2019 में मारे गए रिकॉर्ड 212 पर्यावरण योद्धा, भारत में गई 6 की जान

2015 से 2019 के बीच हुए कुल हमलों में से हर तीसरा हमला मूल निवासियों और आदिवासियों पर ही किया गया है

By Lalit Maurya

On: Wednesday 29 July 2020
 

पिछले साल पर्यावरण, जंगलों और अपनी जमीन को बचाने में 212 लोगों की जान गई थी| भारत की बात करें तो पिछले साल यहां 6 पर्यावरण कार्यकर्ताओं को मार दिया गया था। यह जानकारी आज ग्लोबल विटनेस नामक संस्था द्वारा जारी रिपोर्ट में सामने आई है। 

रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण अमेरिका महाद्वीप में सबसे ज्यादा हत्याओं के मामले सामने आए हैं जहां लगभग दो-तिहाई से अधिक हत्याएं हुईं हैं। देश की बात करें तो कोलम्बिया और फिलीपींस में सबसे ज्यादा हत्याएं हुई हैं। कोलम्बिया में 64 और फिलीपींस में 43 लोगों की जान गई। दोनों ही देशों में 2018 के बाद इन हत्याओं में वृद्धि देखी गई है। 

रिपोर्ट से पता चला है कि हाल के वर्षों में कोलंबिया में सामुदायिक और सामाजिक नेताओं की हत्या में नाटकीय रूप से वृद्धि देखी गई है। अकेले अमेजन क्षेत्र में 33 मौतें दर्ज की गई हैं| ब्राजील में हुई कुल 24 मौतों में से 90 फीसदी अमेजन में ही हुई थी। होंडुरास में 2018 में चार हत्याएं हुईं जो 2019 में बढ़कर 14 हो गईं। हालांकि अफ्रीका में हत्या के केवल 7 मामले सामने ही आए हैं पर अफ्रीका में बहुत से ऐसे और भी मामले होते हैं जिन्हें रिकॉर्ड ही नहीं किया जाता और वे बाकी दुनिया के सामने ही नहीं आ पाते। 

चौंकाने वाली बात यह है कि हर 10 हत्याओं में से 1 में महिला को निशाना बनाया गया था। महिलाएं अक्सर अपने परिवार और समाज की रीढ़ होती हैं। वे न केवल घर में बच्चों और बुजुर्गों का ध्यान रखती हैं बल्कि जीविका कमाने में भी मदद करती हैं। यदि कोई महिला पर्यावरण को बचाने के लिए काम कर रही होती हैं तो उन पर और ज्यादा दबाव होता है। उन्हें प्रताड़ना से लेकर यौन-हिंसा तक का सामना करना पड़ता है। यदि उनके घर का कोई सदस्य पर्यावरण संरक्षण और रक्षण में लगा है तो उन पर भी हमले की आशंका बनी रहती है। 

माइनिंग के कारण गई 50 रक्षकों की जान

यदि क्षेत्र के हिसाब से देखें तो 2019 में माइनिंग के कारण सबसे ज्यादा 50 रक्षकों की जान गई हैं। कृषि से जुड़े व्यवसायों के कारण 34 कार्यकर्ताओं की जान गई है। इनमें 85 फीसदी हत्याएं एशिया में हुई हैं। जंगलों को बचाने में 24 कार्यकर्ताओं की जान गई थी जिसमें 2018 के बाद से रिकॉर्ड 85 प्रतिशत वृद्धि हुई है।

वहीं यूरोप पर्यावरण रक्षकों के लिए सबसे सुरक्षित जगह थी। यहां 2019 में 2 लोगों की हत्या की गई। दोनों लोग रोमानिया में जंगलों की अवैध कटाई को रोकने के लिए काम कर रहे थे। यदि मूल निवासियों की बात की जाए तो वो सीधे तौर पर जल, जमीन और जंगल से जुड़े होते हैं। यही वजह है कि उन पर सबसे ज्यादा हमले हुए हैं। कुल हुए हमलों में से करीब 40 फीसदी हमले मूल निवासियों पर ही हुए हैं। 2015 से 2019 के बीच हुए कुल हमलों में से हर तीसरा हमला मूल निवासियों और आदिवासियों पर ही किया गया है। यदि वैश्विक जनसंख्या के आधार पर देखें तो इनकी आबादी केवल 5 फीसदी ही है|

दिसंबर 2015 के बाद से हर सप्ताह औसतन चार कार्यकर्ताओं की हत्या की गई है। इसी महीने में पेरिस जलवायु समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। जलवायु परिवर्तन के एक शुरू किए गए एक नए युग की उम्मीद के बीच न जाने कितने पर्यावरण योद्धाओं पर हिंसक हमले किये गए हैं। उन्हें गिरफ्तारी किया गया या जान से मरने की धमकी दी गई। इसके अलावा यौन हिंसा या मुक़दमे दर्ज कर खामोश करने की कोशिश की गई है।

एग्रीबिजनेस, जंगल, तेल, गैस और खनन कइयों के लिए बड़े फायदे का व्यापार है। इसे चलाए रखने के लिए वे किसी हद तक भी जा सकते हैं। जैसे ही ये लोग जंगलों को काटते हैं और हमारे वातावरण में कार्बन डाईऑक्साइड को पंप करते हैं, वे जलवायु परिवर्तन की समस्या को और बढ़ा देते हैं। जल, जमीन, जंगल और पर्यावरण के लिए संघर्ष कर रहे ये रक्षक ने केवल इनकों बचने की लड़ाई लड़ रहे हैं, साथ ही जलवायु परिवर्तन को रोकने की दिशा में भी काम कर रहे हैं।  ऐसे में इनको बचाना और संरक्षण देना न केवल समाज की जिम्मेदारी है बल्कि साथ ही सरकारों की भी इस दिशा में काम करने की जरूरत है। 

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