़ों का विश्लेषण करने के बाद शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे है कि इसका सबसे ज्यादा नुकसान संपन्न देशों को हो रहा है। जहां निर्माण और सेवा क्षेत्र प्रमुख हैं। यदि इसकी वजह की बात करें तो वैज्ञानिकों ने बारिश में आती अनियमितता और भारी बारिश वाले दिनों में होते इजाफे के लिए बढ़ते उत्सर्जन के कारण होते जलवायु परिवर्तन को जिम्मेवार माना है। उनके अनुसार तेल और कोयले के उपयोग से जो उत्सर्जन हो रहा है वो जलवायु को प्रभावित कर रहा है, जो अलग-अलग तरह से वैश्विक अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा रही है।
इस बारे में जानकारी देते हुए इस शोध और पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट से जुड़ी वैज्ञानिक लियोनी वेंज का कहना है कि यह लोगों की जीविका और आर्थिक समृद्धि से जुड़ा है। दुनिया भर में अर्थव्यवस्था की रफ्तार भारी बारिश वाले दिनों की संख्या में इजाफा होने से उन दिनों में धीमी हो जाती हैं। यह जानकारी महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे हमें जलवायु परिवर्तन की वास्तविक लागत को समझने में मदद मिलेगी।
कृषि के लिए भी हानिकारक है बेमौसम भारी बारिश
वेंज के अनुसार यदि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों की बात की जाए तो ज्यादातर बढ़ते तापमान के चलते अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले व्यापक प्रभावों पर ही ध्यान केंद्रित किया जाता है। वहीं यदि भारी बारिश की बात की जाए तो उसमें महीनों और वर्षों में होने वाले परिवर्तन का यदि अध्ययन किया जाता है तो तस्वीर पूरी तरह बदल जाती है और जो निष्कर्ष सामने आते हैं वो सही स्थिति नहीं बयां करते हैं। देखा जाए तो वार्षिक तौर पर होने वाली भारी बारिश अर्थव्यवस्थाओं, विशेष तौर जो देश कृषि पर निर्भर हैं उनके लिए फायदेमंद होती है।
हालांकि यदि वही बारिश पूरे मौसम में न होने की जगह साल के कुछ दिनों में ही होने लगे तो यह चिंता का विषय है। क्योंकि सवाल यह भी है कि वर्ष के दिनों में यह बारिश कैसे वितरित होती है। ऐसे में यदि कुछ दिनों के अंदर ही भारी बारिश होने लगे तो वो नुकसान पहुंचा सकती है। देखा जाए तो यह बात कृषि पर भी लागु होती है, क्योंकि यदि कटाई के दिनों में बेमौसम भारी बारिश होने लगे तो वो फसल को नष्ट भी कर सकती है।
इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता मैक्सिमिलियन कोट्ज का कहना है कि हमने आर्थिक उत्पादन पर कई अलग-अलग प्रभावों की पहचान की है, फिर भी इन सबमें दैनिक रूप से होने वाली भारी बारिश भी महत्वपूर्ण है। यह जलवायु परिवर्तन का ऐसा प्रभाव है जिसे हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं। उनके अनुसार दुनिया भर में लगभग हर जगह भारी बारिश के दिनों में इजाफा हो रहा है।
अपने इस शोध में शोधकर्ताओं ने 1979 से 2019 के बीच दुनिया के 1,554 क्षेत्रों में स्थानीय आर्थिक उत्पादन से जुड़े आंकड़ों का मूल्यांकन किया है। उन्होंने इन आंकड़ों को बारिश से जुड़े आंकड़ों के साथ जोड़कर भी अध्ययन किया है।
कौन है इन सबके लिए जिम्मेवार
हमारे कोयले और जीवाश्म ईंधन से चलने वाले बिजली संयंत्र, गाड़ियां और अन्य उत्सर्जक वातावरण को ग्रीनहाउस गैसों से भर रहे हैं। जो इस पृथ्वी को गर्म कर रहे हैं। तापमान में होती वृद्धि के कारण गर्म होती हवा अधिक जलवाष्प धारण कर सकती है, जो अंततः बारिश का रूप ले लेती है। वायुमंडलीय गतिशीलता बारिश के वार्षिक औसत में होने वाले क्षेत्रीय परिवर्तनों को और अधिक जटिल बना देती है। इतना स्पष्ट है कि जलवाष्प के प्रभावाधीन वैश्विक स्तर पर होने वाली दैनिक वर्षा चरम रूप लेती जा रही है।
इस बारे में शोध से जुड़े एक अन्य शोधकर्ता एंडर्स लेवरमैन का कहना है कि, "अध्ययन से पता चला है कि यह दैनिक वर्षा, वैश्विक स्तर पर तापमान में होती वृद्धि का नतीजा है, जो बड़े पैमाने पर आर्थिक नुकसान पहुंचा रहा है। इसके बारे में अभी तक हिसाब नहीं लगाया गया है। हालांकि यह अत्यधिक प्रासंगिक है।"
शोधकर्ताओं के मुताबिक वार्षिक औसत के बजाय, छोटी अवधि में करीब से देखने पर पता चला है कि क्या हो रहा है। यह दिन प्रतिदिन होने वाली बारिश है जो खतरा पैदा करती है। देखा जाए तो यह जलवायु परिवर्तन से पैदा हुए झटके हैं जिन्होंने चरम रूप ले लिया है। यह क्रमिक बदलावों की तुलना में हमारे जीवन को कहीं अधिक खतरे में डाल रहे हैं। इनकी वजह से हमारी जलवायु में आती अस्थिरता हमारी अर्थव्यवस्थाओं को भी नुकसान पहुंचा रही है। ऐसे में यह सुनिश्चित करना अत्यंत जरुरी है कि जीवाश्म ईंधन के चलते हमारे समाज में अस्थिरता पैदा न हो।
यह अध्ययन अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर में प्रकाशित हुआ है।