बीते 20 सालों में जलवायु परिवर्तन पर सांसदों ने महज 0.3 फीसदी सवाल पूछे, जहां जोखिम ज्यादा वहां के सवाल भी कम

सांसदों में सबसे ज्यादा रुचि जलवायु परिवर्तन के कृषि पर पड़ने वाले प्रभाव को जानने में रही, संसदीय जवाबों पर सिर्फ 10 फीसदी भरोसा। 

By Vivek Mishra

On: Friday 22 July 2022
 

भारत दुनिया में सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है लेकिन जलवायु परिवर्तन के जोखिम के मामले में भी दुनिया में 191 देशों में 29वें स्थान पर है। इसके बावजूद बीते 20 वर्षों  में यानी 1999-2019 के बीच संसद में 895 बार 1019 सदस्यों द्वारा जलवायु परिवर्तन पर सवाल पूछे गए हैं। यह संसद में इन 20 वर्ष की अवधि में कुल पूछे गए सवालों का महज 0.3 फीसदी है। 

सबसे दिचलस्प यह है कि संसद में जलवायु परिवर्तन से जुड़े सर्वाधिक सवाल कुछ चुनिंदा वर्षों में पूछे गए। यानी जिस वर्ष जलवायु परिवर्तन से जुड़े कोई निर्णय, नीति या फैसला लिया गया। 2006 में जहां 8 सवाल पूछे गए थे वहीं, 2007 में 53 सवाल जलवायु परिवर्तन पर पूछे गए थे। ऐसा इसलिए भी था क्योंकि 2007 में जलवायु परिवर्तन को लेकर राष्ट्रीय  कार्ययोजना जारी की गई थी। इसके अलावा सर्वाधिक 104 सवाल 2015 में पूछे गए थे। इस वर्ष केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के काम का विस्तार करते हुए उसके नाम को बदलकर केंद्रीय वन एवं पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय किया गया।  

यह नतीजे बंग्लुरू में स्थित अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज एंड सस्टेनिबिलिटी विभाग की सीमा मुंडोली, जुबिन जैकब, रंजिनी मुरली और हरिनी नागेंद्र के साथ यूएसए के स्नो लेपर्ड ट्रस्ट ने इस मुद्दे पर क्लाइमेट चेंज : द मिसिंग डिस्कोर्स इन द इंडियन पार्लियामेंट नामक अध्ययन में प्रकाशित किया है। यह शोधपत्र एनवॉयरमेंटल रिसर्च-क्लाइमेट में प्रकाशित किया गया है। 

ऐसा माना जाता है कि जिन राज्यों पर जलवायु परिवर्तन का सर्वाधिक जोखिम है वहां के सांसद सदन में संसदीय सवालों के जरिए ज्यादा आवाज उठाएंगे लेकिन शोधार्थियों को ऐसा नहीं दिखा। यह भी माना जाता है कि महिला सांसदों को इस बारे में और ज्यादा आवाज उठानी चाहिए क्योंकि उनके ऊपर जलवायु परिवर्तन का और भी ज्यादा दुषप्रभाव पड़ेगा, लेकिन महिला सांसदों ने भी बहुत कम सवाल उठाए क्योंकि उनका प्रतिनिधित्व बेहद कम है।

अध्ययन में कहा गया है कि बीते 20 वर्षों में चरम मौसमी घटनाओं में काफी बढोत्तरी हुई है लेकिन इसकी तुलना में संसदीय सवालों में कोई बढत नहीं देखी गई। सिर्फ छह सवाल ऐसे किए गए जो कि सामाजिक-आर्थिक कमजोर वर्ग और जलवायु न्याय से जुड़े हुए थे।   

किस तरह के सवाल सांसदों ने पूछे हैं, इस मुद्दे पर अध्ययन बताता है कि 27.6 फीसदी सवाल जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर, 23.5  फीसदी पलायन पर पूछे गए हैं। जलवायु परिवर्तन पर अनुकूलन (एडॉप्टेशन) को लेकर सबसे कम 3.9 फीसदी सवाल पूछे गए हैं, जबकि भारत में इस विषय पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है। 

इसके अलावा ज्यादातर सवाल जलवायु परिवर्तन के कृषि पर पड़ने वाले प्रभाव को लेकर पूछे गए हैं। भारत में कृषि क्षेत्र की जीडीपी में हिस्सेदारी 17 फीसदी है। इसके बाद जलवायु परिवर्तन के तटीय क्षेत्रों में प्रभाव और स्वास्थ्य पर पड़े वाले प्रभाव के बारे में पूछा गया है। जलवायु परिवर्तन से जड़े अन्य मुद्दों को बहुत ही कम या न के बराबर संसद में पूछा गया है।  

सांसद जलवायु परिवर्तन से जुड़े सवालों का जवाब कहां से हासिल करते हैं, इस पर अध्ययन बताता है कि वे केवल 10 फीसदी संसदीय सवालों के जवाब को अपनी जानकारी का स्रोत बनाते हैं। इसके अलावा 58.9 फीसदी अन्य शोध पत्रों, समाचार पत्र के आर्टिकल (22 फीसदी), कान्फ्रेंस से 11 फईसदी, संस्थानों से 5.6 फीसदी और अंतरराष्ट्रीय करारों से 1.1 फीसदी जानकारी जुटाते हैं।  

अध्ययन ने अपने निष्कर्ष में कहा है कि जलवायु परिवर्तन की जिस स्तर की समस्या है उस अनुपात में संसद में बहुत कम सवालों का प्रतिनिधित्व है। वहीं प्रभावित राज्यों से सवाल बहुत ही कम पूछे जा रहे हैं जबकि एडॉप्टेशन को लेकर चिंताएं भी बहुत कम नजर आती हैं। 

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